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पढ़ती है तो पूरा परिवार पढ़ता है ।
डॉ . आंबेडकर ने भारतीय साहितय में प्राचीन से लेकर आधुनिक साहितय के साथ-साथ विदेशी साहितय का भी अचछी प्रकार से अधययन मनन किया था । साहितय अधयययन के दौरान शिक्षित व सितनत् लसत्यों उदाहरण के रूप में उनके सामने बुद्ध की थेरियों से लेकर सावित्ी बाई फूले व उनकी कई महिला वमत् थीं , जिनहोंने पढ़-लिख कर समाज परिवर्तन के लिए काम किया । इसलिए वह दलित सत्ी को शिक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध थे । परिवार में औरत की लसिवत सुदृढ़ करने के लिए डॉ . आंबेडकर ने शिक्षा के महति के साथ-साथ सामाजिक कुरीतियों जैसे बाल विवाह , बहु-पवत्िाद , देवदासी प्रथा आदि के खिलाफ भी अपनी जनसभाओं में बात रखी । परिवार में लड़की-लड़के का पालन-पोषण समान रूप से होना चाहिए । उनहोनें दलित परिवारों से अनुरोध किया कि वे अपने बच्ों की खासकर लड़कियों की शादी बचपन में ना करें । ‘ पालक अपनी संतान की शादी कम उम् में करके उनके जीवन को नरक ना बनाएं ।’ डॉ . आंबेडकर महिलाओं को उसकी समाज द्ारा दी गई भूमिकाएं मां , पत्ी , बहन एवं उसके लसत्योंचित गुणों से इतर उसको पूर्ण सितनत् , सिसि एवं प्रगतिशील कर्मठ मानवी के रूप में देखते थे । उनके जीवन दर्शन में निहित सिसि प्रफुल्लत शिक्षित , समाजिक सरोकारों में भागीदार दलित और गैर दलित सत्ी अतयनत महतिपूर्ण सिान पर सिावपत थी । डॉ . आंबेडकर का काल दलित महिलाओं की अपनी व समाज की सितनत्ता समानता को लेकर की गई सक्रिय व संघर्षपूर्ण भागीदारी का सिण्ष काल है । डॉ . आंबेडकर के समय में चले दलित आनदोलन में लाखों-लाख शिक्षित-अशिक्षित , घरेलू , गरीब मजदूर किसान दलित शोषित महिलायें जुड़ी । उनहोनें जिस वनभटीकता बेबाकी और उतसाह से दलित आनदोलन में भागीदारी निभाई वह अभूतपूर्व थी ।
दलित महिला आनदोलन और डॉ . आंबेडकर के साथ महिला आनदोलन की सुसंगत शुरूआत 1920 से मान सकते है हालांकि सुगबुगाहट
सन् 1913 से ही हो गई थी । 1920 में भारतीय बहिषकृत परिषद की सभा को्हापुर नरेश छत्पति शाहू जी महाराज की अधयक्षता में समपन्न हुई । इस सभा में पहली बार दलित महिलाओं ने भाग लेकर अपनी सक्रिय भूमिका निभाई । पहली बार दलित लसत्यों ने शिक्षा के महति को समझते हुए इस सभा में सौ . तुलसाबाई बनसोडे और रूकमणि बाई ने घरेलू भाषा में लड़कियों की शिक्षा पर बात रखी उनहोने अपने विचार रखते हुए कहा कि लड़कियों की असली शलकत शिक्षा ही है । इस परिषद में लड़कियों के लिए अनिवार्य और मुफत शिक्षा का प्रसताि पारित किया गया ।
देश भर चल रहे दलित आनदोलन के साथ दलित महिला आनदोलन भी अपना आकार ले रहा था । 1920 से आरमभ हुए दलित महिला आनदोलन में दलित महिलाओं की सक्रिय भागीदारी बढ़ती जा रही थी । 20 जुलाई 1924
में मुबंई में आयोजित बहिषकृत हितकारिणी सभा की सिापना की गई । इस सभा की सिापना का मुखय उद्ेशय असपृशयता के खिलाफ जंग छेड़ने के अलावा दलित बलसतयों में सकूल व छात्ािास खोलने समबनधी प्रयास कर दलित समाज में जागृति व चेतना पैदा करना था । बहिषकृत हितकारिणी सभा की अधिसंखय सभाएं जो जगह-जगह गांव , देहातों में आयोजित की जाती थी , उनमें दलित महिलाएं लगातार उपलसित रहती थीं । इस समय दलित महिलाएं अपने समाज और परिवार जनित पीड़ा को सार्वजनिक रूप से अभिवयकत कर रही थीं । पर उनकी अभिवयलकत अधिकतर गानों व सिागत गान के रूप में ही होती थी । बहिषकृत हितकारिणी सभा की मिटिगों में वेणुबाई भटकर और रंगबाई शुभरकर अपने मधुर कंठ से दलित पीड़ा की मार्मिक और संघर्षपूर्ण अभिवयलकत को गीतों में ढालकर मनमोहक सिर में गाकर सबका मन
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