से मोदी सरकार द्ारा ला्यी ग्यी ्योजनाओं के ईमानदारी से वक्ये गए क्रियान्वयन से सकारातमक बदलाव की जो प्रक्रिया प्रारमभ हुई , उसमें और गति तब आ्यी , जब 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद ्योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्ी का पद संभाला । वासति में ्यवद देखा जा्ये तो पांच िषणों के दौरान एक मुख्यमंत्ी के रूप में ्योगी आदित्यनाथ ने अपने दाव्यतिों का निर्वहन जाति , उपजाति ्या वर्ग के दा्यरे में बंध कर नहीं वक्या । इसका परिणाम 2022 के चुनाव के नतीजों के रूप में देखा जा सकता है । उत्र प्रदेश में 403 में से 255 सीर्ें जीतकर ्योगी आदित्यनाथ ने जहां सत्ता फिर से संभाल ली है , वहीं बसपा जैसे दल को मात् एक ही सीर् मिली ।
मतदञातञाओं को रञास आयञा क्िकञास
बसपा के साथ ऐसा क्यों हुआ ? कारण तलाशा जा्ये तो दलित-पिछड़े वर्ग की जनता का बसपा से दूर होना ्यह दर्शाता है कि अब सिर्फ वादों और रेिवड्यों के माध्यम से गरीब , दलित , पिछड़े वर्ग का वोर् हासिल करना सिर्फ
दूर की कौड़ी रह ग्यी है । गरीब , दलित और पिछड़े वर्ग की जनता को समझ आ ग्या है कि विकास का वासतविक अर्थ क्या होता है और अगर सिर्फ वादों की दम पर उनहें कोई अपने पाले में लाने का सपना देखता है , तो उसे मुंह की खानी पड़ेगी । उत्र प्रदेश में 2017 के मुकाबले भाजपा की सीर्ें भले कम हो ग्यी हो पर वोर् प्रतिशत 2017 में मिले वोर् प्रतिशत 39.67 प्रतिशत से बढ़कर 41.29 पहुंच चुका है । हालाँकि समाजवादी पार्टी को अबकी बार 111 सीर् हासिल हुई हैं , पर गरीब , दलित और पिछड़े वर्ग की जनता ने समाजवादी पार्टी से दूरी भी बना्यीं है ।
दलितों कञा समर्थन रहञा निरञा्थयक
कुछ ऐसा ही हाल उत्राखंड में देखा जा सकता है । तीन बार मुख्यमंत्ी बदलने के लिए बाध्य हुई भाजपा के समबनध में कहा जा रहा था कि अबकी बार भाजपा को विपक् में बैठना पड़ेगा । लेकिन ऐसा नहीं हुआ और भाजपा ने उत्राखणड की 70 विधानसभा सीर्ों में से 47 सीर्ों पर जीत दर्ज कर सत्ा में वापसी कर ली है । कांग्ेस जो लगातार सरकार बनाने का दावा कर रही थी , मात् 19 सीर्ों पर सिमर् ग्यी , जबकि बसपा को दो सीर्ों से संतोष करना पडा । ्यहां भी भाजपा का वोर् प्रतिशत 44.33 प्रतिशत रहा , जबकि सरकार बनाने के दावा करने वाली कांग्ेस को 37.91 प्रतिशत वोर् ही मिले । राज्य की जनसंख्या में 17.9 प्रतिशत दलित वर्ग की जनता है तथा अनुसूचित जनजावत्यों की जनसंख्या तीन प्रतिशत है । ्यहां भी गरीब दलित जनता ने भाजपा पर अपना भरोसा जता्या । दलित वर्ग की जनता का भाजपा के पीछे खड़ा होने के पीछे भी सबसे बड़ा कारण ्यही कहा जा सकता है कि उनहें पहली बार ऐसी सरकार मिली , जिसने विकास ्योजनाओं का क्रियान्वयन बिना किसी पक्पात के जमीनी सतर पर वासतविकता में वक्या । मणिपुर और गोवा में गरीब , दलित और पिछड़े वर्ग की जनता का ध्ुिीकरण भाजपा के पक् में रहा , जबकि पंजाब
में दलित वर्ग का समर्थन आम आदमी पार्टी के पक् में रहा । पंजाब में आम आदमी पार्टी 117 विधानसभा सीर्ों में से 92 सीर्ों पर जीत हासिल की । ्यहां भाजपा को 2 , अकाली दल को 3 और बसपा को 1 सीर् मिली है । लेकिन भाजपा का वोर् प्रतिशत बढ़कर 6.60 प्रतिशत पहुंच ग्या है । पंजाब में कांग्ेस , अकाली दल के साथ ही बसपा को भी गरीब , दलित और पिछड़े वर्ग ने सबसे बड़ा झर्का वद्या है । गौर करने ला्यक बात ्यह भी है कि पंजाब में हर तीसरा वोर्र दलित है । राज्य की 117 सीर्ों में से 98 निर्वाचन क्ेत्ों में 49 % से 20 % तक दलित मतदाता हैं । वोट बैंक की पहचञाि से बञाहर आए दलित
सितंत् भारत में शुरू हुई लोकतासनत्क प्रक्रिया में दशकों तक दलित और पिछड़ो को कांग्ेस के पारमपरिक वोर् बैंक के रूप में देखा जाता रहा । दलित-पिछड़ो के साथ ही मुससलमों को डरा-समझा कर वोर् हासिल करने और फिर सत्ा सुख उठाने वाली कांग्ेस ने , दोनों िगणों का दशकों तक शोषण वक्या । सम्य परिवर्तन के साथ दलित-पिछड़ा वोर् बैंक अपने वासतविक हितों के लिए कांग्ेस से र्ूर् कर , उन दूसरे दलों के पास पहुंच ग्या , जो कि राजनीति में जाति , उपजाति ्या वर्ग के हितों के नाम पर सम्य के साथ सामने आ्ये । ऐसे तमाम दलों ने भी दलितों , पिछड़ो और गरीबों का सिर्फ वोर् बैंक के रूप में इसतेमाल वक्या और सिवहतों के साथ ही विकास की राजनीति को अवैध कमाई और धन हासिल करने का माध्यम बना वल्या । सच ्यह भी है कि सिवहतों के लिए बाबा साहब डॉ आंबेडकर के नाम का इसतेमाल अपनी सुविधानुसार वक्या जा रहा है । लेकिन अबकी बार पंजाब में दलित और गरीब जनता ने न तो अकाली दल को सिीकार वक्या और न ही कांग्ेस को । मुफत के खेल में गरीब और दलित जनता आपकी बार आम आदमी पार्टी के खेमे में जाकर खड़ी जरूर हो ग्यी है , पर देखना ्यह होगा कि मुफत का ्यह खेल गरीब , दलित जनता का कितना भला करेगा । �
vizSy 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 19