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के कारण वह छारिों के बीच बहुत लोकतप्य थे । लेकिन लंदन में कानून और अर्थशासरि की पढ़ाई दोबारा शुरू करने के लिए उनहोंने अपने पद से इसिीिा दे दिया । कोलहापुर के महाराजा ने उनहें आर्थिक सहायता दी । 1921 में उनहोंने “ प्ोतवंशियल डिसेंट्रलाइजेशन ऑॅफ इमपीरियल फाइनेंस इन तरिटिश इंडिया ’ पर अपनी थीसिस लिखी और लंदन यूनिवर्सिटी से एम . एससी . की डिग्ी प्ापि की । उसके बाद उन्होंने कुछ समय जर्मनी की बॉन यूनिवर्सिटी में बिताया । 1923 में उनहोंने डीएससी के लिए अपनी थीसिस- “ प्ॉबलम ऑफ रुपी इटस ऑरिजन एंड सोलयुशन ” प्सिुि की । 1923 में उनहें वकीलों के बार में बुलाया गया ।
1924 में इंगलैंड से लौटने के बाद उनहोंने दलित विशों के कलयाण के लिए एक एसोसिएशन की शुरुआत की , जिसमें सर चिमनलाल सीतलवाड अधयक् और डा . आंबेडकर चेयरमैन थे । एसोसिएशन का तातकातलक उद्ेशय शिक्ा का प्सार करना , आर्थिक कसथतियों में सुधार करना और दलित विशों की शिकायतों का प्तिनिधितव करना था । नए सुधार को धयान में रखते हुए दलित विशों की समसयाओं को हल करने के लिए 3 अप्ैल 1927 को बहिष्कृत भारत समाचार परि शुरू किया गया । 1928 में , वह गवर्नमेंट लॉ कॉलेज , बम्बई में प्ोिेसर बने और 1 जून 1935 को वह उसी कॉलेज के तप्ंतसपल बन गए और 1938 में इसिीिा देने तक उसी पद पर बने रहे ।
13 अक्टूबर 1935 को नासिक जिले के येवला में दलित विशों का एक प्ांिीय सममेलन आयोजित किया गया । इस सममेलन में उनहोंने यह घोषणा करके हिंदुओं को हिप्भ कर दिया कि “ मैं हिंदू धर्म में पैदा हुआ , लेकिन मैं हिंदू
के रूप में नहीं मरूूंगा ” उनके हजारों अनुयायियों ने उनके फैसले का समर्थन किया । 1936 में उनहोंने बॉमबे प्ेसीडेंसी महार सममेलन को संबोधित किया और हिंदू धर्म का परितयाि करने की वकालत की । 15 अगसि 1936 को उनहोंने दलित विशों के हितों की रक्ा के लिए सविंरि लेबर पाटशी का गठन किया , जिसमें जयादातर श्रमिक वर्ग के लोग शामिल थे । 1938 में कांग्ेस ने असपृशयों के नाम में परिवर्तन करने वाला एक विधेयक पेश किया । डा . आंबेडकर ने इसकी आलोचना की । उनका दृकषटकोण था कि नाम बदलना समसया का समाधान नहीं है । 1942 में उनहें भारत के गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में लेबर सदसय के रूप में
आजादी के बाद , 1947 में उन्ें देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की पहलरी कै बिनेट में विधि एवं न्ाय मंत्री नियुक्त किया गया । लेकिन 1951 में कश्मीर मुद्े , भारत की विदेश नरीबत और हिंदू कोड बिल के बारे में प्रधानमंत्री नेहरू की नरीबत से मतभेद व्यक्त करते हुए उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया ।
नियुकि किया गया , 1946 में , वह बंगाल से संविधान सभा के लिए चुने गए । उसी समय उनहोंने अपनी पुसिक “ हू वर शूद्र ?” प्काशित की ।
आजादी के बाद , 1947 में उनहें देश के प्थम प्धानमंरिी जवाहर लाल नेहरू की पहली कैबिनेट में विधि एवं नयाय मंरिी नियुकि किया गया । लेकिन 1951 में कशमीर मुद्े , भारत की विदेश नीति और हिंदू कोड बिल के बारे में प्धानमंरिी नेहरू की नीति से मतभेद वयकि करते हुए उनहोंने मंरिी पद से इसिीिा दे दिया । 1952 में कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने भारत के संविधान का प्ारूप तैयार करने में उनके द्ारा दिए गए योगदान को मानयिा प्दान करने के लिए उन्हें एल . एल . डी . की उपाधि प्दान की । 1955 में उनहोंने थॉटस ऑन लिंकगवकसटक सटेटस नामक पुसिक प्काशित की ।
डा . आंबेडकर को उसमातनया विशवतवद्यालय ने 12 जनवरी 1953 को डॉकटरेट की उपाधि से सममातनि किया । आख़िरकार 21 साल बाद
उनहोंने 1935 में येवला में की गई अपनी घोषणा “ मैं एक हिंदू के रूप में नहीं मरूूंगा ” को सच साबित कर दिया । 14 अक्टूबर 1956 को नागपुर में एक ऐतिहासिक समारोह में उनहोंने बौद धर्म अपना लिया और 6 दिसंबर 1956 को उनकी मृतयु हो गई । 1954 में काठमांडटू में डा . आंबेडकर को " जगतिक बौद धर्म परिषद " में बौद भिक्ुओं द्ारा " बोधिसतव " की उपाधि से सममातनि किया गया । विशेष बात यह है कि डा . आंबेडकर को जीवित रहते हुए ही बोधिसतव की उपाधि से सममातनि किया गया ।
उनहोंने भारत के सवाधीनता संग्ाम और सविंरििा के बाद के सुधारों में भी योगदान दिया । इसके अलावा बाबासाहब ने भारतीय रिजर्व बैंक की सथापना में भी महतवपूर्ण भूमिका निभाई । इस केंद्रीय बैंक का गठन बाबासाहब द्ारा हिलटन यंग कमीशन को प्सिुि की गई अवधारणा के आधार पर किया गया था । डा . आंबेडकर के देदीपयमान जीवन इतिहास से पता चलता है कि वह अधययनशील और कर्मठ वयककि थे । सबसे पहले , अपनी पढ़ाई के दौरान उनहोंने अर्थशासरि , राजनीति , कानून , दर्शनशासरि और समाजशासरि का अच्ा ज्ञान प्ापि किया , लेकिन उनहें अनेक सामाजिक बाधाओं का सामना करना पडा ।
लेकिन उनहोंने अपना सारा जीवन पढ़ने और ज्ञान अर्जित करने तथा पुसिकालयों में नहीं बिताया । उनहोंने आकर्षक वेतन वाले उच्च पदों को ठुकरा दिया कयोंकि वह दलित वर्ग के अपने भाइयों को कभी नहीं भूले । उनहोंने अपना जीवन समानता , भाईचारे और मानवता के लिए समर्पित कर दिया । उनहोंने दलित वर्ग के उतथान के लिए भरसक प्यास किए I उनका जीवन इतिहास जान लेने के बाद उनके मुखय योगदान और उनकी प्ासंगिकता का अधययन एवं विशलेिण करना आवशयक और उचित है । आज भी भारतीय अर्थवयवसथा एवं भारतीय समाज अनेक आर्थिक एवं सामाजिक समसयाओं से जूझ रहा है । ऐसे में डा . आंबेडकर के विचार और कार्य इन समसयाओं को सुलझाने में मार्गदर्शन कर सकते हैं ।
8 vizSy 2024