जमींदार के लिया काम करतदे थदे । लदेत्न दोनों युद्ध के उपरांत बदली हुई ्वैश्विक व्यवसथा में ्वैश्विक सतर पर ्कृर्ों नदे भूमि पर स्वामित्व को प्रापत किया और ्वैश्विक व्यवसथा में तद्तीय त्व््व युद्ध के बाद राजशाही लगभग पूरदे त्व््व में समापत हो गई । आज लंबदे समय सदे त्व््व में लोकतंत् ए्वं पूंजी्वादी अर्थव्यवसथा चल रही है । पूंजी्वादी अर्थव्यवसथा नदे साम्यवादी ए्वं ््याणकारी अर्थव्यवसथा को किनारदे कर दिया है । परर्वततमात त्व््व व्यवसथा रिम में त्व््व के प्रत्येक िदेश की सामाजिक संरचना भी प्रभात्वत
हुई है । ्वैश्विक सतर पर सदियों सदे सथातपत कुछ सामाजिक समसयाओं नदे पूंजी्वादी आर्थिक व्यवसथा के ्वाता्वरण में त्व्राल रूप धारण कर लिया है । भारतीय उपमहाद्ीप में जातत्वाद , यूरोप , अमदेरिका , अफ्ी्ा ए्वं ऑस्ट्रेलिया जैसदे महाद्ीपीय िदेशों में प्रजातत्वाद के साथ ही समपूणमा त्व््व में आर्थिक आधार पर निर्मित ्वगमा्वाद जैसी समसयाएं एक बड़ी चुनौती के रूप में त्व््व के समक् खड़ी हैं ।
वैश्िक सतर पर सामाजिक समरसता एक बड़ी चुनौती
भारतीय उपमहाद्ीपीय िदेशों में जातत्वाद की समसया के समाधान का प्रयास लगभग दो शताशबियों सदे किया जा रहा है । महातमा फुलदे , साहूजी महाराज , सात्वत्ी फुलदे , पंडित मदन मोहन माल्वीय , त्व्वदे्ानंद , एम . एस . गोल्वरकर , महातमा गांधी , डा .
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