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सामाजिक प्रणाली से , जो पुरुषों और महिलाओं के बीच के संपर्क को काट दे , यौनाचार के प्रति ऐसी अस्वसथ प्र्वृठत् का सृजन होता है जो अप्राकृतिक ए्वं अनय दूषित आदतों ओर साधनों को अपनाने के लिए प्रेरित करती है ।
ऐसा नहीं कि पर्दा और ऐसी ही अनय बुराइयां देश के कुछ भागों में हिंदुओं के कई वर्गों में प्रचलित नहीं हैं । परंतु अंतर यह है कि मुसलमानों में पर्दा प्रथा को एक धार्मिक आधार पर मानयता दी गई है , जबकि हिंदुओं में ऐसी षसथठत नहीं है । हिंदुओं की अपेक्ा मुसलमानों में पर्दा प्रथा की जड़ें गहरी हैं और उसे सामाजिक आ्वशयकताओं और धार्मिक अंकुशों के बीच अठन्वार्य संघर्ष को झेलकर ही समापत किया जा सकता है । मुसलमानों ने पर्दा प्रथा को समापत करने का कभी प्रयास किया हो , इसका भी कोई साक्य नहीं मिलता ।
इस तरह भारत के मुषसलम समुदाय के सामाजिक जी्वन में ही नहीं , बषलक राजनीतिक
जी्वन में भी एक प्रकार की गतिहीनता है । मुसलमानों को राजनीति में कोई रुचि नहीं है , बषलक उनकी रूचि मजहब में ही है । मुषसलम राजनीति अठन्वार्यत : मुललाओं की राजनीति है और ्वह मात् एक अंतर को ही मानयता देती है और ्वह है हिनदू और मुसलमानों के बीच मौजूद अंतर । जी्वन के किसी भी धर्मनिरपेक् तत्व का मुषसलम समुदाय की राजनीति में कोई सथान नहीं है और मुषसलम राजनीतिक जमात के के्वल एक ही ठनदचेरक सिद्धांत के सामने नतमसतक होते हैं , जिसे मजहब कहा जाता है । मुसलमानों में इन बुराइयों का होना दुःखद है । किंतु उससे भी अधिक दुःखद तथय यह है कि भारत के मुसलमानों में समाज-सुधार का ऐसा कोई संगठित आंदोलन नहीं उभरा , जो इन बुराइयों का सफलतापू्वतिक उनमूलन करने में सफल होता । मुसलमान यह महसूस ही नहीं करते कि यह सामाजिक बुराइयां हैं । परिणामतः ्वह उनके ठन्वारण हेतु सक्रियता भी नहीं दर्शाते । इसके
ठ्वपरीत अपनी मौजूदा प्रथाओं में किसी भी परर्वततिन का ठ्वरोध करते हैं ।
मुषसलम समाज की सबसे बड़ी सामाजिक समसया हैं कि ्वह आज भी भारत के संठ्वधान से शासित नहीं होना चाहता है । मुषसलम पर्सनल ललॉ ही मुषसलम समाज का सबसे बड़ा शत्ु है । मुषसलम समाज ने अपने पहचान को धर्म के आधार पर ही निर्मित किया है । परिणामस्वरूप समाज में वयापत कुरीतियों पर चर्चा ही नहीं हुई । सतय यह भी है कि भारतीय प्रायद्ीप में सामाजिक वर्गीकरण में जाति एक तथय है । इसलाम अपनाने के कारण मतांतरित लोगों में जातीय व्यवसथा बनी रही । इसलिए इसलाम मे भी जाति और ्वगति हैं । किसी प्रकार के सामाजिक नयाय के लिए इस तथय की अपेक्ा नहीं की जा सकती है । पसमांदा आंदोलन इन सभी ठ्वषयों को ठ्वमर्श में लाने का प्रयास कर रहा है । यह आंदोलन स्वीकार करता है कि मुसलमान में जातियां हैं और उसमें पदानुक्रम व्यवहार है । �
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