BISWAS Nov 1 Issue 18 | Page 143

हमारे देश के लोगों की एक ख़ासियत यह है कि वे अपनी आँखें तभी खोलते हैं, जब कोई बड़ा नुकसान होता है. लेकिन तब तक समय हाथ से निकल चुका होता है. एक उदाहरण दिया जा सकता है अगर हम पके हुए चावल का परीक्षण उसके एक दाने से कर लेते हैं, तो उसका एक उदाहरण देखिए. जोधपुर की एक अदालत ने आसाराम बापू को एक लड़की का यौन शोषण करने का दोषी ठहराते हुए उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई है. वह इस समय जेल में बंद है.

इस फैसले का जनसामान्य द्वारा स्वागत ही किया था. इससे पहले आसाराम बापू उसके असंख्य भक्तों के लिए प्रातःस्मरणीय, पूज्यपाद आदि थे. लेकिन जैसे ही उसके भीतर का बलात्कारी सामने आया, वैसे ही ये आसाराम लोगों के लिए दुश्मन बन गया. संक्षेप में, मेरा मतलब यह है कि आसाराम बापू का अचानक से उदाहरण देने का कोई मतलब नहीं है, लेकिन इससे बेहतर (?) 'अंध भक्ति' का दूसरा कोई उदाहरण नहीं है. समाज को इस मामले से सीख लेनी चाहिए थी कि हमें किसी का और किसी भी चीज का आंख मूंदकर समर्थन नहीं करना चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से हम ऐसे कई आईक्यू- परीक्षणों (बुध्यांक कसौटी) में असफल रहे हैं. वर्तमान में कोरोना और डब्ल्यूएचओ, जिसे मैं 'विश्व रोग संगठन' के रूप में संदर्भित करता हूं, इस संगठन और उसके संबद्ध 'वैज्ञानिकों'(?) द्वारा हाइपरकापनिया, म्युकरमायकोसिस ब्लैक फंगस, ऑक्सीजन की कमी, 'डेल्टा या डेल्टा प्लस' वेरिएंट, आदि के रूप में वर्णित किया गया है. अब इसके असंख्य मरीज मिल रहे हैं. वास्तव में यह लोगों की बुद्धि की परीक्षा है. आप किसी चीज़ पर कितना विश्वास कर सकते हैं, इसकी एकमात्र परीक्षा 'मॉक ड्रिल' है, जो चल रही है. कभी पूर्ण लॉकडाउन, कभी आंशिक लॉकडाउन, कभी संचार प्रतिबंध (कर्फ्यू), और इस पर सौ प्रतिशत विश्वास करके हम एक बार फिर आईक्यू टेस्ट में फेल हो गए हैं. इसे ही दूसरी भाषा में 'माइंड कंट्रोल' कहते हैं.

देश में मौजूदा असामान्य स्थिति के लिए लोग खुद जिम्मेदार हैं. लोगों का अंधापन इस हद तक चला गया है कि अब पुलिस भले ही लोगों के घरों में घुसकर जबरन सभी को पकड़कर कोरोना का टीका लगवा दे, तो भी यही कहा जाएगा कि जो हो रहा है, वह हमारे भले के लिए ही हो रहा है. ऐसे में कोई भी सरकार से यह नहीं पूछेगा कि वैक्सीन के घटक क्या हैं? या अगर वैक्सीन से जान चली जाती है, तो कौन जिम्मेदार होगा? इसे ही कहते हैं अंध भक्ति! इन अंधभक्तों को चाहे कितना भी सबूत दे दिया जाए, वे उस पर नज़र भी नहीं डालेंगे. जब एक मस्तिष्क गिरवी रखा जाता है, तो व्यक्ति सामान्य रूप से सोचने की क्षमता खो देता है. हम कोरोना और टीकाकरण में इतने मशगूल हैं कि अगर कल सरकार और गोदी मीडिया यह घोषणा कर दें कि जिन लोगों का टीकाकरण नहीं हुआ है, वे कोरोना के सुपर स्प्रेडर्स हैं, तो लोग ऐसे लोगों को ढूंढेंगे और उन्हें कुचल देंगे या फिर उनकी छाती पर बैठकर उन्हें जबरन टीका लगवाएंगे.

जो हो रहा है, वह हमारे भले के लिए ही ?