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लाल बहादुर सिंह
त्र प्देश में सभी पार्टियों का

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चतुना्व अभियान शतुरू हको चतुका
है । तरह तरह के मतुद्े चर्चा में हैं , पर इन सब के बीच आशचय्सजनक ढंग से जको मतुद्ा गायब है , ्वह है दलित एजेंडा । छकोटी राजनीतिक पार्टियां और कुछ िकोकतापनत्रक मंच जरूर उनके र्वाल उठाते हैं , पर मतुखयिारा की पार्टियों के लिए लगता है यह ककोई मतुद्ा ही नहीं है । जबकि तथ्य यह है कि डबल इंजन सरकार में भी जिसकी अपेक्ाएं अधूरी हैं और उममीदें पूरी नहीं हको पाई हैं , ्वे दलित ही हैं- उनके मान-सममान , रतुरक्ा रकोजी-रकोजगार , शिक्ा-स्वास्थय सब पर बहतुत काम किया जाना बाकी ही है ।
माया — मोह में फं सी मायावती
ऐसे माहौल में दलित राजनीति के सबसे बड़े चेहरे के तौर पर पहचानी जाने्वाली माया्वती की राजनीति कको लेकर तरह तरह के कयास लगाए जा रहे हैं । दरअसल , यह एक ऐसा दौर चल रहा है जब नेताओं के लिए त्वचारधारा का प्श्न तको अर्थहीन हको ही गया है , मतुद्ा-आधारित राजनीति अथ्वा सत्ा में हिसरेदारी जैसे प्श्न भी अ्वरर्वादी गठजकोड़ के लिए हथकंडा भर रह गए हैं । अपने कुनबे के लिए सत्ा-रतुख ही परम सतय और राजनीति का नियामक तत्व बन गया है । नेताओं का दलों के बीच इस तरह सहज अबाध आ्वागमन हको रहा है जैसे ये सब एक ही दल के अलग अलग डिपार्टमेंट हों अथ्वा सभी दल एक ही घर के अलग अलग कमरे हों ! ऐसे दौर में माया्वती की राजनीति कको जानने ्वाले समझते हैं कि उनके लिए ककोई दल अछूत नहीं है । भाजपा , कांग्ेर , सपा सबसे अतीत में उनके रिशते रह चतुके हैं , यहां तक कि गकोिरा के ततुरंत बाद के चतुना्वों में भी ्वे नरेंद्र मकोदी का चतुना्व प्चार कर चतुकी हैं । जाहिर है आने ्वाले महीनों में उनके राजनीतिक कदम पूरी तरह व्यावहारिकताओं कको धयान में रखकर ही तय होंगे । उनके लिए शायद बेहतरीन ्व रतुत्विाजनक माहौल यही हकोगा कि इस बार त्रिशंकु त्विानसभा बन जाय और उनके पास इतनी सीटें हों कि भाजपा ( या अंतिम त्वकलप के रूप मे सपा- कांग्ेर ) उनहें मतुखयमंत्री बना दे । सचमतुच क्या घटित हकोगा ्वह तको अभी भविष्य के गर्भ में है , पर माया्वती का क्या हकोगा , उससे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि दलितों का क्या हकोगा और दलित राजनीति का क्या हकोगा ।
अवसरवादी राजनीति की पराकाष्ा
पिछले दिनों माया्वती ने लखनऊ के ब्ाह्मण सममेिन में एससी — एसटी एक्ट कको लेकर सफाई दी । यह एक ऐसा कानून है जिसे दलित- आतद्वासी अपने ऊपर गैर-दलित प्भतुत्वशाली
तबकों द्ारा हकोने ्वाले अतयाचार के ख़िलाफ़ सबसे बड़ा रक्ा-क्वच मानते हैं , इस कानून की रक्ा के लिए 2 अप्ैि 2018 कको उत्र भारत का दलितों का सबसे बड़ा प्तिरकोि हतुआ था जिसमें अनेक नौज्वान मारे गए , हजारों जेल में डाले गए , अनेक अब भी हैं । ऐसे कानून कको , यह ठीक है कि जब आपकी सरकार बने तको उसे संत्विान सममत तरीके से लागू करिये , पर उसके बारे में आप ब्ाह्मण सममेिन में सफाई पेश करें तको उससे दलितों पर जतुलम करने ्वाले तत्वों का मनकोबल बढ़ता है और उसे ्वैधता मिलती है , उसी अनतुपात में दलित निरुतरातहत हकोते हैं , और अधिक अरतुरतक्त हको जाते हैं , यह उस संघर्ष का एक तरह से अपमान है । िरॉ . आंबेडकर समेत सामाजिक समता और मतुपक्त के तमाम पतुरकोिाओं के जको समारक और मूर्तियां माया्वती ने बन्वाई थीं , उस पर भी उसी सममेिन में उन्होने ्वायदा किया कि अब ्वे सत्ा में आएंगी तको अब यह सब नहीं बन्वाएंगी । ऐसी आपकी ककोई स्वताः अनतुभूति एक बात है , लेकिन ब्ाह्मण सममेिन में जब आप यह ्वचन देती हैं तको साफ लगता है कि यह आप दबा्व में कर रही हैं , दलितों कको कहीं न कहीं लगता है कि चतुना्वी फायदे के लिए आप उनके आतमरममान के प्तीकों के साथ समझौता कर रही हैं ।
दलितों के हितों से समझौता
व्यावहारिक ढंग से इसे देखने ्वाले बसपा के कतिपय समर्थक इसे 2007 की तरह ब्ाह्मणों के शक्तिशाली समूह का समर्थन पतुनाः हासिल करने की रणनीति के बतौर नयायसंगत बताते हैं । अव्वलन तको अब इस रणनीति का त्वरि हकोना तय है क्योंकि पररपसथतियां बिलकुि अलग हैं , पर अगर इसे कुछ सीमित चतुना्वी सफलता मिल भी जाय तको भी अपनी इस रणनीति से ्वे दलित एजेंडा कको जरूर कमजकोर कर रही हैं । जाहिर है , ईमानदार दलित कार्यकर्ताओं , शतुभचिनतकों के बीच इसे लेकर गहरी निराशा है । ब्ाह्मण्वादी त्वचारधारा के खिलाफ आजी्वन
uoacj 2021 दलित आं दोलन पत्रिका 29