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इन बातों को भुला चुके है । बड़ा सवाल यह है कि ्वतंत्रा के 67 सालों में भी अगर भारतीय समाज इन दलित-आदिवासी समपूहों को आतमसात नहीं कर पाया है , तो जरूरत है ्पूरे संवैधानिक प्रावधानों पर नई सोच के साथि देखने की , तांकि इन वगषों को सामाजिक बराबरी के ्तर पर खड़ा किया जा सके । आंबेडकर का मत थिा कि राष्ट्र वयक्तयों से होता है , वयक्त के सुख और समृसद से राष्ट्र सुखी और समृद बनता है । डॉ . आंबेडकर के विचार से राष्ट्र एक भाव है , एक चेतना है , जिसका सबसे छोटा घटक वयक्त है और वयक्त को सुसंस्कृत तथिा राष्ट्रीय जीवन से जुड़ा होना चाहिए । राष्ट्र को सववोपरि मानते हुए डॉ . आंबेडकर वयक्त को प्रगति का केद्र बनाना चाहते थिे । वह वयक्त को साधय और राजय को साधन मानते थिे ।
डॉ . आंबेडकर ने इस देश की सामाजिक- सांस्कृतिक व्तुगत स्थिति का सही और साफ आंकलन किया है । उनहोंने कहा कि भारत में किसी भी आसथि्णक-राजनीतिक रिांसत से पहले एक सामाजिक-सांस्कृतिक रिांसत की दरकार है । पंडित दीनदयाल उपाधयाय ने भी अपनी विचारधारा में ‘ अंतयोदय ’ की बात कही है । अंतयोदय यानि समाज की अंतिम सीढ़ी पर जो बैठा हुआ है , सबसे पहले उसका उदय होना चाहिए । राष्ट्र को सश्त और ्वावलंबी बनाने
के लिए समाज की अंतिम सीढ़ी पर जो लोग है उनका सोशियो इकोनॉमिक डेवलपमेंट करना होगा । किसी भी राष्ट्र का विकास तभी अथि्ण्पूर्ण हो सकता है जब भौतिक प्रगति के साथि साथि आधयाकतमक मपूलयों का भी संगम हो । जहां तक भारत की विशेषता , भारत का कलचर , भारत की संस्कृति का सवाल है तो यह सव्व की बेहतर संस्कृति है । भारतीय संस्कृति को समृद् और श्रेष्ठ बनाने में सबसे बड़ा योगदान दलित समाज के लोगों का है । इस देश में आदि कवि कहलाने का सममान केवल महर्षि वाकलमकी को है , शा्त्रों के ज्ाता का सममान वेदवयास को है । भारतीय संविधान के निर्माण का श्रेय डॉ . आंबेडकर को जाता है ।
वर्तमान में कुछ देशी-विदेशी शक्तयां हमारी इन सामाजिक-संस्कृतिक धरोहरों को हिंदृतव से अलग करने की योजनाएं बना रही है । मा्स्ण की ्पूंजीवादी वयवस्था में जहां मुठ्ी भर धनपति शोषक की भपूसमका में उभरता है वहीं जाति और न्लभेद वयवस्था में एक ्पूरा का ्पूरा समाज शोषक तो दपूसरा शोषित के रुप में नजर आता है । जिसका समाधान डॉ . आंबेडकर सश्त हिंदपू समाज में बताते है ्योंकि वह जानते थिे कि हिंदपू धर्म न तो इसे मानने वालों के लिए अफीम है और न ही यह किसी को अपनी जकड़न में लेता है । व्तुतः यह मानव को ्पूर्ण
्वतंत्रता देने वाला है । यह चिरस्थायी रुप से विकास , संपन्नता तथिा वयक्त व समाज को सं्पूर्णता प्रदान करने का एक साधन है । डॉ . आंबेडकर के पास भारतीय समाज का आंखों देखा अनुभव थिा , तीन हजार वषषों की पीड़ा भी थिी । इसलिए डॉ . आंबेडकर सही अर्थों में भारतीय समाज की उन गहरी व्तुसनष्् सच्ाइयों को समझ पाते हैं , जिनहें कोई मा्स्णवादी नहीं समझ सकता ।
डॉ . आंबेडकर का सपना थिा कि एक जातिविहीन , वर्गविहीन , सामाजिक , आसथि्णक , राजनीतिक , लैंगिक और सांस्कृतिक विषमताओं से मु्त समाज । ऐसा समाज बनाने के लिए हिंदपू समाज का सश्तीकरण सबसे पहली प्राथिसमकता होगी । यही आंबेडकर की सोच और संघर्ष का सार है । आज डॉ . आंबेडकर इस देश की संघर्षशील और परिवर्तनकारी समपूहों के हर महत्वपूर्ण सवाल पर प्रासंगिक हो रहे हैं , इसी कारण वह विकास के लिए संघर्ष के प्रेरणा स्ोत भी बन गए है । मेरा मानना है कि हिंदुतव के सहारे ही समाज में एक जन-जागरण शुरू किया जा सकता है । जिसमें हिंदपू अपने संकीर्ण मतभेदों से ऊपर उठकर ्वयं को विराट्-अखंड हिंदु्तानी समाज के रूप में संगठित कर भारत को एक महान राष्ट्र बना सकते हैं ।
( साभार )
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