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नयूज चैनल के ब्लॉग पेज पर लिखता है कि पशतु और मनुष्य में यही त्वशेष अनतर है कि पशतु अपने त्वकास की बात नहीं रकोच सकता , मनुष्य रकोच सकता है और अपना त्वकास कर सकता है । हिनदू धर्म ने दलित ्वग्स कको पशतुओं से भी बदतर पसथति में पहतुँचा दिया है , यही कारण है कि ्वह अपनी पसथति परर्वत्सन के लिए पूरी तरह निर्णायक ककोतशश नहीं कर पा रहा है , हां , पशतुओं की तरह ही ्वह अचछे चारे की खकोज में तको लगा है लेकिन अपनी मानसिक गतुिामी दूर करने के अपने महान उद्ेशय कको गमभीरता से नहीं ले रहा है । इन्होने जको इसमें इनका मत सप्ट दिखाई दे रहा है किन्तु प्श्न यह भी खड़ा हकोता है कि क्या धर्मांतरण ही एक मात्र उपाय बचा है ? और यदि कर भी लिया क्या गारंटी है कि धर्मांतरण करने से सारे क्ठ दूर हको जायेंगे ? मान िको यदि धर्म परर्वत्सन कर सारे क्ट दूर हकोते तको आज मुस्लिमको के 56 देश है कितने देशों के मुस्लिम शांति और सामाजिक समर्धि , समरसता और रकोहार्द से जी्वन जी रहे है ?
साचजर् से सचेत रहना जरूरी
धर्मिक और जातिगत पागलपन मनुष्य के स्वभा्व में है रतुकरात कको जहर किसी पशतु ने नही दिया था , जीसस कको शूली पर लटकाने ्वाले भी मनुष्य ही थे , स्वामी दयानंद कको त्वर देने ्वाले बाहर से नहीं आये थे मतलब यह है कि मनुष्य ही मनुष्य समाज के त्वकास में बाधक रहा है । प्थम बात , हम मानते है कि देश में अभी भी कुछ जगह जातत्वाद और छुआछूत वया्त है और इस सामाजिक भेदभा्व की समसया से ककोई भी ्वग्स समतुदाय या देश अछूता नहीं है । यहाँ तक कि अमेरिका जैसे त्वकसित शक्तिशाली देश में भी गकोरे काले का भेदभा्व हमसे कहीं जयादा है । मुस्लिम देशों में तको शिया , रतुन्ी की आपसी जंग किसी से छिपी नही है पर पाकिसतान जैसे कुछ देशों में तको अहमदिया जैसे गरीब तबके पर खतुिे रूप से अत्याचार हकोते है । दूसरी बात आज िकोगों कि रकोच काफी हद तक बदली और बदल रही है । क्या ककोई शहरों में किसी हि्वाई
की जाति पूछकर समकोरा खरीदता है ? रेहड़ी ्वाले उसका धर्म या जात पूछकर पानीपूरी या जलेबी खाता है ? नहीं पूछता परन्तु यदि किसी रेहड़ी ्वाले से किसी ग्ाहक का झगड़ा हको जाये और नौबत मारपीट तक आ जाये तको मीडिया से जतुड़े िकोग रेहड़ी ्वाले की जाति धर्म पूछकर , यदि दतुभागय से किसी कारण ्वको रेहड़ी ्वाला मुस्लिम या दलित हतुआ तको खबर जरुर बना देते है कि देखिये किस तरह एक दलित या अलपरंखयक पर हमला हतुआ उसके लिए नयूज सटूतियको से इंसाफ की मांग उठाई जाएगी । इसके
बाद तथाकथित दलितों के दे्वता हैं , गरीबों के रहनतुमा हैं , जिनहें इसी काम के लिए देश-त्वदेश से पैसा मिल रहा है । ये धार्मिक ्व जातीय घमृणा के सौदागर सड़कों पर ज्ापन , धरना , प्दर्शन , सतयाग्ह तथा महापड़ा्व डालने की घकोरणा कर धरना प्दर्शन शतुरू कर देते है और इस मामले कको शतुरू करने ्वाली मीडिया लाइ्व प्रारण शतुरू कर देती है । इनकी ककोतशश यही रहती है कि जिसे ये दलित दलित कहकर कहकर सात्वना प्कट करते है जितना यह चाहते है ्वह के्वि ्वही और उतना ही रकोचे जितना यह िकोग चाहते जिसका मापदंड पहले से ही तय लगता
है !
यह िकोग हर एक मतुद्े पर ऐसा दिखाते है जैसे इनके हाथ में दलितों का भविष्य है , ये गलत मतुद्े तथा अधूरी जानकारियों के जरिए देशभर के दलित बहतुजन गतुमराह कर रहे हैं , क्योंकि ये स्वघकोतरत महान अंबेडकर्वादी हैं । कई बार तको लगता है जैसे कुछ नेताओं ने देश कको खंड-खंड करने की साजिश का जिममा सा ले लिया हको ? हम मानते है कुछ समसया त्वराट रूप लेकर खड़ी हको जाती हैं । किन्तु क्या उसका निदान राजनीति और मीडिया ही कर सकती है ,
उसके लिए नयाय प्णाली ककोई मायने नही रखती ? यदि हाँ तको ऐसी धारणा कको कौन बल दे रहा है यह प्श्न भी इस संदर्भ में प्ारंगिक है । हमे किसी प्कार की राजनीति नहीं करनी है , जिसे करनी है ्वको करे , हम मान्वता , शांति , सहिष्णुता , भाईचारे , समानता तथा स्वतंत्रता जैसे िकोकतांत्रिक मूलयों के पक्िर है और रहेंगे । किन्तु किनही ्वजहों से जब कुरीति , छुआछूत के कारण या किसी अनय ्वजह से हमारे देश या धर्म पर ठेस लगती है तको उसकी सीधी पीड़ा हमारे ह्रदय में हकोती है ।
( साभार )
38 दलित आं दोलन पत्रिका uoacj 2021