दलितों के हिस् fu . kZ ;
ईसाइयों एवं म
खुद की हिंदू पहचान जारी नहीं रख सकती ।
उच्चतम नयायालय नदे कहा कि बिना आसथा के के्वल आरक्ण का लाभ पानदे के लिए मतांतरण आरक्ण नीति के मौलिक सामाजिक उद्दे्यों को कमजोर करता है । याची महिला का काम आरक्ण नीतियों की भा्वना के त्वपरीत हैं जिनका उद्दे्य हाशियदे पर पड़े समुदायों का उतथान है ।
जानकारी हो कि सदे््वारानी का जनम हिंदू पिता और ईसाई मां के यहां हुआ है । जनम के कुछ समय बाद ही उसका ईसाई के रूप में बपतिसमा कर दिया गया था । बाद में उसनदे हिंदू होनदे का दा्वा किया और 2015 में पुडुचदेरी में अपर त््वीजन कल््क पद के लिए आ्वदेिन करनदे के लिए एससी प्रमाणपत् की मांग की । लदेत्न दसता्वदेजी साक्यों सदे महिला के ईसाई होनदे की पुष्टि हुई । उसके पिता ्व्लु्वन जाति ( एससी ) सदे ता्लु् रखतदे हैं । ्व्लु्वन जाति को सुप्रीम कोर्ट के आिदेश , 1964 के तहत एससी की मानयता प्रापत है ।
उच्चतम नयायालय नदे कहा कि अपीलकर्ता नदे ईसाई धर्म का पालन जारी रखा , लिहाजा उसके हिंदू होनदे का दा्वा स्वीकार करनदे योगय नहीं है । जब अपीलकर्ता की मां नदे शादी के बाद हिंदू धर्म अपना लिया था तो उसदे अपनदे बच्चों का चर्च में बपतिसमा नहीं कराना चाहिए था । इसलिए अपीलकर्ता का बयान अत्व््वसनीय है । यह बात भी सतयातपत हुई है कि याची के माता-पिता का त्व्वाह भारतीय ईसाई त्व्वाह अधिनियम-1872 के तहत पंजी्कृत हुआ था ।
तरयों के तनष््रगों में कोई भी हसतक्षेप अनुचित है , जब तक कि निष्कर्ष इतनदे त्व्कृत न हों कि अदालत की अंतरातमा को झकझोर दें ।
उच्चतम नयायालय नदे कहा कि ईसाई धर्म अपनानदे ्वालदे लोग जातिगत पहचान खो िदेतदे है । अनुसूचित को मिलनदे ्वालदे लाभ पानदे के लिए उनहें पुनः मतांतरण और मूल जाति में स्वीकार्यता के साक्य उपलबध करानदे होंगदे । महिला नदे दोबारा हिंदू धर्म अपनानदे का दा्वा किया है , लदेत्न दा्वदे में सा्वमाजनिक घोषणा , समारोहों या त्व््वसनीय दसता्वदेज का अभा्व है । कोई वयशकत किसी दूसरदे धर्म को तभी अपनाता है जब ्वह ्वास्तव में उसके सिद्धांतों सदे प्रदेरित होता है । के्वल आरक्ण के लिए बिना आसथा के मतांतरण अस्वीकार्य है । चूंकि पुनः मतांतरण के तरय पर त्व्वाद है , इसलिए दा्वदे सदे अधिक कुछ होना चाहिए ।
उच्चतम नयायालय नदे कहा कि मतांतरण किसी समारोह या आर्य समाज के माधयम सदे नहीं हुआ था । सा्वमाजनिक घोषणा नहीं की गई थी । रिकार्ड में ऐसा कुछ नहीं है जो दर्शाता हो कि उसनदे या उसके परर्वार नदे पुनः हिंदू धर्म अपना लिया है । इसके त्वपरीत एक तरयातम् निष्कर्ष यह है कि याची अब भी ईसाई धर्म का पालन करती है । याची के त्वरुद्ध सुबूत हैं , इसलिए उसकी यह दलील कि मतांतरण के बाद जाति समापत हो जाएगी ए्वं पुनः मतांतरण के बाद जाति बहाल हो जाएगी , स्वीकार करनदे योगय नहीं है ।
हृदयनारायण दीक्षित
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तांतरण ्वसतुतः राष्ट्रांतरण होता है । मतांतरित वयशकत अपनी जनमभूमि , इतिहास और संस्कृति सदे टूट जाता है । भारत ईसाई , इसलामी जोर जबरदसती , लोभ , भय आधारित मतांतरण का भुकतभोगी है । मद्रास उच्च नयायालय में एक महिला नदे ईसाई होनदे के बा्वजूद हिंदू दलित होनदे का प्रमाण पत् मांगा था । नयायालय नदे टिपपणी की कि के्वल नौकरी के लिए मतांतरण संत्वधान त्वरुद्ध है । उच्चतम नयायालय नदे मद्रास नयायालय के निर्णय को स्वीकार कर लिया है । नयायालय नदे कहा है कि आरक्ण का लाभ लदेनदे के लिए मतांतरण संत्वधान के साथ धोखाधड़ी है । उच्चतम नयायालय के ताजा निर्णय सदे राष्ट्र प्रसन्न है ।
राष्ट्रपति के 1950 के आिदेश में कहा गया है कि सिर्फ हिंदुओं , बौद्ध , जैन सहित सिखों के दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा मिल सकता है । संत्वधान में धर्म प्रचार ( अनु . 25 ) की स्वतंत्ता है और किसी भी पंथ या त्व््वास को स्वीकार करनदे की भी । उच्चतम नयायालय नदे बल िदेतदे हुए कहा कि मतांतरण सच्चदे त्व््वास सदे प्रदेरित होतदे हैं न कि गुपत उद्दे्यों सदे ।
मतांतरित दलित ईसाई-मुशसलम की आरक्ण सदे जुडी मांग पुरानी है । मतांतरित अनुसूचित जाति को सरकारी प्रयोजनों के लिए अनुसूचित जाति का नहीं माना जा सकता । उनहें ईसाई या मुशसलम बन जानदे का कोई लाभ नहीं मिलदेगा । उच्चतम नयायालय के इस निर्णय के वयापक प्रभा्व होंगदे । मतांतरण अंग्रदेजी राज
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