Basant 10 Feb 3013 | Page 27

‎(शीर्षक-"बसंत " / सप्ताह 1)

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वर्तमान परिवेश मे बसंत ऋतु की अगवानी...

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गहन तिमिर धूमिल शिशिर और आशाओ का अंत.

आकर यहाँ कैसा लगता है तुम्ही बोलो बसंत.

है स्वार्थ की अब राजनीति, बनावटी है सारी प्रीति.

उपर से मानव का अपना महानता का दंभ.

आकर यहाँ कैसा लगता है तुम्ही बोलो बसंत.

टेसू को निगला काला धुआँ, जहरीली हो गई हवा.

सब माया के भ्रमजाल मे उलझे, कोई नहीं स्वतन्त्र.

आकर यहाँ कैसा लगता है तुम्ही बोलो बसंत.

पर्यावरण का ह्रास हुआ, कहते हैं पर विकास हुआ.

झेल रही प्रकृति मानव की दानवता का दंश.

आकर यहाँ कैसा लगता है तुम्ही बोलो बसंत.

कुचलकर बढ़ने की होड़ है, जाने ये कैसी दौड़ है.

शांति पर्याय धर्म से अब फैल रहा आतंक.

आकर यहाँ कैसा लगता है तुम्ही बोलो बसंत.

अपनी ही विकृत सोच है, नहीं और किसी का दोष है.

बताते हैं मगर सब इसे एक-दूजे का षड़यंत्र.

आकर यहाँ कैसा लगता है तुम्ही बोलो बसंत.

आकर यहाँ कैसा लगता है अब तो बोलो बसंत.