नहीं होना चाहिए बकलक सामाजिक और आर्थिक विषयों में भी समान अवसर प्दान करना ही लोकतंरि का सही अर्थ है ।" डा . आंबेडकर का कहना था कि यदि सविंरििा के साथ-साथ लोगों को समाजिक और आर्थिक विकास में भाग लेने के समान अवसर प्ापि न हों तो वह सविंरििा ही नषट हो जाएगी । जिन लोगों का आर्थिक जीवन उनकी जाति के आधार पर निर्धारित किया गया हो और जिनकी सौदा करने की शककि छीन ली गई हो , उनके लिए वयापार या वयवसाय अथवा अनुबंध करार करने की सविंरििा निरर्थक है । समताविहीन सविंरििा का अर्थ है , " जमींदारों को किराए बढ़ाने की सविंरििा , पूंजीपतियों को काम का समय बढ़ा देने और मजदूरी घटा देने
की सविंरििा " ऐसी कसथति में गरीब , निरक्र , बेरोजगार लोगों को जो समाज का निचला वर्ग कहलाते हैं अपना पेट पालने के लिए आर्थिक सविंरििा गिरवी रख देनी पडिी है । इसीलिए डा . आंबेडकर ने आर्थिक विषयों में सरकारी हसिक्ेप का समर्थन किया । उनहोंने इस बात पर बल दिया कि समाज के गरीब , दलित और दुर्बल वर्ग की आर्थिक सविंरििा बनाए रखने के लिए सरकार समान आर्थिक अवसर उपलबध कराने का पूर्ण आशवासन दे ।
लोकतंरि को सफलतापूर्वक सथातपि करने के लिए अतयावशयक बातों की चर्चा करते हुए डा . आंबेडकर कहते हैं कि पहली शर्त यह है कि " समाज में ऊूंच-नीच की भावना नहीं रहनी
चाहिए । समाज में उतपीतडि वर्ग नहीं होना चाहिए , शोषित वर्ग नहीं होना चाहिए । सभी सुख-सुविधा प्ापि एक वर्ग और केवल दुःखों , अभावों को भोगने वाला एक वर्ग , ऐसी कसथति नहीं होनी चाहिए । रकिरंजित कांति के बीज इस प्कार विभाजित समाज में मौजूद होते हैं और लोकतंरि ऐसी कांति को रोक नहीं सकेगा ।'
इसी भाषण में डा . आंबेडकर ने भविषयवाणी की- " समाज के भिन्न- भिन्न विशों के बीच की यह गहरी खाई लोकतंरि की सफलता के मार्ग में सबसे बडी बाधा तसद होगी । लोकतंरि में सभी को समान मतदान करने का अधिकार हो , चाहे वह उतपीतडि हो या दलित , उसके अधिकार छिन गए हों या वह बोझ ढोता हो , चाहे वह
vizSy 2024 11