April 2025_DA | Page 29

असमर्थताएं हैं, के राजनीतिक वसधिांत कमो सवीकार करने के लिए मजबूर कर दिया ।
वायसराय कमो कार्यकारी पार्षद पद अथवा मंत्रिमंडल में मंत्री पद डा. आंबेडकर कमो जन विचारधारा, विशेषतः हरिजनों एवं शमोवषत वगगों की सामाजिक जागरूकता और धार्मिक ववद्रमोह तथा सामूहिक विचारधारा के पुनर्निर्माण के हित में अपने अधररन और लेखन कार्य से नहीं रमोक सका । शूद्रों के संबंध में उनका श्रेष्ठ शमोध कार्य पारमपरिक इतिहासकारों एवं पलौराणिक शाषसत्ररों के लिये एक चुनलौती था और यह उस समय तैयार किया गया और लमोगों के समषि रखा गया था, जब वह सरकार में सववोच् पद पर थे ।
उनहोंने महसूस किया कि सदियों पुरानी हीनता की उस भावना कमो, जिसने शमोवषत वर्ग के सामाजिक सतर और दिल-दिमाग कमो बलौना बना दिया है, मात्र सांसकृवतक और बुवधिमतापूर्ण तन एवं विचार परिवर्तनों से बदला नहीं जा सकता । अतः उनहोंने निष्कर्ष निकाला कि उनहें आर्थिक और राजनीतिक दमोनों ही अधिकार प्रदति करने होंगे । इसीलिए उनहोंने मलौवलक अधिकारों और निदेशक वसधिांतों के लिये कांग्ेस के प्रसतावों का सहमोललास समर्थन किया । भारत के आम लमोगों कमो हिनदू धर्म की सर्वत्र वरापत विचारधाराओं से परिपूर्ण पलौराणिक वातावरण से सवतंत्र कराने के लिये उनहोंने उनहें हिनदूमत से बाहर निकालने
का निशचर किया और सववोतिम वैकषलपक धर्म के रूप में उनहें बौद्ध धर्म अपनाने में मदद की वह सवरं भी बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए और उनहोंने काफी अधिक संखरा में हरिजनों, मुखर रूप से महाराष्ट्रवासियों कमो बौद्ध धर्म अपनाने के लिये राजी कर लिया । रद्वप क्रांतिकारी तरीकों कमो लेकर उनमें और सामरवादियों में काफी समानता थी, तथापि वह उनके देशेतर निष्ठा और बंदूक की नमोक वाली बात के पूर्णतः विरुधि थे । अतः उनके मजदूर संघ ने सामरवादी प्रधानता वाले अखिल भारतीय मजदूर संघ का अनुसरण करने से इंकार कर दिया ।
डा. आंबेडकर ने महसूस किया कि आने वाले लमबे समय तक अधिकांश हरिजन और पद्वलत वर्ग एवं निम्न और मधरम वर्ग के लमोग मजदूरी कमाने वाले ही रहेंगे । इसलिए श्रमिक वर्ग के हितों की रषिा सामानर षसथवत में सुधार करने वाले उपायों से ही की जा सकती है । अतः उनहोंने मजदूर संघों और उनसे संबंधित विधान का समर्थन पूरे शलौक से किया था । जब मैंने कृषिकर लमोक दल की ओर से एक समूह बनाया, तमो उनहोंने एक भूतपूर्व मंत्री सहित अपने तीन अनुयायियों कमो कृषिकर लमोकदल में शामिल हमोने के लिए प्रेरित किया । तब उनहोंने मुझे बताया था कि वह इस बात से अतरवधक प्रसन्न हैं कि
हम एक सवतंत्र संसदीय संघ बना पाए हैं । रद्वप वह संसद में एक सवतंत्र सदसर के रूप में रहे तथापि जब कभी भी मुझे आवशरकता पड़ी, उनहोंने किसानों और श्रमिकों के हितों का अपने भाषणों के माधरम से समर्थन किया और मुझे अपना सहरमोगी माना ।
यह सच है कि भारत का संविधान उन बुवधिमान लमोकतंत्रवादियों का कार्य है जिनहोंने वासतव में जनता की प्रगति की कामना की थी । इसके विधायी ढांचे का निर्माण और वा्ररचना अलादी और मुंशी जैसे प्रतिष्ठित विधि शाषसत्ररों ने की थी । संविधान सभा में दिए गए डा. आंबेडकर के ववद्तापूर्ण भाषण संविधान निर्माण में उनके पांडितरपूर्ण तथा सवतंत्र विचारों और दूरदर्शिता का परिचय देते हैं । वह एक सच्े लमोकतंत्रवादी थे । वह भारतीय सवराज के भावी सामाजिक लमोकतंत्र के मानवमोवचत वनदनेशक के रूप में जीवित रहे ।
( प्रमो रंगा 1946 में संविधान सभा के सद्य चुने गए । 1952 से लेकर 1991 तक संसद के सद्य रहे । उनका यह लेख 1991 में लमोकसभा सचिवालय द्ारा प्रकाशित ' सुप्रसिद्ध सांसद( ममोनमोग्ाफ सीरीज) डा. बी. आर. आंबेडकर ' नामक पु्तक में सम्मतलत किया गया था । पाठकों के लिए यह लेख साभार प्र्तुत किया गया है ।)
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