कबीर दास जी के दोहे से सीखिए !
1) बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय। अर्थ : जब मैं इस संसार में बुराई खोजने चला तो मुझे कोई बुरा न मिला. जब मैंने अपने मन में झाँक कर देखा तो पाया कि मुझसे बुरा कोई नहीं है.
2) पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।अर्थ : बड़ी बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके. कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा.
3) साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय, सार-सार
को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।अर्थ : इस संसार में
ऐसे सज्जनों की जरूरत है जैसे अनाज साफ़ करने
वाला सूप होता है. जो सार्थक को बचा लेंगे और
निरर्थक को उड़ा देंगे.
4) धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली
सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय।अर्थ : मन में
धीरज रखने से सब कुछ होता है. अगर कोई
माली किसी पेड़ को सौ घड़े पानी से सींचने लगे
तब भी फल तो ऋतु आने पर ही कोय,
चिंटू आराम से बैठा था।
मींटू (चिंटू से) - कुछ काम करो।
चिंटू (मींटू से) - मैं गर्मियों में काम नहीं करता हूं।मींटू- और सर्दियों में?
चिंटू- गर्मियां आने का इंतजार
संताःकेला कितनेमें?फलवालाःएक रूपए.संताः 60 पैसे में दोगे?
फलवालाःइतने में तो बस छिलका मिलेगा.संताःये लो 40 पैसे, मुझे बस केला चाहिए.
contributed by:
Shreeyaa 8D
RANGOLI-HINDI
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