Sri Vageesha Priyah eSouvenir navya-smRti-deepaH Part 1 | Page 13
॥ श्रीः॥
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॥ श्रलक्ष्मरहयवदन लक्ष्मरनारायण वेणगोपाल परब्रह्मणे नमीः॥
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॥ श्र शठकोप रामानज देशशके भ्यो नमीः॥
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॥ श्र ब्रह्मतन्त्र स्वतन्त्र परकाल गरुपरम्परायै नमीः॥
िगवतो रजतमण्टपीः
ऊर्ध्वे मण्डलशो शनशवष्टकलशैरन्तीः फणरन्द्रासनश्लक्ष्णाशहशद्वषदाञ्जनेयशवलसिम्बाग्र्यदरपद्वय ैीः ।
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द्वाशर द्वार्स्ायताररेण च परीः परठे न कू माशद्वपश्लक्ष्णेण ैष समज्ज्वलोऽश्वशशरसो रौप्यो नवो मण्टपीः ॥