85 लाख उज्वला गैस और 75 लाख आयुष्मान कार्ड दिए हैं । किसान सममान निधि द्ारा 85 लाख किसानों को 17 हजार करोड़ रुपयरे की मदद और गरीब कलयाण योजना सरे 8.7 करोड़ परिवारों को मुफत राशन दिया है । गरीब कलयाण के इन प्रयासों सरे आठ वषषों में बिहार की ‘ आकांक्ी ’ जनता अब ‘ लाभार्थियों ’ में परिवर्तित होकर मजबूती के साथ नरेन्द्र मोदी के साथ खड़ी है । धयान रहरे कि केंद्रीय योजनाओं के अधिकांश लाभािटी पिछड़े और दलित समाज सरे आतरे हैं ।
महागठबंधन के पक् में एक तर्क उसके सामाजिक आधार को लरेकर दिया जाता है , जिसमें 13 प्रतिशत सवणषों को छोड़ सभी जातियों और मुषसलमों को महागठबंधन के खातरे में डालकर 15-85 की लड़ाई का नारा दिया जाता है । इस आकलन के अनुसार लगभग 30 प्रतिशत मुषसलम और यादव के ऊपर नीतीश कुमार के कारण महागठबंधन में लगभग 53 प्रतिशत पिछड़ों और दलितों के अतिरिकत वोट जोड़े जातरे हैं । जमीनी हकीकत भिन्न है , कयोंकि 2014 के आम चुनावों में अकेलरे लड़नरे पर जदयू का मत प्रतिशत 15.8 प्रतिशत रहा था और 2020 में भाजपा के साथ चुनाव लड़नरे
के बावजूद जदयू को अपनी सीटों पर सिर्फ 32.8 प्रतिशत वोट मिलरे , जबकि भाजपा के हिस्से 10 प्रतिशत अधिक 42.8 प्रतिशत वोट आए । इससरे सपष्ट है कि जदयू का कथित पिछड़ा , अतिपिछड़ा और दलित जनाधार जुमलरे के सिवा और कुछ नहीं । उपचुनावों में भाजपा को मोकामा और गोपालगंज में क्मशः 42.2 और 41.6 प्रतिशत वोट मिलरे , जबकि यहां सवणषों की संखया 18 और 15 प्रतिशत ही है । सपष्ट है बड़ी संखया में पिछड़ों और दलितों नरे भाजपा को वोट दिया ।
राजनीति में सामाजिक समीकरण अंकगणित नहीं , बषलक रसायनशासत् के आधार पर बनतरे हैं । 1990 सरे 2005 के बीच बिहार की राजनीति में यादव और मुषसलम समाज का दबदबा रहा , जिसके कारण अनय सभी वर्ग हाशियरे पर रहरे । नीतीश कुमार का उदय इसी पृष्ठिभूमि में गैर- यादव और मुषसलम के समर्थन सरे हुआ । दूसरी ओर 2005 सरे 2022 तक ( बीच में 2015-17 को छोड़कर ) यादव और मुषसलम हाशियरे पर रहरे । राजद और जदयू के मिलन सरे उनके सामाजिक आधार का मिलन सामाजिक अंतर्विरोध के कारण संभव नहीं है ।
बिहार में एक लंबरे समय तक भाजपा को
सवणषों की पाटटी बताकर अनय वगषों में भ्रांति पैदा की गई , लरेतकन 2014 के आम चुनाव के बाद भाजपा नरे इस भ्रांति को दूर करनरे के प्रयास किए हैं । आज भाजपा के प्रदरेश अधयक् और विधान परिषद में नरेता प्रतिपक् पिछड़े वर्ग के हैं । पिछली सरकार में दोनों उपमुखयमंत्ी पिछड़े िरे और 2015 की विधानसभा में नरेता प्रतिपक् भी पिछड़े िरे । भाजपा टिकट वितरण में भी लगातार पिछड़ों की भागीदारी बढ़ा रही है । पिछड़े वर्ग सरे आनरे वालरे भाजपा के सववोच्च नरेता नरेन्द्र मोदी के नरेतृतव में आज बिहार भाजपा का कलरेवर पूरी तरह बदला दिखता है । यह विपक् की पिछड़ों के ध्ुवीकरण की रणनीति को कुंद करनरे में सक्म है ।
नीतीश कुमार की पीएम पद के लिए विपक् के साझा उममीदवार की दावरेदारी के विफल प्रयास के बाद 2024 में वोटरों के पास भाजपा के अतिरिकत कोई और विकलप नहीं बचता । उपचुनावों के परिणाम और पिछलरे सात वषषों में बिहार की राजनीति में आए आमूलचूल परिवर्तन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि आगामी लोकसभा चुनावों में महागठबंधन द्ारा भाजपा को कमजोर करके आंकना बहुत बड़ी भूल होगी ।
( साभार )
fnlacj 2022 15