eMag_Aug2021_DA | Page 47

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रयाजनीतिक दल एवं दलित नेतयाओं द्वयारया किये गए गठजोड़ दलित हित में नहीं बल्क व्लकतरत ियाभ के लिए किये जयाते रहे हैं । दलित नेतया अकसर यह कहते हैं कि डॉ . आंबेडकर ने भी कयांग्रेस त्या अन् पयालटटियों के सया् गठजोड़ किये थे । लेकिन वह यह भूल जयाते हैं कि डॉ आंबेडकर ने यह गठजोड़ दलित हित में किये थे न के
व्लकतरत ियाभ के लिए । कयांग्रेस के सया् वह संविधयान बनयाने के लिए जतुड़े थे क्ोंकि वह संविधयान में दलितों को उनकया हक़ लदियानया ियाहते थे । उनहोंने प्रथम ितुनयाव में दूसरी पयालटटियों के सया् गठजोड़ लवियारधयारया और एजेंड़े की समयानतया के आधयार पर ही लक्या ्या ।
वयासतव में यदि देखया जयाएं तो वर्तमयान दलित रयाजनीति मतुद्दाविहीनतया कया शिकयार है । यह तो दलित रयाजनीति कया दिवयालि्यापन है जिसकया न तो कोई दलित एजेंडया है और न ही कोई राष्ट्रीय
एजेंडया । इसीलिए दलित रयाजनीति न केवल दिशयालवहीन है , बल्क इसी कयारण दलित नेतया अपनी मनमजटी करने में सफल हो जया रहे हैं । एजेंडया बनयाने से नेतया उससे बंध जयातया है और उससे मतुकर जयाने पर उसकी जवयाबदेही हो सकती है । इसीलिये दलित नेतया अपने वोटरों से बिनया कोई वयादया किये डॉ आंबेडकर और जयालत के नयाम पर वोट लेते हैं । दलित पयालटटियों द्वयारया कोई भी एजंडया घोषित न करने के कयारण दूसरी पयालटटि्यां भी अपनया कोई दलित एजेंडया नहीं बनयाती हैं और इतनया बडया दलित समतुदया् राष्ट्रीय रयाजनीति में केवल वोटर होकर रह र्या है । उसके मतुद्े राष्ट्रीय रयाजनीति कया केंद् बिंदतु नहीं बनते । यह वर्तमयान दलित रयाजनीति की सबसे बड़ी विफलतया है ।
वर्तमयान दलित रयाजनीति पहियान की रयाजनीति की दलदल में फंसी हतु्ी है । दलित नेतया अपनी रयाजनीति दलित मतुद्ों को लेकर नहीं बल्क जयालत समीकरणों को लेकर करते हैं । वह यह तो अपनी-अपनी उपजयालत के वोटरों को जयालत के नयाम पर ितुभयाते हैं ्या फिर डॉ . आंबेडकर के नयाम को भतुनयाते हैं । मया्यावती तो दलितों पर अपनया एकयालधकयार जतयाती है . वह यह बयात भी बहतुत अधिकयारपूर्ण ढंग से कहती है कि उस कया वोट हस्तानतरणीय है , जैसे कि दलित वोटर उस की भेढ़ बकरर्यां हों , जिनहें वह जिस मंडी में ियाहे , मनियाहे दयाम में बेच सकती है । यही कयारण है कि मया्यावती कया दलित आधयार बहतुत हद तक खिसक र्या है । एक बयार बयाबया सयाहेब ने बयातचीत के दौरयान कहया ्या ,” मेरे विरोधी मेरे विरुद तमयाम आरोप िरयाते रहे हैं परन्तु मेरे ऊपर कोई भी दो आरोप नहीं िरया सकया . एक मेरे चरित्र के बयारे में और दूसरया मेरी ईमयानदयारी के बयारे में .” आज कितने दलित नेतया इस प्रकयार कया दयावया कर सकते हैं ? मया्यावती कया भ्रषटयाियार तो खतुिी कितयाब है । सर्वविदित है कि भ्रषटयाियार जनविरोधी होतया है और उसकया सबसे अधिक खयालम्याजया गरीब लोगों को भतुरतनया पड़तया है । मया्यावती के भ्रषटयाियार कया खयालम्याजया उत्तर प्रदेश के दलितों को भतुरतनया पडया , जिसकी भरपयाई अब भयाजपया
सरकयार कर रही है ।
वर्तमयान दलित रयाजनीति की जो कलम्यां , कमजोरर्यां , भटकयाव और उलझनें दृलषटरोचर हतु्ी हैं उनके परिपेक्् में एक नए विक्प की ज़रुरत है जो परमपरयारत सत्तया की रयाजनीति की जगह व्वस्था परिवर्तन की पक्धर हो । वर्तमयान दलित पयालटटि्यां एक व्लकत आधयारित पयालटटि्या हैं जो उनकी व्लकतरत जयारीर हैं जिसकया इसतेमयाि एक व्यापयारिक घरयाने की तरह लक्या जयातया है । इनके अध्क् ही इनके सवजेसवया्ग हैं और उनके अियावया पार्टी में किसी दूसरे नेतया कया कोई अलसततव नहीं है । डॉ . आंबेडकर द्वयारया स्थापित पयालटटियों की एक ख़यास विशेषतया यह थी कि इनमें सयामूहिक नेतृत्व और अंदरूनी लोकतंत्र कया विशेष प्रयावधयान ्या । व्लकत पूजया के लिए कोई स्थान नहीं ्या । बयाबया सयाहब ने कहया ्या कि जयालतलवहीन एवं वर्गविहीन समयाज की स्थापनया हमयारया राष्ट्रीय लक्् है । उन कया यह भी लनलशित मत ्या कि जयालत उनमूिन किये बिनया न केवल दलितों बल्क समपूण्ग हिनदू समयाज की मुक्ति संभव नहीं है । . 1952 में शैड्तु्ड कयासटस फेड़ेरशन के संविधयान में रयाजनीतिक पार्टी की भूमिकया की व्याख्या करते हतुए डॉ . आंबेडकर ने कहया ्या , “ रयाजनैतिक पार्टी कया कयाम केवल ितुनयाव जीतनया ही नहीं होतया , बल्क यह लोगों को लशलक्त करने , उद्ेलित करने और संगठित करने कया होतया है .” इसी प्रकयार दलित नेतया के रतुणों कया बखयान करते हतुए उनहोंने कहया ्या , “ आपके नेतया कया सयाहस और बतुलदमत्तया किसी भी पार्टी के सवनोच्च नेतया से कम नहीं होनी ियालहए . दक् नेतयाओं के बिनया पार्टी ख़तम हो जयाती है ”। इसके विपरीत यह देखया र्या है कि वर्तमयान दलित पयालटटि्याँ दलितों को लशलक्त करने , उद्ेलित करने और संगठित करने की बजया्े उनकया इसतेमयाि केवल जयालत वोट बैंक के रूप में करती हैं । इसी तरह वर्तमयान दलित नेतयाओं कया कद् और बतुलदमत्तया डॉ . आंबेडकर के मयापदंडों से कोसों दूर हैं । अतः दलित पार्टी की रयाजनीतिक और सयामयालजक भूमिकया बहतुत सपषट होनी ियालहए और उन के नेतया सतु्ोग् होने ियालहए ।
( साभार )
vxLr 2021 दलित आंदोलन पत्रिका 47