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डॉ . आंबेडकर का आर्थिक दर्शन
ओमप्रकाश कश्यप
एक चिंतनशील अथि्णशा्त्री के रूप में डॉ . भीम राव आंबेडकर के महती योगदान की ओर बहुत कम विद्ानों का धयान गया है । प्रायः लोग उनहें संविधान निर्माता के रूप में जानते हैं । यह भी जानते हैं कि दलितों के उदार के लिए उनहोंने अनथिक संघर्ष कियाI उसके लिए समकालीन नेताओं की अनगिनत आलोचनाएं सहीं । वह अपने समय के सर्वाधिक महत्व्पूर्ण मगर उन नेताओं में रहे , जिनकी सवद्ता विरोधियों को ््त करने वाली थिी । लेकिन एक अथि्णशा्त्री के रूप में उनके योगदान की प्राय : उपेक्ा ही की गई । व्तुतः राजनीति और समाज सुधार के क्ेत्र में डॉ . आंबेडकर का योगदान इतना महान एवं युगांतरकारी है कि उनके जीवन के बाकी पहलुओं तक लोगों की नजर जा ही नहीं पाती । यहां तक कि दलित विद्ानों का लेखन भी उनके सामाजिक- राजनीतिक क्ेत्रों में योगदान तक सिमटा रहा है । अथि्णशा्त्री के रूप में आंबेडकर के योगदान को केवल एक लेख या लेखांश से आंकना असंभव है । अपने एक वयाखयान में प्रखयात अथि्णशा्त्री श्रीनिवास अंबीराजन ने अथि्णशा्त्र के क्ेत्र से राजनीति और कानपून के क्ेत्र में अंतरण को अथि्णशा्त्र की भारी क्सत बताया थिा । उनके अनुसार अगर वे राजनीति और समाज सुधार के क्ेत्र में नहीं आते तो दुनिया-भर में दिगगज अथि्णशा्त्री के रूप में स्थान पाते । इस बात में काफी सचाई भी है ।
लंबे समय तक डॉ आंबेडकर का मन अथि्णशा्त्र में रमा रहा । 1947 आते-आते राजनीतिक क्ेत्र में उनकी वय्तता काफी बढ़ चुकी थिी । लेकिन उन दिनों भी उनकी इचछा
अथि्णशा्त्र के क्ेत्र में छूटे हुए काम को आगे बढ़ाने की थिी । उसी वर्ष प्रकाशित ‘ प्रॉ्लम ऑफ रुपी ’ के संशोधित सं्करण की भपूसमका में उनहोंने अथि्णशा्त्र के क्ेत्र में , 1923 के बाद हुए बदलावों को लेकर पु्तक का दपूसरा खंड यथिाशीघ्र तैयार करने का आ्वासन दिया थिा । मगर आजादी के बाद राजनीतिक जिममेदारियां अतयसधक बढ़ जाने के कारण वे छूटे हुए कार्य को ्पूरा नहीं कर सके ।
अथि्णशा्त्र डॉ आंबेडकर का सर्वाधिक प्रिय विषय थिा । कोलंबिया सव्वसवद्ालय में अधययन करते समय उनके पास कुल 29 विषय ऐसे थिे , जिनका सीधा संबंध अथि्णशा्त्र से थिा । वहां से उनहोंने ‘ इवोल्यूशन ऑफ पब्लक फाइनेंस इन सरिटिश इंडिया ’ विषय में पीएचडी की डिग्ी प्रापत की थिी । आगे चलकर लंदन स्कूल ऑफ इकॉनासम्स से उनहोंने ‘ प्रॉ्लम ऑफ रुपी : इ्स ओरिजिन एंड इ्स सोल्यूशन ’ विषय पर डीएससी की डिग्ी हेतु शोध प्रबंध लिखा । उस ग्रंथ की भपूसमका महान अथि्णशा्त्री एडविन केनन ने लिखी थिी । अथि्णशा्त्र के क्ेत्र में डॉ आंबेडकर की सवद्ता का अनुमान लगाने के लिए अमतय्णसेन की टिप्री भी मददगार ससद हो सकती हैI 2007 में दिए गए एक वयाखयान में आंबेडकर के अथि्णशात्रीय ज्ान की गुरुता को ्वीकारते हुए हमारे समय के इस अथि्णशा्त्री ने कहा थिा कि ‘ डॉ आंबेडकर अथि्णशा्त्र के क्ेत्र में मेरे जनक हैं । वे दलितों-शोषितों के सच्े और जाने-माने महानायक हैं । उनहें आजतक जो भी मान-सममान मिला है , वे उससे कहीं जयादा के अधिकारी हैं । भारत में वे अतयसधक विवादित हैं । हालांकि उनके जीवन और वयक्ततव में विवाद योगय कुछ भी नहीं है , जो उनकी आलोचना में कहा
जाता है , वह वा्तसवकता के एकदम परे है । अथि्णशा्त्र के क्ेत्र में उनका योगदान बेहद शानदार है । उसके लिए उनहें सदैव याद रखा जाएगा .’।
अथि्णशा्त्र के क्ेत्र में डॉ आंबेडकर के योगदान की चर्चा करने से पहले इस विषय में उनकी प्रसतष््ा को दर्शाने वाली एक और घटना का उललेख प्रासंगिक होगा । 1930 का दशक ्पूरे सव्व बाजार में भीषण मंदी लेकर आया थिा । सरिटिश सरकार के सामने भी गंभीर चुनौतियां थिीं , खासकर उपनिवेशों में जहां आजादी की मांग जोड़ पकड़ती जा रही थिी , वहां औपनिवेशिक सरकार की पकड़ को बनाए रखने के लिए स्थानीय सम्याओं का समाधान आव्यक थिाI सम्याओं के मपूल में कुछ वैश्वक मंदी का हाथि थिा और कुछ स्थानीय रोजगारों के उजड़ जाने से उत्न्न मंदी का । इसलिए अग्त 1925 में सरिटिश सरकार ने भारत की मुद्रा प्रणाली का अधययन करने के लिए ‘ रॉयल कमीशन ऑन इंडियन करेंसी एंड फाइनेंस ’ का गठन किया थिा । इस आयोग की बैठक में सह्सा लेने के लिए जिन 40 विद्ानों को आमंत्रित किया गया थिा , उनमें डॉ आंबेडकर भी थिे । वे जब आयोग
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