इसके बाद पार्टी के कैडर वोर् बैंक खिसकने लगे । दलित व पिछडा समाज के कई बडे चेहरों ने बसपा का साथ छोड कर भाजपा का दामन थामा तो दलित और अति पिछड़े वर्ग के वोर्रों को एक न्या ठिकाना दिखा । वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में इसका असर दिखा । बसपा को 22.24 फीसदी वोर् तो मिले , लेकिन पार्टी सिर्फ 19 सीर्ों पर सिमर् गई । लेकिन उस दुर्गति की समीक्ा करके सुधार का उपा्य करने के बजा्य लंबी तान कर पडे रहने का ही नतीजा हुआ कि इस बार के चुनाव में बसपा अधोगति तक पहुंच गई है ।
निजी स्वार्थ की भेंट चढी ' कञांशीरञाम ' की क्िरञासत
कांशीराम ने वर्ष 1984 में बहुजन समाज को उचित राजनीतिक हिससेदारी दिलाने के उद्ेश्य से बहुजन समाज पार्टी का गठन वक्या । उनका नारा था , ' समाज में जिसकी जितनी हिससेदारी , सत्ा में उसकी उतनी भागीदारी '। मा्यावती ने वर्ष 2003 में जब पार्टी की बागडोर अपने हाथ में संभाली तो उनहोंने इस नारे को बदल वद्या । उनहोंने नारा वद्या , ' जिसकी जितनी तै्यारी , उसको उतनी भागीदारी '। बहुजन से सर्वजन तक पार्टी को लेकर जाने से बसपा के मूल सिभाव में बदलाव आ ग्या । बसपा को शुरुआती दिनों में तो नए समीकरण का फा्यदा
मिला , लेकिन बाद के सम्य में दलित पार्टी से ठगे महसूस करने लगे । वे मानने लगे कि उनका इसतेमाल केवल वोर् बैंक के रूप में वक्या जा रहा है । दलितों में शिक्ा और राजनीतिक चेतना विकसित होने के बाद ससरवत में बदलाव आ्या । वहीं , जिस प्रकार कांशीराम संगठन को मजबूत बनाने का का्य्थ करते थे और मा्यावती पार्टी का चेहरा होती थी । वैसे संगठनकर्ता की कमी भी पार्टी में कभी पूरी नहीं हो पाई । दूसरी ओर दलितों का हित सुरवक्त करने के नाम पर वोर् बर्ोरने के बाद मा्यावती द्ारा अपनी तिजोरी भरने को ही सफलता का प्या्थ्य मान लेना दलित समाज के साथ सीधे तौर पर विशिासघात ही था । दलित समाज की चेतना ने जब अपने हित व अहित की विवेचना की तो उसे बसपा का मौजूदा सिरूप किसी भी तरह से दलित हितों का संरक्ण करता हुआ महसूस नहीं हुआ ।
फञायदञा देख रहञा दलित समञाज
दलित समाज अब चेहरा देखकर केवल वोर् नहीं कर रहा है । वर्ष 2022 के विधानसभा चुनावों ने इतना तो साफ कर वद्या है । पंजाब में कांग्ेस ने दलित मुख्यमंत्ी बनाकर जो कार्ड खेला था , उसे प्रदेश की जनता ने सिरे से खारिज कर वद्या । वहीं , अकाली और मा्यावती के गठजोर का कोई असर नहीं दिखा । उत्र प्रदेश में मा्यावती बेरंग दिखीं । चुनाव नतीजों से पहले
उनहोंने स्वयं सरकार बनाने ला्यक बहुमत का दावा करके हर किसी को हैरान कर वद्या था । पंजाब , ्यूपी और उत्राखंड के रिजल्ट की समीक्ा करेंगे तो पाएंगे कि अधिकांश वोर्र जिधर अपना फा्यदा देख रहे हैं , उस तरफ जा रहे हैं । उनके लिए पार्टी और चेहरा कोई मा्यने नहीं रह ग्या है । ्यूपी में डबल डोज राशन , गैस सिलेंडर , आवास ्योजना , शौचाल्य ्योजना काम करता दिखा । वहीं , पंजाब के दलितों ने कुछ ्यही उममीदें पूरी होने की संभावना आम आदमी पार्टी में देखी । उत्राखंड में भी कमोबेश ्यही ससरवत रही । तीनों सरानों के रिजल्ट में ्यही समानता दिख रही है । जो सच है उसे कहने और सिीकराने में कैसी झिझक । सच ्यह है कि इसमें दो रा्य नहीं कि इस बार मुफत के राशन , ई श्म कार्ड पर मिलने वाले पैसे , किसान को मिलने वाली धनराशि , गैस चूलहा आदि के बल पर भाजपा को बडी जीत मिली है । ्यह वो काम हैं जो भाजपा ने कर के दिखाए हैं और चुनाव के बाद भी गरीब कल्याण के लिए मुफत अनाज वितरण के कार्यक्रम को जारी रखा है । लेकिन दलितों का हित सुरवक्त करने का दिखावा करने वाली बसपा का ट्रैक रिकॉर्ड सिर्फ कथनी तक सीमित रहा । कोई एक ्योजना बसपा नहीं बता सकती जिससे उसके का्य्थकाल में गरीब , वंचित व दलित वर्ग को एक धेले का भी सीधा लाभ मिला हो । �
vizSy 2022 दलित आं दोलन पत्रिका 13