पशपछत न थ की कह नी
Divyank Jain
एक समय थ जब धरती अनचगनत प्र झणयो से भरी पडी थी, मनष्यो की भी कई प्रज छतय ह आ करती थी । कई मह न प्रज छतय ुं लप्त हो गई, क्जन्हें अब हम देवत कहने लगे हैं । अब उनक कोई अक्स्तत्व नहीुं बच, लेककन इस धरती की सरक्ष मे उनके योगद न को नजरअुंद ज नही ककय ज सकत है । इन्हीुं प्रज छतयों मे एक थे“ नील-म नव”, धरती के दक्षक्षण ठहस्से मे आसम न को छ ते नीले पवशतों के बीच इनक नगर थ । नीले पवशतों के पेडो की पक्त्तयों की तरह इनक रुंग भी नील ही थ और नगीने सी चमकद र आखे । भीमक य, बलव न शरीर व ले ये नीले लोग पशओुं से असीम प्रेम करते थे, इनके शलए पशओुं क दज श म नो भगव न के सम न थ … सम्पूणश धरती पर ये शसफश दो ही चीजों के शलए ज ने ज ते थे” पशओुं से असीम प्रेम” य” ववन शक री गस्स”… नीले पवशतों, और वह के सभी जीवों की रक्ष क द छयत्व नील-म नवो के मझखय पर होत थ, लेककन नील म नवो के आझखरी मझखय की मृत्य कई स ल पेहले हो गई और इसी के स थ नीले लोगो के बरे ठदन शरू हो गए । य तो नीले पवशतों क सूयोदय हमेश सुंदर ही होत थ, लेककन आज क रक री सी िण्ड के क रण सबह कक धूप क फी सकू न दे रही थी । एक सुंदर नोजव न अपने सर बेल( yak) के स थ सबह की धूप सेख रह थ, अपने द ठहने ह थ से सर बेल के नककले मोटे सीुंग को पकड कर दसरे ह थ को उसके कप ल पर घम रह थ ।
“ वरसभ! एक तम ही हो जो मेरी ब तें चपच प स नते हो और अपने ववच र मझ पर नही थोपते”, नौजव न ने अपन ह थ उसके सीुंग से हट कर लम्बे क ले ब लों से भरी पीि पर रख, नोजव न की आखो की चमक आज कफकी पड रही थी ।“ बर मत म नन शमत्र, आज तम्ह री सव री करने क मन नही है“, नौजव न ने उद सी से जमीन की तरफ देख, दर नीले पवशतों के पीछे से उपर उित सरज और सबह की पहली उड न भरते पक्षक्षयों को देख कर गहरी स ुंस ली … लेककन ये नज र भी उसे होसल नही दे प रह थ । उसने कफर नजरे नीचे झ क ली, और इसी क्षण एक लम्बी सी परछ ई आगे बढती ह इ उसके पेरो तक आ गई“ मेरे बेटे … न थ! तम यह ाँ तय कर रहे हो??” उसने पहली ब र ककसी प रुष की आव ज मे बेट शब्द सन, उसने जट से उपर देख बढे, सफे द कपडो मे एक मछन बडी सी मस्क न के स थ खडे थे, नोजव न न थ खड हो गय और सोचते ह ए बोल“ आच यश स्थलभद्र …??” आच यश ने लम्बी मस्क न दी और दो कदम आगे आए,” 20 स लो ब द भी ये जगह बबल्क ल वैसी की वैसी है” आच यश ने च रो तरफ नजर गम ते ह ए कह“ लेककन तम क फी बडे हो गए हो”