Punam Sinha
दूर गगन तक फैल गयी है तरुनाई
झूम झूम के घूंघट खोले पुरवाई
फूल फूल पे भौंरें डोलें...मुख चूमें
कली कली अनजानी खुद ही शरमाई
पीली सरसों ने सुगंध बिखरा दी अपनी
गाने लगी हवा...लो फिर बसंत आई...!!
***पूनम***