Mohinder Paljit Kaur
शीर्षक-"बसंत " / सप्ताह 1
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सुकुड़ते से पत्ते और ठिठुरती सी रातें
शीत विरह का अंत आ गया है
लो प्रिये फागुन आ गया है
फूलों की मादक सुगंध है
अमिया की बौर खिल उठी है
राहें सब महक उठी है .
कोयल बावरी कूक रही है
लगता है मधुमास आ गया है !
अमलतास के फूल लाली लाली
भँवरे उड़ते डाली डाली ...
सरसों की सुगंध भीनी भीनी ..
और लताओं के आड़ झीनी झीनी
लो प्रिये फागुन आ गया है .....
परदेस ने श्वेत बर्फ की चादर ओढ़ी है
चले आओ देश का बसन्त बुलाता है
फूलों की खिलती क्यारियां
तुम्हारे स्वागत की तैयारियां ..
बसंत आ गया है ..
मदनोत्सव छा गया है ..
तुम बिन ये रंगों का त्यौहार सूना
ह्रदय का दर्द है दूना
शून्य ताकते विगत मधुमास बीता
गहरी अकुलाहट में सब कुछ रीता
प्रिय चली आओ ..
लो अबके फागुन फिर आ गया है ...