eMag_April2022_DA | Page 34

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बडे़ कञारोबञारियों को
रञाज्यसभञा टिकट
अशोक वमत्ल , लवली प्रोफेशनल ्यूवनिवस्थर्ी के मालिक हैं । इस प्राइवेर् ्यूवनिवस्थर्ी में आम आदमी अपने बच्ों को पढ़ाने की सोच भी नहीं सकता लेकिन अरविंद केजरीवाल को अशोक वमत्ल आम आदमी नजर आ रहे हैं । संजीव अरोडा भी बडे कारोबारी हैं लेकिन उनहें केजरीवाल ने राज्यसभा का वर्कर् थमा वद्या । इन सबके अलावा आप के 3 सदस्य पहले से राज्यसभा में हैं । संज्य सिंह , जो राज्यसभा में आप की नुमाइंदगी करते नजर आ जाते हैं । एन डी गुपता जो केजरीवाल की जाति के हैं लेकिन कभी संसद में सामाजिक न्या्य ्या जन सरोकार के मसलों पर बोलते हुए नहीं दिखते । वहीं कारोबारी सुशील गुपता भी पहले से राज्यसभा हैं लेकिन उनहें भी शा्यद ही किसी ने राज्यसभा में आम आदमी के सवालों पर बोलते हुए किसी ने सुना हो । नए पाँचों सदस्यों का राज्यसभा त्य है क्योंकि आप ने पंजाब में सरकार बनाई है , इसके बाद राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के सांसदों की संख्या 8 हो जाएगी लेकिन आठों सदस्य सवर्ण पुरुष हैं । ्यहाँ तक महिलाओं को
भी केजरीवाल ने राज्यसभा में जाने नहीं वद्या । क्या उनहें सारी मेररर् वसफ़्फ सवर्ण पुरुषों में ही नजर आती है ? क्यों अरविंद केजरीवाल जाति और लिंग के आधार पर विविधता का ख़्याल नहीं रखते ? इन सवालों का जवाब तो उनहें देना ही चाहिए ।
फिर बेच दियञा रञाज्यसभञा कञा टिकट ?
राज्यसभा की सीर् के लिए सैकडों करोड की डील की खबरें अकसर सुर्ख़ियाँ बनती हैं , बडे-बडे उद्ोगपति एक झर्के में वर्कर् ख़रीद लेते हैं और आम आदमी मन मसोसकर रह जाता है । केजरीवाल पर राज्यसभा की सीर् बेचने के आरोप पहले भी लग चुके हैं तो क्या इस बार फिर सीर्ों की ख़रीद फ़रोख़त की गई है ? अगर इस सवाल को राजनीति से प्रेरित बताकर ख़ारिज भी कर वद्या जाए तो ्ये सवाल तो जरूर पूछा जाएगा कि आम आदमी की पार्टी बनाने का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल ख़ास लोगों को ही क्यों चुन-चुन कर राज्यसभा भेज रहे हैं ? उनके वो आदर्श और वसधिांत अब कहां गए ?
सिर्फ वोट प्यारञा ,
हिस्ेदञारी से रकिञारञा
अरविंद केजरीवाल की पार्टी को दिलली में तो दलितों का खूब साथ मिला ही था लेकिन पंजाब में भी दलित आवाम ने एक दलित मुख्यमंत्ी को हराकर आप के भगवंत मान को सीएम बना वद्या । भगवंत मान दफ़तर में बाबा साहब की फोर्ो बैकग्ाउंड में सजाकर बैठे हैं लेकिन उसी पंजाब से दलितों को राज्यसभा में कोई भागीदारी नहीं दी गई । पंजाब कैबिनेर् में जरूर दलितों को प्रतिनिधिति मिला है लेकिन राज्यसभा जैसे अहम सदन में किसी दलित , पिछडे , मुसलमान और महिला को क्यों नहीं भेजा ग्या ? भगवंत मान ने शपथ लेने के बाद अपने भाषण में बाबा साहब का नाम तक नहीं वल्या था लेकिन बैकग्ाउंड में तसिीरों को दिखाकर ख़ुद को दलितों का हितैषी घोषित करने की कोशिश हो रही है । बाबा साहब के जीवन पर नार्क दिखाए जा रहे हैं लेकिन असली सवाल भागीदारी का है । ्ये उस पार्टी का चररत् है जो राजनीति बदलने आई थी लेकिन हक़ीक़त आप सबके सामने है । �
34 दलित आं दोलन पत्रिका vizSy 2022