Divya Prakash Aug. 2013 | Page 20

की कोई सीभा नह ॊ है . शहयेआ का व्मक्तत चाहे तो बायत भें मा कपय दे श क फाहय कह ॊ बी आम क फेहतय अवसयेआ की तराश े े भें जा सकता है.औय अगधकय मह दे खा जाता है कक जहाॊ उसे अच्छा ववकल्ऩ सभरता है , वह वह ॊ यह कय अऩना ऩरयवाय फसा रेता है औय अऩने भाता-वऩता से दय हो जाता है. ू फढ़ती भहॊ गाई एक औय भहत्वऩणण कायण है , क्जसकी वजह से सॊमतत ऩरयवायेआ की भहत्ता कभ होती जा यह हेऄ. मह ू ु आभ तौय ऩय दे खा जा सकता है कक ऩनत-ऩत्नी दोनेआ ह कभाते हेऄ औय प्रनतस्ऩधाण प्रधान मग भें अऩने फच्चेआ क उज्जवर े ु बववष्ट्म क सरए हय सॊबव कामण कयते हेऄ . उन्हें अच्छे औय भहॊ गे सशऺा सॊस्थानेआ भें ऩढ़ाते हेऄ , इसक अरावा अन्म गनतववगधमेआ े े भें बी उन्हें ऩायॊ गत फनाने क सरए प्रमत्न कयते हेऄ . उनका ध्मान ऩूय तयह से अऩना औय अऩने फच्चेआ की जरूयतेआ को ऩूया े कयने ऩय ह कहित होता है . अफ ऐसे भें सॊमुतत ऩरयवायेआ की कल्ऩना कय ऩाना बी कहिन हो जाता है . बरे ह ऩहरे क ें े हारातेआ भें सॊमतत ऩरयवायेआ की उऩमोगगता अहभ थी, रेककन शामद आज क सभम भें मह अवधायणा प्रासॊगगक नह ॊ है . े ु आज की बागदौड़ बय जीवन शैर भें व्मक्ततमेआ क ऩास सभम क अबाव क साथ-साथ सहनशक्तत की बी कभी े े े होने रगी है , छोट -छोट फातें सॊफॊध ववच्छे द का कायण फन जाती हेऄ . आगथक तौय ऩय आत्भ-ननबणयता भें फढ़ोत्तय आई हेऄ . अफ ऐसा नह ॊ हेऄ कक ककसी एक की आजीववका ऩय ऩूया ऩरयवाय ननबणय कयता हेऄ , फक्ल्क क्जतने सदस्म होते हेऄ , वे सबी कभाते हेऄ. क्जस कायण अऩने व्मक्ततगत जीवन भें ककसी औय क दखर को सहन नह ॊ कयते. ऩरयणाभस्वरूऩ सॊफॊधेआ भे खटास े उत्ऩन्न हो जाती है . भनष्ट्म को कबी अऩने जीवन भें सॊफॊधेआ क भहत्व को नह ॊ बरना चाहहए. ऩरयवाय चाहे सॊमतत हो मा े ु ू ु कपय एकर, आऩसी प्रेभ ह भख् म कसौट होती है . क्जसक आधाय ऩय रयश्तेआ की गहयाई को भाऩा जा सकता है . बरे ह आज े ु सॊमुतत ऩरयवाय हभाये सभाज से ववरुप्त हो यहे हेआ रेककन एक दसये क प्रनत बावनात्भक रगाव कभ नह ॊ होना चाहहए. साथ े ू ह हभें मे बी नह ॊ बूरना चाहहए कक आज बरे ह नई आगथणक व्मवस्था क कायण सॊमुतत ऩरयवाय प्रणार का ऺयण हुआ है े रेककन उसकी भहत्ता भें कोई कभी नह ॊ आई है . एकर ऩरयवाय भें यहते हुए रोग इस फात को सशद्दत से भहसूस कयते नजय आते हेऄ. सॊमुतत ऩरयवाय जो कबी बायतीम साभाक्जक