আমি বড়ো হচ্ছি
আমি এখন বড় হচ্ছি-শৈশবের গণ্ডি পেরিয়ে;
কেউ বোঝে না গো,
চাঁদমামা,শুকতারা ,চম্পক আমার পড়া।
চাঁদ থেকে চাঁদের বুড়িকে
পলকে সরিয়ে ফেলতে পারি।
নতুন ক্যালকুলেশনটা স্বপ্নে পাওয়া।
আমি স্বপ্ন দেখি,
দেখতে দেখতে রঙগুলোকে চিনতে শিখি।
আমি যে বড় হচ্ছি কেউ বোঝে না গো।
মা করে শুধু কমপ্লেন-
আমি বলি - মোটেও না !
এভাবে একদিন কোথাও গিয়ে দাঁড়াবো
শৈশব-কৈশোরকে পিছনে ফেলে,
আমি এখন বড় হচ্ছি মা
কেন তুমি বোঝো না ?
Photo courtesy of Malabika Chanda
अब तो जागो
चीर डालो समुद्र का सीना ,
है अगर भुजाओं मेँ बल ।
पार निकल जाओ सीमाओं के ,
है अगर चुनाव मेनिफेस्टोँ मेँ दम ।
कर दो छलनी - छलनी दुश्मनों का सीना ,
है अगर अपनोँ से बिछुड़ने का गम ।
अरे! क्योँ इज्जत की धज्जियाँ ,
उड़ाते हो अपनों की ।
कुछ तो शर्म करो कठपुतलों ,
है अगर इज्जत थोड़ी बची ,
अब तो जनता की सुन लो ,
जनता के ए नुमाइन्दो ।
अपने फायदे को सूँघते लालची भेड़ियों ,
अब तो देश की ज़रा सी फिक्र कर लो ।
एक बार के लिए ही सही,
हे देश के सेवक ,
देश की सेवा तो कर लो ।
Photo courtesy of Somenath Rudra
अपनों का सीस कट चुका कईयोँ बार ,
अब तो एक बार दहाड़ के दिखलाओं ।
अगर अब भी है लाज बची थोड़ी सी ,
कर लो प्रण ,
की गंदी राजननीति का फायदा लूटने को ,
अब और न सीस कटने देंगे,
कटना ही है तो अब ,
देश की शान मेँ सीस कटवाएँगे ।
कटना ही है तो अब ,
देश की शान मेँ सीस कटवाएँगे ।