eMag_Dec_2021-DA | Page 25

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की ्वजह से उनके लिए नैनकोराइंस लैब कको खकोिने का त्वरकोि किया था । इसके बाद दको सदसयीय समिति ने इन आरकोपों की जांच की और प्रोफेसर के खिलाफ रिपकोट्ड पेश की । उनहोंने कहा , ‘ रिपकोट्ड के आधार पर उनहें त्वभाग के निदेशक पद से हटा दिया गया और हाईककोट्ड ने फैसले कको बरकरार रखा । हालांकि , त्वश्वत्वद्यािय ने 2017 में उनहें निदेशक के पद पर बहाल कर दिया । यह अ्वैध था । हाईककोट्ड और अनतुरूचित जाति ए्वं अनतुरूचित जनजाति आयकोग ने मेरी मांग के पक् में आदेश जारी किया था , लेकिन त्वश्वत्वद्यािय ने उनहें
अभी तक लागू नहीं किया है ।’
मामले ने लिया राजनीतिक रंग यह बताते हतुए कि 2011 में त्वश्वत्वद्यािय
में दाखिला लेने के बाद से जातिगत भेदभा्व की ्वजह से उनहें शिक्ा के अधिकार से ्वंचित रखा गया है । दीपा ने कहा , ‘ मैं इन दिनों ट्रॉमा से जूझ रही हूं और मैं समझ सकती हूं कि रकोतहत ्वेमतुिा ने आतमहतया क्यों की , लेकिन नयाय लिए बिना मैं पीछे नहीं हटूंगी । मतुझे यह िड़ाई उन िकोगों के लिए जीतनी है , जको इंसाफ के लिए इस तरह की िड़ाइयां हार चतुके हैं ।’ इस संबंध में त्वपक्ी नेता ्वीडी सतीशन ने कहा कि जातिगत भेदभा्व के त्वरकोि में एक महिला द्ारा भूख हड़ताल करना केरल का अपमान है ।
शासन का खौफ है हावी दलित समाज का समर्थऩ करने ्वाली
पार्टियां और अनय संगठन भी इस मामले कको
लेकर रतकय अ्वशय दिख रहे हैं लेकिन प्शासन और पतुतिस की ओर से हर हथकंडा आजमाया जा रहा है कि ताकि इस मामले कको तूल पकड़ने से रकोका जा सके । इसके लिए साम दाम दंड भेद यानी हर रणनीति कको अमल में लाया जा रहा है । इसकी ्वजह से ही बीते दिन जब दीपा से मिल कर एक दलित संगठन के प्देश अधयक् ्वापस लौटे तको उनहें भी इदतुक्की पतुतिस ने यौन उतपीड़न के आरकोप में गिरफतार कर लिया । इसके बा्वजूद भी त्वरकोि की आंच अंदरूनी तौर पर लगातार रतुिग रही है और छात्र संगठनों में भारी आककोश का माहौल देखा जा रहा है । इसी का नतीजा है कि बीएपीएसए और आइसा जैसी प्देश की बड़ी सटूिेंट यतुतनयन भी दलित छात्रा के समर्थन में खड़ी हकोने का खम अ्वशय ठोंक रही हैं लेकिन जमीनी सतर पर आककोश का जको प्कटीकरण हकोना चाहिए उसका अभा्व ही दिख रहा है । ्वह भी तक जबकि सैदांतिक तौर पर पीतड़त छात्रा के आरकोपों की सतयता भी प्माणित है और उसके द्ारा की जा रही इंसाफ की मांग कको सभी जायज भी बता रहे हैं ।
दलित प्रताडना का सिलसिला पुराना
हालांकि दीपा मकोहानन की कहानी सामने आने के बाद एक बार फिर केरल ही नहीं बपलक ्वामपंथी प्भतुत्व ्वाले शैक्तणक संसथानों में दलित छात्रों के साथ भेदभा्व का मतुद्ा चर्चित हको उठा है । इस मतुद्े पर बात करते समय रकोतहत ्वेमूला का तज़क ज़रूर हकोता है । उनहोंने साल 2017 में जातिगत भेदभा्व के चलते हैदराबाद सेंट्ि यतुतन्वतर्सटी में आतमहतया कर ली थी । सशक्त ्वामपंथी प्भा्व ्वाले शैक्तणक संसथानों में दलित ्वग्स के छात्रों के साथ हकोने ्वाले भेदभा्व के मामले की ही कड़ी में जेएनयू के उन मामलों कको भी जोड़कर देखा जाना सही हकोगा जिसमें 2017 में ्वहां के छात्र मतुथतुकृ्णन ने और 2019 में िरॉ पायल तड़वी ने भी कथित जातिगत भेदभा्व से तंग आ कर अपनी जान दे दी थी । �
fnlacj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 25