व्मवस्था की नीॊव हुआ कयते थे, आज ऩूय तयह ववरुप्त होने की कगाय ऩय ऩहुॊच चुक हेऄ. इसका सफसे फड़ा कायण मह है कक फदरते आगथणक ऩरयवेश भें रोगेआ की प्राथसभकताएॊ भुख्म रूऩ से े प्रबाववत हो यह हेऄ . भनष्ट्म का एकभात्र ध्मेम कवर व्मक्ततगत हहतेआ की ऩूनतण कयना ह यह गमा है . अऩने स्वाथण ससवि क े े ु सरए वह अऩने ऩरयवाय क साथ को बी छोड़ने से ऩीछे नह ॊ यहता. इसक अरावा व्मक्ततगत स्वतॊत्रता की फढ़ती भाॊग बी े े ऩरयवायेआ क टूटने का कायण फनती है . े बौनतकवाद से ग्रससत आज की बागती दौड़ती जीवनशैर की ववडॊफना ह मह है कक ऩरयवायेआ का स्वरूऩ क्जतना छोटा होता जा यहा है , व्मक्तत क ऩास अऩने ऩरयवाय को दे ने क सरए सभम भें बी उतनी ह कभी आने रगी है . कछ सभम े े ु ऩहरे तक जफ भनष्ट्म की आगथणक जरूयतें सीसभत थीॊ, ऩरयवायेआ क स्वरूऩ ककतने ह ववस्तत तमेआ न हेआ, उसक ऩास अऩने े े ु ृ ऩरयवाय क सरए ऩमाणप्त सभम अवश्म होता था, रेककन प्रनतस्ऩधाण प्रधान मग भें एक-दसये से आगे ननकरने की होड़ क े े ु ू चरते ऐसे हारात ऩैदा हो गए हेऄ कक ऩारयवारयक सदस्मेआ की उऩमोगगता औय उनका भहत्व बी भनष्ट्म को अफ गौण रगने ु रगा है . आगथणक स्वावरॊफन औय आत्भ-ननबणयता कछ ऐसे कायण हेऄ क्जनक ऩरयणाभस्वरूऩ सॊमुतत ऩरयवाय की सॊख्मा भें े ु रगाताय कभी आने रगी है . तमेआकक ऩहरे जहाॊ ऩारयवारयक सदस्म अऩनी हय छोट -भोट जरूयतेआ क सरए एक-दसये ऩय ननबणय े ू कयते थे, वह ॊ अफ रोग ऩूणण रूऩ से खद ऩय ह आगित होने रगे हेऄ, साथ ह फढ़ती भहॊ गाई औय सहनशीरता की कभी बी ु इस ववघटन क सरए उत्तयदामी साबफत हुए हेऄ. ऐसी ऩरयक्स्थनतमेआ क परस्वरूऩ सॊमतत ऩरयवायेआ का स्थान ऩूणण रूऩ से एकर े े ु ऩरयवायेआ ने हगथमा सरमा है . इसक अरावा रोगेआ की सॊकीणण होती भानससकता बी ऐसे छोटे -छोटे औय सीसभत ऩरयवायेआ क े े उद्भव औय ववकास भें कापी सहामक होती हेऄ . साभुदानमक हहतेआ की फात ह छोड़ड़ए, अऩने भाता-वऩता की क्जम्भेदाय बी भनष्ट्म को फोझ रगने रगी है . ु एकर ऩरयवाय से तात्ऩमण ऐसी ऩारयवारयक सॊयचना से है क्जसभें कवर ऩनत-ऩत्नी औय उनक फच्चे ह शासभर होते े े हेऄ. इसक साथ ह ऩरयवाय का भखखमा बी कवर इन्ह ॊ रोगेआ क प्रनत उत्तयदामी होता है . एकर ऩरयवायेआ क प्रनत फढ़ती े े े े ु हदरचस्ऩी क ऩीछे सफसे फड़ा कायण मह है कक ऩनत-ऩत्नी दोनेआ ह अफ आगथणक रूऩ से स्वतॊत्र यहना चाहते हेऄ , क्जसक चरते े े