परमपराओं ए्वं आधयाशतम्ता रूपी त्वत्वधता के उपरानत भी अनततोगत्वा यहां पूर्णरूपदेण सामाजिक समरसता के भा्व को िदेखा जा सकता है । त्वत्वध संस्कृतियों की अलग-अलग अनतधामारा ‘ सर्वे भ्वनतु सुखिनः ’ की ही एक ्वैचारिकी पर अडिग है । त्वतभन्न परमपराओं की भांति-भांति के तरियाकलाप अनत में भौतिकता के आधयाशतम् आयाम को छूतदे हुए सामाजिक गतिशीलता के सिद्धानत के साथ एक संगत्ठत लोकजी्वन का आभास करातदे है और त्वत्वध संस्कृतियों ए्वं परमपराओं की नीं्व में प्रापत आधयाशतम्ता का त्वतभन्न स्वरूप धर्म , अर्थ , काम ए्वं मोक् इतयाति के चिनतन में अवस्थित है ।
्वतमामान समाज में ्वैश्विक मान्व समाज जातत्वाद , प्रजातत्वाद ए्वं धनी-निर्धन के बीच होनदे ्वालदे भदेिभा्व के साथ ही त्वरमता , पररशसथतिजनय भिन्नता ए्वं त्वतभन्न तरयों पर आधारित भदेिभा्व प्रापत होतदे है । ऐसदे भदेिभा्व जाति , ्वगमा , ्वणमा , प्रजाति , रंग ए्वं धन पर आधारित त्वरमताओं के स्वरूप में दृष्टिगत हैं । मान्व समाज की समरसता को त्वखंडित करनदे ्वाली इन समसयाओं का निराकरण करनदे का एकमात् मार्ग सामाजिक समरसता के रूप में
वर्तमान समाज में वैश्िक मानव समाज जातिवाद , प्रजातिवाद एवं धनी-निर्धन के बीच होने वाले भेदभाव के साथ ही विषमता , पररशस्शतजनय भिन्नता एवं विभिन्न तथयों पर आधारित भेदभाव प्रापत होते है । ऐसे भेदभाव जाति , वर्ग , वर्ण , प्रजाति , रंग एवं धन पर आधारित विषमताओं के सिरूप में दृष्टिगत हैं । मानव समाज की समरसता को विखंडित करने वाली इन समसयाओं का निराकरण करने का एकमात्र मार्ग सामाजिक समरसता के रूप में देखा जा सकता है ।
िदेखा जा सकता है ।
सामाजिक समरसता अभियान को एक ऐसदे ्वैज्ातन् ए्वं व्यवहारिक त्व्वदेचन के रूप में िदेखा जा सकता है , जो ्वैज्ातन् सिद्धानतों पर पूर्णतया आधारित मान्व जी्वन-पद्धति में तो एकता , जी्वनतता ए्वं गतिशीलता जैसदे महत््वपूर्ण गुणों के अक्य संरक्ण हदेतु सामाजिक समरसता तत्व को अतिआवश्यक मानता है । मान्व लोक जी्वन में समरसता के सामाजिक , आर्थिक , ्वैज्ातन् ए्वं ्वैयशकत् आदि अनदे्ों सिद्धानतों की तरह उन पर अ्वलशमबत होतदे हुए सामाजिक समरसता पोषित तथा सथातपत की जा सकती है ।
्वैश्विक मान्व संस्कृति में सामाजिक त्वरमता , सामाजिक त्वघटन , अज्ानतायुकत भदेिभा्व , अप्रासंगिक रीतिरर्वाज तथा कुप्रथाओं का स्वी्कृति पाया जाना एक आ्चयमा का त्वरय है । सामाजिक समरसता शासत् का मूल भारतीय सनातन धर्म , संस्कृति ए्वं जी्वन-पद्धति के पररप्रदेक्य में जी्वन का एक ्वैश्विक चिनतन है । व्यवहारिक सामाजिक समरसता शासत् के आधार पर सामाजिक त्वरमता ए्वं सामाजिक त्वघटन के साथ ही जाति , प्रजाति ए्वं आर्थिक आधार पर होनदे ्वालदे भदेिभा्व को त्व््व सदे मिटाया जा
fnlacj 2024 31