लोगों की आकांक्ाओं को पूरा करनदे की बात आती है तो यह हमारा ' ध्रुवतारा ' है और ्त्ठन पररशसथतियों में हमारा ' प्रकाश सतंभ ' है । हमारा संत्वधान मौलिक अधिकारों को लागू करनदे का आश्वासन िदेता है और मौलिक कर्तवयों का निर्धारण करता है । यह नागरिकों को हर जानकारी सदे अ्वगत रहनदे की व्यवसथा को परिभाषित करता है , और डा . आंबदे््र की इस चदेता्वनी को वयकत करता है कि बाहरी खतरों सदे ज़यािा आंतरिक संघर्ष लोकतंत् को ख़तरदे में डालतदे हैं । अब समय आ गया है कि हम राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्ा , एकता को बढ़ावा िदेनदे , राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता िदेनदे और अपनदे पयामा्वरण की सुरक्ा करनदे के अपनदे मौलिक कर्तवयों के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध हों ।
उनहोंनदे कहा कि हमें हमदेशा अपनदे िदेश को सर्वोपरि रखना चाहिए । हमें पहलदे सदे कहीं ज़यािा सतर्क रहनदे की जरूरत है । यह प्रतिबद्धताएं हमारदे त्व्तसत भारत @ 2047 के दृष्टिकोण को प्रापत करनदे और एक ऐसा राष्ट्र बनानदे के लिए महत्वपूर्ण हैं जो प्रगति और समा्वदेशन का उदाहरण हो । नारी शशकत ्वंदन अधिनियम संसद और राजय त्वधानसभाओं में महिलाओं के एक तिहाई प्रतिनिधित्व का सं्वैधानिक आश्वासन िदेता है और यह दर्शाता है कि हमारा संत्वधान नयायपूर्ण और समतापूर्ण समाज बनानदे के अनुकूल है । यह उन कई उदाहरणों में सदे है जिनसदे पता चलता है कि कैसदे सकारातम् नीतियों ्वालदे पारिशजी और उतिरदायी शासन नदे नागरिकों को उनकी आकांक्ाएं हासिल करनदे में मदद की है ।
उनहोंनदे कहा कि भारत का संत्वधान दुनिया में सबसदे अनू्ठा है कयोंकि यह सबसदे लंबा और एकमात् सतचत् संत्वधान है , जिसमें हमारी सभयता की 5,000 वर्षों की यात्ा को कला्कृतियों में दर्शाया गया है । हमारा संत्वधान लोकतंत् के तीन सतंभों - त्वधायिका , कार्यपालिका और नयायपालिका - को बड़े शानदार तरीके सदे सथातपत करता है । इनमें सदे प्रत्येक की भूमिका निर्धारित है । लोकतंत् का सबसदे अचछा पोषण तब होता है जब इसकी
सं्वैधानिक संसथाएँ अपनदे अधिकार क्देत् का पालन करतदे हुए आपसी सामंजसय और एकजुटता के साथ काम करती हैं । सरकार के इन अंगों के कामकाज में , अपनदे-अपनदे क्देत् की त्वतशष्टता ही ्वह तत्व है जो भारत को समृद्धि और समानता की अभूतपू्वमा ऊंचाइयों की ओर लदे जानदे में अभूतपू्वमा योगदान िदेता है । इन संसथाओं के शीर्ष पर बै्ठडे लोगों के बीच मिल- जुलकर काम करनदे की संरचना त्व्तसत होनदे सदे एक साथ राष्ट्र की सदे्वा में अधिक आसानी होगी । सं्वैधानिक व्यवसथा यह है कि संसद
