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साहूजी महाराज नरे किया और लोगों नरे अपनरे- अपनरे समय पर आंदोलन चलाया । आगरे चलकर डॉ . आम्बेडकर नरे राजनीतिक आंदोलन बहुत वयापक रूप में पूररे दरेश में चलाया । उत्रप्रदरेश में भी आम्बेडकर के आंदोलन का बहुत गहरा प्रभाव और प्रसार हुआ । शुरुआत में दलित आंदोलन और दलित साहितय का ओबीसी के नायकों नरे विकास किया । इसरे अगर दरेश के सतर पर दरेखें तो जोतिबा फुलरे ओबीसी िरे । साहूजी महाराज ओबीसी िरे । परेरियार ओबीसी िरे और उत्र भारत में ललईसिंह यादव ,
रामसवरूप वर्मा और सभी लोग दलित आंदोलन के मजबूत पक्धर िरे । इन लोगों नरे आंदोलन चलाया और उसको आगरे बढ़ाया । इनहोंनरे दलितों की समसयाओं और समाज में उनकी षसिति को लरेकर नाटक लिखरे । आशचय्त की
बात है कि दलित इनके महतव को मानतरे हैं , लरेतकन ओबीसी के लोग जानतरे ही नहीं कि रामसवरूप वर्मा या ललईसिंह यादव की किताब कया है ? इन लोगों नरे दलितों के नायकों पर नाटक लिखरे । ललई सिंह यादव नरे पांच नाटक लिखरे , जिनमें शमबूक वध और एकलवय काफी प्रसिद्ध हैं । इस तरह वर्चसववादी वयवसिा के खिलाफ लंबा आंदोलन चला है , बाद में लालू प्रसाद यादव , मुलायम और मायावती नरे इसका विकास किया , लरेतकन बाद में यरे लोग सत्ा की राजनीति करनरे लगरे । यानी राजनरेता सरे इतर
विषमता को मिटाने के लिए जोतिबा फु ले और सावित्रीबाई फु ले का योगदान अविस्मरणीय है । जोतिबा फु ले ने इन विषमताओं को लेकर एक किताब ‘ गुलामगिरी ’ लिखी , जिसका अं ग्ेजी में भी अनुवाद हो चुका है । इस किताब में उन्ोंने ब्ाह्मणवाद के खिलाफ संघर्ष , स्त्री शिक्ा , किसानों और खेतिहर मजदूरों , दमितों-दलितों , शोषितों को आवाज देने का काम किया ।
यरे लोग पिछड़ों-दलितों के बीच सामाजिक परिवर्तनकारी राजनीति नहीं कर सके । इनकी राजनीति कुसटी तक सीमित हो गई ।
विषमता को मिटानरे के लिए जोतिबा फुलरे और सावित्ीबाई फुलरे का योगदान अविसमरणीय
है । जोतिबा फुलरे नरे इन विषमताओं को लरेकर एक किताब ‘ गुलामगिरी ’ लिखी , जिसका अंग्रेजी में भी अनुवाद हो चुका है । इस किताब में उनहोंनरे रिाह्मणवाद के खिलाफ संघर्ष , सत्ी शिक्ा , किसानों और खरेतिहर मजदूरों , दमितों- दलितों , शोषितों को आवाज दरेनरे का काम किया । फुलरे दंपतत् के शिक्ा खासकर सत्ी शिक्ा के लिए योगदान को इसी सरे समझा जा सकता है कि उनहोंनरे महाराष्ट्र में षसत्यों के लिए पहला सकूल खोला , जोकि भारत में भी महिलाओं का पहला सकूल था । सत्ी शिक्ा की दिशा में फुलरे दंपतत् द्ारा उठाए गए इस कदम का सवणषों नरे खासा विरोध किया । सवर्ण समाज में सत्ी शिक्ा वर्जित थी , सवर्ण महिलाएं तो दलितों सरे भी महादलित थीं । वरे 100-150 साल पहलरे तक घर सरे बाहर कदम नहीं रख सकती थीं । एक ऐसरे समाज में फुलरे दंपतत् का सत्ी शिक्ा के लिए सकूल की सिापना करना निशचय ही साहसिक कदम था । सावित्ीबाई फुलरे घर सरे बाहर निकलकर पढ़ानरे का काम करनरे वाली पहली तशतक्का थीं । जब वो सकूल के लिए निकलतीं थी , तो अपनरे साथ घर सरे हमरेशा एक अतिरिकत साड़ी लरेकर चलती थीं कयोंकि उनहें तंग करनरे और सत्ी शिक्ा का विरोध करनरे के लिए उन पर गोबर और पतिर फेंके जातरे िरे , उन पर भद्ी रषबतयां कसी जाती थीं , मगर फिर भी वरे पीछे नहीं हटीं । मगर ताज्ुब की बात यह है कि लरेखकों नरे फुलरे दंपतत् के शिक्ा खासकर सत्ी शिक्ा के क्रेत् में किए गए काम को कभी उस तरह तवज्ो नहीं दी , जिस तरह राजा राममोहन राय को । खास बात तो यह है कि राजा राममोहन राय के समय तक शिक्ा का काफी प्रचार-प्रसार हो चुका था । सही मायनों में दरेखा जाए तो फुलरे दंपतत् के संघर्ष नरे महाराष्ट्र में दलित आंदोलन की नींव रखनरे का काम किया ।
दतक्ण भारत में दलित मसीहा के बतौर इरोड वेंकट नायकर रामासामी परेरियार को दरेखा जाना चाहिए । परेरियार नरे रिाह्मणवाद के खिलाफ वहां एक वृहद् आंदोलन की नींव रखी । उनहोंनरे दतक्ण भारत में दलितों के मंदिरों
22 fnlacj 2022