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यूपी को प्रत्तरोध की प्रयोगशाला बनाने की साजिश
कभी ' मुसलमान ', कभी ' दलित ', कभी ' किसान '
बेहद शात्तर हैं चेहरे बदल कर नए बहानों से आग लगाने वाले
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यह र्वाल इन दिनों हर किसी के दिल में है कि आखिर जिहादी , नक्सल और किसान्वेशधारी आंदकोिनकारियों में क्या समानता है ? तीनों रक्त पिपासू हैं , कट्टरपंथी हैं , व्यवसथा त्वध्वंसक हैं । पिछले दिनों यूपी के लखीमपतुर खीरी में जको रक्त-पात हतुआ , चाहे किसी का भी हतुआ , क्या ्वको हकोता , अगर रड़क पर किसान्वेशधारी खालिसतानी , जिहादी और नक्सलियों का गठजोड़ न हकोता । जिहादी , नक्सल और त्वतभन्न ्वेश धरने ्वाले इन आंदकोिनजीत्वयों ने कभी नागरिकता संशकोिन कानून के नाम पर आग लगाई , तको कभी एससी — एसटी एक्ट के नाम पर । ये भीमा ककोरेगां्व में भी हकोते हैं और हाथरस रेप
कांड में भी । अब यह पूछने का समय आ गया है कि आखिर इनका इलाज क्या है ? क्या देश का पूरा त्वपक् जिहादी , नक्सल , आंदकोिनजीत्वयों , ईसाई मिशनरी और सबसे अंत में इनके पीछे छिपी पाकिसतान और चीन जैसी त्वदेशी ताकतों के हाथ का खिलौना बन गया है ।
विदेशी ताकतों को चुभ रहा यूपी का विकास
जैसे-जैसे उत्र प्देश चतुना्व की ओर बढ़ रहा है , इसिामाबाद , बीजिंग ही नहीं , इनके फंड पर जीने ्वाली देशवयापी त्वध्वंसक शक्तियां बेचैन हको उठी हैं । असल में उत्र प्देश पिछले साढ़े चार साल में कायाकलप से गतुजरा है । अब यह तन्वेश का सबसे पसंदीदा लक्य हको गया है । प्देश की अर्थव्यवसथा देश के शीर्ष पर पहतुंचने की ओर लपक रही है । एक्सप्ेर ्वे और हाई्वे के जाल ने प्देश के रतुदूर ककोनों में त्वकास की लौ पहतुंचा दी है । माफिया पर या तको पतुतिस टूट पड़ी है या फिर बतुििकोजर गरज रहा है । कुल मिलाकर साढ़े
6 दलित आं दोलन पत्रिका fnlacj 2021