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म वैष्णो दे वी: जय म त दी चल पडे जम्मू से कटर , कटर से म ाँ के दर पर , भक्तत मे शक्तत है , पह ुं च दे गी पह डी के शशखर पर , म ाँ के दशशन के शलए चले एक के पीछे एक श्रद्ध ल , म ाँ मे अप र शक्तत है और म ाँ है बडी दय ल , बडी लुंबी और कठिन है म ाँ के दरब र की डगर , मन मे है अटूट आस्थ , तो आर म से कट ज एग सफर , जय म त दी के न रों से गूुंज रह है स र र स्त , कौन कह ाँ से आय है , कोई एक द ज े को नहीुं पहच नत , सब के अुंदर जोश है और है बडी उमुंग , र स्ते मे कोई नहीुं कर रह है ककसी को भी तुंग , अन श सन मे कैसे चलते है , कोई वह ाँ ज कर सीखे , म ाँ के दशशन सब को शमलेंगे , च हे कोई आगे हो य पीछे । जोर से बोलो जय म त दी , स रे बोलो क छ भतत जन पैदल ही कर रहे है र स्त प र , क छ आगे बढ़ रहे है होकर घोडे पर सव र, घोडे की सव री भी नहीुं है कोई आस न , ज ुंघे छछल ज ती हैं , पड ज ते है छनश न , करीब आध र स्त चले होंगे, तो आय अधश क ाँ व री , घोडे व ले से कह अभी थोड स स्त ल बह त हो गयी घोडे की सव री , Public चलती ज रही है लगते ह ए म ाँ क जय क र , कोई थक हो य जोश मे हो सबक थ यही न र , चलो ब ल व आय है म त ने ब ल य है , यह गीत ग ग कर सबने एक द स रे क मन बहल य है , हमे भी आ गय जोश , चढ़ गए हम भी कफर से घोडे पर , ि न ली इस ब र तो , ककतन भी थक ज ए जोर से बोलो जय म त दी , स रे बोलो जय म त दी । उतरें गे केवल मुंक्जल पर , जय म त दी ।