यात र ् ा
हाँ , ये यात्रा ही तो ह
अं त से पहले की एक आिखरी यात्रा
जै से अब पतझर आने को ह
मे रे सारे अं ग िरस-िरस कर टू ट कर िबखर जायग
ज़मीन पर, और कोई अनजान मुसािफर
उसे पै रों से घसीटता चला जाये गा
या बाज़ होगा, मे रे बदन के िचथड़े से अपना िनवाला माँ ग ता हु आ ,
चुग ता हु आ ,
या पता सुख हवा म बह कर
िकसी शाख पर िफर टं ग जाऊं
और िग ँ तो ऐसे जै से मने एक नही
कई मौत महस ूस की हो
िफर एक रोज़, गरज कर त ूफान मुझ पर करे गा कु छ ऐसा कहर
की सं सार की हर ज़मीन पर मे रे मां स के पुज़ बीज की तरह साँ स
लग
िब कु ल आज ही िक तरह, मे रा एक पुज़ा अब भी हँ स रहा होगा,
कहता हु आ - बं ध ू ! या यात्रा कभी ख म होती है ?
इरािश झा