म
वैष्णो दे वी:
जय म त दी
चल पडे जम्मू से कटर , कटर से म ाँ के दर पर ,
भक्तत मे शक्तत है , पह ुं च दे गी पह डी के शशखर पर ,
म ाँ के दशशन के शलए चले एक के पीछे एक श्रद्ध ल ,
म ाँ मे अप र
शक्तत है और म ाँ है बडी दय ल ,
बडी लुंबी और कठिन है म ाँ के दरब र की डगर ,
मन मे है अटूट आस्थ , तो आर म से कट ज एग सफर ,
जय म त दी के न रों से गूुंज रह है स र र स्त ,
कौन कह ाँ से आय है , कोई एक द ज
े को नहीुं पहच नत ,
सब के अुंदर जोश है और है बडी उमुंग ,
र स्ते मे कोई नहीुं कर रह है ककसी को भी तुंग ,
अन श सन मे कैसे चलते है , कोई वह ाँ ज कर सीखे ,
म ाँ के दशशन सब को शमलेंगे , च हे कोई आगे हो य पीछे ।
जोर से बोलो जय म त दी ,
स रे बोलो
क छ भतत जन पैदल ही कर रहे है र स्त प र ,
क छ आगे बढ़ रहे है होकर घोडे पर सव र,
घोडे की सव री भी नहीुं है कोई आस न ,
ज ुंघे
छछल ज ती हैं , पड ज ते है छनश न ,
करीब आध र स्त चले होंगे, तो आय अधश क ाँ व री ,
घोडे व ले से कह
अभी थोड स स्त ल
बह त हो गयी घोडे की सव री ,
Public चलती ज रही है लगते ह ए म ाँ क जय क र ,
कोई थक हो य जोश मे हो सबक थ यही न र ,
चलो ब ल व आय है म त ने ब ल य है ,
यह गीत ग ग
कर सबने एक द स
रे क मन बहल य है ,
हमे भी आ गय जोश , चढ़ गए हम भी कफर से घोडे पर ,
ि न ली इस ब र तो , ककतन भी थक ज ए
जोर से बोलो जय म त दी ,
स रे बोलो
जय म त दी ।
उतरें गे केवल मुंक्जल पर ,
जय म त दी ।