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थिे । इस दृष्टि से वयापक समाज सुधारों की आवशयकता थिी । इस आवशयकता के अनुरूप ही डा . आंबेडकर एक समाज सुधारक के रूप में सामने आए थिे तथिा युगानुककूल सामाजिक वयवस्थाओं की पुनर्स्थापना के वह पुरोधा थिे । सदियों से वंचित , उपेक्षित अपमानित एवं तिर्कृत जातियों को उनहोंने आशा और विशवास के साथि एक मजबदूत संबल प्रदान किया , जो असहाय और असंगठित थिे उनहें एक मजबदूत आधार और मंच दिया , भय और प्रताड़ना के कारण जिनकी वाणी मदूक हो गई थिी , उनहें सशकत वाणी दी । साथि ही उनहें अनयाय और अतयारार
के विरुद् एकजु्ट होकर संघर्ष करने की क्षमता भी प्रदान की ।
यह बात हमारे ्मरण में सदैव रहनी चाहिए कि वह जिस वयवस्था के विरुद् लड़ रहे थिे , वह सदियों की रूढ़ परमपराओं के कारण दृढ़ हो गई थिी और कहीं-कहीं तो उसने तथिाकदथित
शा्त्रों और धर्म की विकृत धारणाओं से सहारा लेने की कोशिश भी की थिी । इस कारण इन कुरीतियों , रूदढ़यों तथिा मिथया मानयताओं की जड़ें गहरी थिी तथिा यह दीवारें बहुत मजबदूत थिीं । इनसे संघर्ष लेना और उनको ढहाना आसान न थिा । डा . आंबेडकर ऐसे दृढ़ प्रदतज् वयसकत थिे , जिनहोंने अपने बालयकाल से लेकर संविधान प्रारूप समिति के अधयक्ष पद तक इन भेदभावों को ्वयं झेला । अपमान और तिर्कार की पीड़ा ने अनेक बार उनके हृदय के अनतरतम को झकझोर कर रख दिया थिा । अपने करोड़ों बनधुओं के दु : ख को देखकर वह दृढ़ होते चले गए । " अपना यह जीवन इनहीं पीदड़त मानवजनों के दु : खों को ददूर करने में ही लगा ददूंगा " यह संकलप दिन प्रतिदिन और अधिक मजबदूत होता चला गया । भौतिक सुखों की चाह , उच्च पद प्रापत करने की महतवाकांक्षा , वयसकतगत प्रतिषठा , परिवार आदि का मोह भी उनहें इस मार्ग से कभी विचलित नहीं कर सका । इसी कारण जब आवशयकता पड़ी तब वह केनद्रीय मंत्री का प्रदतसषठत पद छोड़कर नेहरू मंत्रिमंडल से बाहर आ गए । हैदराबाद के निजाम तथिा वैद्टकन दस्टी के पोप द्ारा अककूत समपदत्त का निवेदन भी उनहें उनके मार्ग से भ्रमित न कर सका और वह निरनतर अपने सुदनसशरत मार्ग पर चलते रहे , जिसके द्ारा करोड़ों अ्पृशय बनधुओं को सममादनत जीवन प्रापत करवा सकें ।
डा . आंबेडकर के जीवन में एक महतवपदूण्म बात हमको दिखलाई देती है , वह यह है कि वह पुरानी सभी मानयताओं , आदशमों और वयवस्थाओं को धव्त करना नहीं चाहते तथिा किसी जाति या वर्ण के वह शत्रु नहीं हैं , जो अ्छा है वह संभालकर रखना और जो अनावशयक है , उसे ह्टाना ही उनहें अभीष्ट है । इस दृष्टि से वे एक " आनदोलनकारी " हैं । डा . आंबेडकर यह जानते थिे कि भारतीय दर्शन के मौलिक ततव बहुत उदात्त हैं । किनतु , विकृतियों , रूदढ़यों , ढोंग , पाख्ड , कर्मका्डों एवं परंपराओं का अनावशयक अतिरेक , जिसने उस सम्त दर्शन जो सभी मनुषयों को समान मानता है तथिा करुणा , प्रेम , ममता , बनधुतव , दया , क्षमा , श्द्ा
आदि सदगुणों का सनदेश देता है एवं उसका संरक्षण भी करता है , को ढंक लिया है , वही हमारे परिवर्तन का मदूलाधार बना रहे ।
सुधारवादी आनदोलन को चलाते समय हर क्षण यह बात ्मरण रखनी होगी कि यदि किसी भी कारण से आपसी प्रेम , ममता और बनधुतव का भाव समापत हो गया तो परिवर्तन का यह संघर्ष एक ककूर वैमन्य में बदलकर अधिकतम अधिकारों को पाने की इ्छा रखने वाले गृहयुद् में बदल जाएगा । अत : वह कहते थिे कि हम यह बात धयान में रखें कि हमारे देश में सभी सदगुणों का दाता " धर्म " है । इस " धर्म " को अपने विशुद् रूप में पुनर्स्थापित करना है । ढोंग , पाख्ड , भेदभाव , कर्मका्ड आदि के परे " धर्म " में अनतदनदह्मत महान सदगुणों को संरक्षित करते हुए हमें आगे बढ़ना है । कुछ लोग कहते हैं कि धर्म की मानव जीवन में कोई आवशयकता नहीं है ।
डा . आंबेडकर लोगों के इस मत से सहमत नहीं थिे । उनहोंने कहा- " कुछ लोग सोचते हैं कि धर्म समाज के लिए अनिवार्य नहीं है , मैं इस दृष्टिकोण को नहीं मानता । मैं धर्म की नींव को समाज के जीवन तथिा वयवहार के लिए अनिवार्य मानता हदूं ।" माकस्मवादी लोग धर्म को अफीम कहकर उसका तिर्कार करते हैं । धर्म के प्रति यह विचार माकस्मवादी दृष्टिकोण की आधारशिला है । डा . आंबेडकर माकस्मवादियों के इस मत से सहमत नहीं थिे । वह इस बात से पदूरी तरह आशव्त थिे कि " धर्म " मनुषय को न केवल एक अ्छा चरित्र विकसित करने में सहायता करता है , अपितु वह समाज के संरचनातमक पक्षों को भी निर्धारित करता है । चरित्र एवं शिक्षा को वह धर्म का ही अंग मानते थिे । वह कहते थिे " धर्म " के प्रति नवयुवकों को उदासीन देखकर मुझे दु : ख होता है ।" डा . साहब का मानना थिा कि " धर्म " कोई पंथि या कर्मका्ड नहीं है । धर्म के नाम पर हो रहे निरथि्मक ढोंग , पाख्ड तथिा व्यर्थाडमबरों को वह धर्म नहीं मानते । धर्म से उनका तातपय्म है- वयसकतगत , पारिवारिक एवं सामाजिक वयवस्थाओं को आदर्श रूप से संचालित करने वाला " नैतिक दर्शन ", जो सभी के लिए श्ेय्कर है वही " धर्म " है । �
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