अंत में मैं 25 नवंबर , 1949 को संविधान सभा में दिए गए डा . आंबेडकर के अंतिम भाषण का उललेख करना चाहता हूं : ' मुझे इस बात से बहुत परेशानी होती है कि भारत ने न केवल एक बार अपनी सितंत्रता खोयी है , बशलक उसने इसे अपने ही कुछ लोगों के कपट और वि्िासघात के कारण खो दिया है । तो कया इतिहास खुद को दोहराएगा ? यही विचार मुझे चिंता से भर देता है ।
कानून बनानदे के बाद यह भी सुनिश्चत करदे कि कानून सही दिशा में आगदे बढ़े ।
उनहोंनदे कहा कि लोकतंत् के संरक्् के रूप में , हम अपनदे नागरिकों के अधिकारों और उनकी आकांक्ाओं का सममान करनदे और राष्ट्रीय ््याण और सा्वमाजनिक हित सदे प्रदेरित होकर उनके सपनों को निरंतर आगदे बढ़ानदे का पवित्र कर्तवय निभातदे हैं । इसी कारण सदे अब प्रति ्वर्ष 25 जून को हर साल आपातकाल की याद में त्वशदेर दि्वस मनाया जाता है - ्वह सबसदे काला दौर जब नागरिकों के मौलिक अधिकारों को
निलंबित कर दिया गया था , लोगों को बिना किसी कारण के हिरासत में लिया गया था और नागरिक अधिकारों का उ्लंघन किया गया था ।
उनहोंनदे कहा कि त्व््व के मंच पर हमारदे राष्ट्र का नाम गूंजायमान हो इसके लिए सभी नागरिकों , त्वशदेर्र संसद सदसयों को कदम उ्ठानदे होंगदे । इस सममातनत सदन में लोकतांतत्् बुद्धिमतिा की गूंज हो तथा नागरिकों और उनके तन्वामातचत प्रतिनिधियों के बीच गहरा संबंध बना रहदे । हम आज 75्वीं ्वर्षगां्ठ मना रहदे हैं , तो आइए हम अपनदे संत्वधान के प्रति अधिक महत्वपूर्ण सामूहिक चदेतना का निर्माण करनदे के लिए प्रतिबद्ध हों , जो हमें लोगों के रूप में एक साथ बांधदे रखदे तथा प्रगतिशील राष्ट्र- निर्माण के त्वचारों को बढ़ावा िदे , साथ ही सांप्रदायिक दृष्टिकोण के परिणामों सदे हमारी रक्ा करदे । अंत में मैं 25 न्वंबर , 1949 को संत्वधान सभा में दिए गए डा . आंबदे््र के अंतिम भाषण का उल्लेख करना चाहता हूं : ' मुझदे इस बात सदे बहुत परदेशानी होती है कि भारत नदे न के्वल एक बार अपनी स्वतंत्ता खोयी है , बल्् उसनदे इसदे अपनदे ही कुछ लोगों के कपट और त्व््वासघात के कारण खो दिया है । तो कया इतिहास खुद को दोहराएगा ? यही त्वचार मुझदे चिंता सदे भर िदेता है । यह चिंता इस तरय के अहसास सदे और भी गहरी हो जाती है कि जातियों और पंथों के रूप में हमारदे पुरानदे शत्ुओं के अला्वा हमारदे पास कई राजनीतिक दल होंगदे जिनके राजनीतिक पंथ अलग-अलग और परसपर त्वरोधी होंगदे । कया भारतीय लोग िदेश को अपनदे पंथ सदे ऊपर रखेंगदे या ्वदे पंथ को िदेश सदे ऊपर रखेंगदे ?' डा . आंबदे््र नदे आगदे कहा , ' मुझदे नहीं पता । लदेत्न इतना तो निश्चत है कि अगर पार्टियां धर्म को िदेश सदे ऊपर रखती हैं , तो हमारी स्वतंत्ता दूसरी बार ख़तरदे में पड जाएगी और शायद हमदेशा के लिए खो जाएगी । इस संभात्वत शसथति सदे हम सभी को पूरी तरह सदे सा्वधान रहना चाहिए । हमें अपनदे खून की आखिरी बूँद तक अपनी स्वतंत्ता की रक्ा करनदे के लिए दृढ़ संकल्पत होना चाहिए ।' �
प्रसतुशत : संजय दीक्षित
fnlacj 2024 15