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स्ार्थों के लिए नहीं होना चाहिए डा . आंबेडकर के नाम का प्रयोग

डा . विजय सोनकर शास्त्री

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दिसंबर 1956 को भारत ने एक महान आतमा , एक महान सपदूत , एक महान राषट्रवादी और एक महान वयसकततव को खो दिया । नई दिलली के आवास पर जिस महान नेतृतव ने अपने देह को तयाग दिया थिा , वह और कोई नहीं , बसलक संविधान निर्माता डा . भीमराव रामजी आंबेडकर थिे । डा . आंबेडकर एक ऐसे वयसकततव भी थिे , जिनहें आदथि्मक नहीं , बसलक सामाजिक कलंक के कारण अपने जीवन में संघर्ष करना पड़ा । अपने ज्ान , बुदद्मत्ता और मानवीय भावनाओं के साथि उनहोंने दसद् कर दिया कि कोई जाति से महान नहीं हो सकता है , वरन कोई वयसकत केवल कममों से महान हो सकता है । एक वयसकत , एक नयायविद् , एक अथि्मशा्त्री , एक राजनीदतज् , एक समाज
सुधारक , एक विपुल लेखक और एक समाजशा्त्री के विखयात डॉ आंबेडकर भारतीय संविधान के वा्तुकार थिे , जिसके लिए आज सम्पूर्ण भारत गर्व का अहसास करता है ।
आधुनिक भारत की त्वीर को गढ़ने में बाबा साहब की भदूदमका को कभी भी अनदेखा नहीं किया जा सकता । बाबा साहब ने एक ऐसे राषट्र के निर्माण का सपना देखा थिा , जहां समग् विकास के माधयम से सभी नागरिकों को विकास यात्रा में सहभागी बनाया जाएI आधुनिक भारत
की नींव रखने में बाबा साहब का उललेखनीय योगदान है । भारतीय रिजर्व बैंक , नेशनल पॉवर कारपोरेशन , राषट्रीय जल बोर्ड , भारत की औद्ोदगक नीति , रोजगार कार्यालय , विदेश नीति , श्म क़ानदून , महिलाओं के लिए अनिवार्य मातृतव अवकाश सहित कई अनय नीतियों एवं संस्थानों को स्थापित करने में बाबा साहब की महतवपदूण्म भदूदमका रही और ्वतंत्र भारत के निर्माण में अपना योगदान दियाI
देखा जाए तो डा . आंबेडकर ने सम्पूर्ण भारत
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