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अपनी ससरवत और सिीका्य्थता का भी अंदाजा लग ग्या जब सपा के साथ समझौता नहीं हो पाने के बाद मीवड्या के माध्यम से उनहोंने दलित समाज की संवेदना बर्ोरने का प्र्यास वक्या तो उनहें उपहास का पात् ही बनना पडा । नतीजन कोई अन्य विकलप नहीं होने के कारण उनहोंने सिर्फ अपना चेहरा चमकाने के लिए गोरखपुर सदर से ्योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चुनाव लडा । लेकिन दलित चेहरे के रूप में कोई कमाल नहीं कर पाए और उनकी जमानत भी जबत हो गई । इसी तरह उनकी पार्टी कई छोर्े दलों के साथ मिलकर चुनाव लडी लेकिन एक भी सीर् नहीं जीत पाई । ऐसे में बसपा का सफा्या होने के साथ ही इस बार के चुनाव में उनकी राजनीतिक संभावनाओं की भी पूरी तरह भ्रुण हत्या हो गई ।
बेबी रञािी मौर्य में दलित चेहरञा बनने की संभञाििञाएं विधानसभा चुनावों के पहले सितंबर 2021
में उत्राखंड की राज्यपाल बेबी रानी मौ्य्थ ने
अपने पद से इसतीफा दे वद्या था और एक बार फिर सक्रिय राजनीति में लौर् आई थीं । बाद में भाजपा ने उनहें राषट्रीय उपाध्यक् की जिममेदारी सौंपी । भाजपा की ओर से उनहें दलित समाज का बडा चेहरा बनने की भरपूर सहूवल्यतें मुहै्या कराई गई हैं और उनहें दलित समाज के नेता के रूप में सरावपत करने की कोशिशें की जा रही हैं । वह आगरा ग्ामीण सीर् से चुनाव लडी थीं जहां वह न केवल खुद चुनाव जीत कर आई बसलक आगरा की सभी 9 विधानसभा सीर्ों पर भाजपा ने जीत हासिल की है जिसमें बेबी रानी मौ्य्थ की भूमिका बहुत बडी रही है । ्यानी दलित समाज का बडा चेहरा बनाने के लिए भाजपा की ओर से जो प्र्यास किए गए उनहें आम मतदाताओं का भी भरपूर समर्थन मिला है और इस जनसमर्थन ने ्यह जता वद्या है कि बेबी रानी मौ्य्थ में ्यूपी के दलित समाज का बडा चेहरा बनने की भरपूर संभावनाएं भी और जमीनी सतर पर उनकी सिीका्य्थता भी है । ऐसे में भाजपा की ओर से उनहें प्रदेश सरकार में केबिनेर् मंत्ी भी बना्या
ग्या है और ऐसी चर्चा है कि सम्य के साथ उनहें लगातार संगठन और सरकार में बडी जिममेिारर्यां दी जाएंगी । इसके अलावा ऐसी चर्चा है कि भाजपा उनहें उप मुख्यमंत्ी बना सकती है । हालांकि भविष्य की राजनीति में ्यह दांव कितना कारगर होगा , ्यह तो वकत बताएगा । इसके अलावा बेबी रानी मौ्य्थ की उम्र ( 67 साल ) भी भविष्य की राजनीति के लिए चुनौती बन सकती है ।
भञाजपञा की तरह शिफ्ट हुआ दलित वोट ?
उत्र प्रदेश की 403 विधानसभा सीर्ों में से 84 सीर्ें अनुसूचित जाति के लिए आरवक्त हैं । इसमें से इस बार भाजपा ने 65 सीर्ें जीती हैं । जबकि सपा गठबंधन को 20 सीर्ें मिली है । वहीं बसपा को एक भी सीर् नहीं मिली । इस बात की संभावना जताई जा रही है , कि दलित वर्ग का एक बडा वोर् बैंक भाजपा को शिफ्ट हुआ है । हालांकि रिजर्व सीर्ों पर पार्टी के प्रदर्शन को ही दलित समाज में उसकी पूर्ण सिीका्य्थता का आधार नहीं माना जा सकता है क्योंकि इन सीर्ों के च्यन में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि वहां दलित समाज की आबादी औसत से अधिक हो अथवा वह सीर् दलितों का प्रतिनिधिति करता हो । लेकिन जिस तरह से बसपा के वोर् बैंक में चुनाव दर चुनाव लगातार गिरािर् आई है और उसी अनुपात में भाजपा के वोर् बैंक में हर चुनाव के बाद इजाफा होता हुआ दिख रहा है उससे सपष्ट है कि दलित समाज का वोर् काफी तेजी से और मजबूती से भाजपा की ओर शिफ्ट हो रहा है । साफ है कि बसपा की लगातार हो रही हार से ्यूपी की दलित राजनीति में सरान खाली होता दिख रहा है । ऐसे में दलित समाज किसको अपने प्रतिनिधिति का मौका देता है और सरावपत चेहरों से किनारा करने के बाद भाजपा में आकर वह किसको धुरी बनाकर उसके साथ गोलबंद होता है उस पर ही ्यह निर्भर करेगा कि भविष्य में उत्र प्रदेश की दलित राजनीति का तेवर और कलेवर कैसा रहने वाला है । �
vizSy 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 27