eMag_April 2021_Dalit Andolan | Page 49

देख-रेख में बनाए गए संविधान में सरियाकनवत हुआ है , लेकिन फिर भी संविधान वैसा नहीं बन पाया जैसा डॉ . आंबेडकर चाहते थिे , इसलिए वह इस संविधान से खुश नहीं थिे । आखिर डॉ . आंबेडकर आजाद भारत के लिए कैसा संविधान चाहते थिे ?
डॉ . आंबेडकर चाहते थिे कि देश के हर बच्े को एक समान , अनिवार्य और मुफत शिक्ा मिलनी चाहिए , चाहे व किसी भी जाति , धर्म या वर्ग का ्यों न हो । वे संविधान में शिक्ा को मौलिक अधिकार बनवाना चाहते थिे । देश की आधी से जयादा आबादी बदहाली , गरीबी और भपूखमरी की रेखा पर अमानवीय और असांस्कृतिक जीवन जीने को अभिशपत है । इस आबादी की आसथि्णक सुरक्ा सुनिश्रित करने के
लिए ही आंबेडकर ने रोजगार के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाने की वकालत की थिी । संविधान में मौलिक अधिकार न बन पाने के कारण 20 करोड़ से भी जयादा लोग बेरोजगारी की मार झेल रहे है । बाबा साहब ने दलित वगवो के लिए शिक्ा और रोजगार में आरक्र दिए जाने की वकालत की थिी ताकि उनहें दपूसरो की तरह बराबर के मौके मिल सकें । अगर शिक्ा , रोजगार और आवास को मौलिक अधिकार बना दिया जाता तो उनहें आरक्र की वकालत की शायद जरूरत ही न होती ।
डॉ . आंबेडकर प्रजातांत्रिक सरकारों की कमी से परिचित थिे , इसलिए उनहोंने सधारण कानपून की बजाय संवैधानिक कानपून को महतव दिया । मजदपूर अधिकारों पर डॉ आंबेडकर का
मानना थिा कि वर्ण वयवस्था केवल श्रम का ही विभाजन नहीं है , यह श्रमिकों का भी विभाजन है । दलितों को भी मजदपूर वर्ग के रूप में एकत्रित होना चाहिए । मगर यह एकता मजदपूरों के बीच जाति की खाई को मिटा कर ही हो सकती है । आंबेडकर की यह सोच बेहद रिांसतकारी है , ्योंकि यह भारतीय समाज की सामाजिक संरचना की सही और वा्तसवक समझ की ओर ले जाने वाली कोशिश है ।
डॉ . आंबेडकर भारतीय दलितों का राजनीतिक सश्तीकरण चाहते थिे । उसी का नतीजा है कि आज लोकसभा की 79 सीटें अनुसपूसचत जातियों के लिए और 41 सीटें अनुसपूसचत जनजातियों के लिए आरसक्त की गई है । सरकार ने संविधान संशोधन कर यह राजनीतिक आरक्र 2026 तक कर दिया है । शुरू में आरक्र केवल 10 वर्ष के लिए थिा । यह राजनीतिक आरक्र इन समपूहों का कितना सश्तीकरण कर पाया हैं , यह आज के समय का एक बड़ा सवाल है । अपना जनसमथि्णन खो देने के डर से कोई भी राजनीतिक दल इस पर चर्चा नहीं करना चाहता ।
देखा जाए , तो दल-बदल कानपून के रहते यह संभव ही नहीं है कि कोई दलित-आदिवासी विधायक या संसद अपनी मजटी से वोट कर सके । हमने देखा है कि कुछ साल पहले लोकसभा में दलित-आदिवासी सांसदों ने एक फोरम बनाया थिा , इन वगवो के अधिकारों के लिए , पाटटी लाइन से ऊपर उठकर । दल-बदल कानपून के कारण वह बेअसर रहा है । आंबेडकर दपूरदशटी नेता थिे उनहें अहसास थिा कि इन समपूहों को बराबरी का दर्जा पाने के लिए बहुत समय लगेगा , वे यह भी जानते थिे कि सिर्फ आरक्र से सामाजिक नयाय सुनिश्रित नहीं किया जा सकता । हमने देखा है कि ्पूव्ण राष्ट्रपति ज्ानी जैल सिह , बाबपू जगजीवन राम , मायावती जी , आदि दलित-पिछड़े नेताओं पर किस तरह के जुमले और फिकरे गढ़े जाते रहे हैं ।
डॉ . आंबेडकर का ्पूरा जोर दलित-वंचित वगषों में शिक्ा के प्रसार और राजनीतिक चेतना पर रहा है । आरक्र उनके लिए एक सीमाबद् तरकीब थिी । दुर्भागय से आज उनके अनुयायी
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