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संवैधानिक गणतंत्

आधुनिक युग के मनु डा. आंबेडकर

प्रमो. एन. जी. रंगा

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भीम राव आंबेडकर में एक विद्ान, क्रांतिकारी और राजनेता के सभी गुण थे । ऐसे महानुभाव लमोकतांत्रिक समाज में बहुत ही कम हमोते हैं । उनहें अपने राजनीतिक जीवन की प्रारंभिक सफलता उस समय प्रापत हुई, जब वह महातमा गांधी के संपर्क में आए और जब भारत कमो सवराज के लिए अपने दावों कमो औचितरपूर्ण
बनाने के लिये प्रगतिशील सामाजिक और मानवमोवचत मानकों कमो अपनाने की ऐतिहासिक आवशरकता थी । विधि मंत्री के रूप में उनकी दैवकृत षसथवत तथा विधि में सवीकृत ववद्ता और दलित वगगों के हितों के समर्थक हमोने के नाते उनहें संविधान सभा में सवतंत्र भारत के संविधान विधेयक के मुखर निर्माता और कर्णधार के रूप में चुना गया । इस प्रकार डा. आंबेडकर भारतीय संविधान पर भारतीय इतिहास की ममोहर
लगाने के लिए एक माधरम बने ।
डा. आंबेडकर समाज के एक वर्ग के अधिकारों के अमानवीय वंचन और उच् वगगों के लमोगों द्ारा भमोगे जा रहे गलत अधिकारों का विरमोध करने में आधुनिक युग के मनु के रूप में उभरे । कई लमोगों की भांति डा. आंबेडकर का भी वयसक मताधिकार में दृढ़ विशवास था, जिसे उनहोंने संविधान में अंकित किया । यह एक विडमबना ही थी कि प्रथम चुनाव में उनकी हार
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