Sept 2025_DA | Page 7

घर में जलाई । अपनी पत्ी जीवन-साथिी सावित्ीिाई फुलरे को शिक्षित किया । उन्हें ज्ान- विज्ान सरे लैस किया । उनके भीतर यह भाव और विचार भरा कि सत्ी-पुरुष दोनों बराबर हैं । दुनिया का हर इंसान स्तंत्ता और समता का अधिकारी है । सावित्ीिाई फुलरे, सगुणाबाई, फाधतमा शरेख़ और अन्य सहयोगियों के साथि
मिलकर जयोधतिा नरे हजारों ्षषों सरे ब्ाह्मणों द्ारा शिक्षा सरे वंचित किए गए समुदायों को शिक्षित करनरे और उन्हें अपनरे मानवीय अधिकारों के प्रति सजग करनरे का बीड़ा उठाया । अपनरे इन विचारों को वय्हार में उतारतरे हुए फुलरे दंपति नरे 1848 में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला । यह स्कूल महाराष्ट् में ही नहीं, पूररे भारत में किसी भारतीय द्ारा लड़धकयों के लिए विशरेष तौर पर खोला गया पहला स्कूल थिा । यह स्कूल खोलकर जोतीराव फुलरे और सावित्ीिाई फुलरे नरे खुलरेआम धर्मग्रंथों को चुनौती दी ।
फुलरे द्ारा शूद्रों-अतिशूद्रों और महिलाओं को शिक्षित करनरे का उद्देशय अन्याय और उतपीड़न पर आधारित सामाजिक वय्स्था को उलट दरेना थिा, जब 1873 में अपनी किताब‘ गुलामगिरी’ की प्रसता्ना में उन्होंनरे इस किताब को लिखनरे का उद्देशय इन शबदों में प्रकट किया-‘ सैकड़ों
्षषों सरे शूद्रादि अतिशूद्र ब्ाह्मणों के राज में दुख भुगततरे आए हैं । इन अन्यायी लोगों सरे उनकी मुक्त कैसरे हो, यह बताना ही इस ग्रंथ का उद्देशय है ।’ फुलरे जितनरे बड़े समथि्णक शूद्रों-अतिशूद्रों की मुक्त के थिरे, उतनरे ही बड़े समथि्णक सत्ी- मुक्त के भी थिरे । उन्होंनरे महिलाओं के बाररे में लिखा कि‘ सत्ी-शिक्षा के द्ार पुरुषों नरे इसलिए बंद कर रखरे थिरे । ताकि वह मानवीय अधिकारों को समझ न पाए.’ सत्ी मुक्त की कोई ऐसी लड़ाई नहीं है, जिसरे जयोधतिा फुलरे नरे अपनरे समय में न लड़ी हो । जयोधतिा फुलरे नरे सावित्ीिाई के साथि मिलकर अपनरे परिवार को सत्ी-पुरुष समानता का मूर्त रूप बना दिया और समाज तथिा राष्ट् में समानता कायम करनरे के लिए संघर्ष में उतर पड़े ।
फुलरे नरे समाज सरे्ा और सामाजिक संघर्ष का रासता एक साथि चुना. सबसरे पहलरे उन्होंनरे हजारों ्षषों सरे वंचित लोगों के लिए शिक्षा का द्ार खोला । विधवाओं के लिए आश्रम बनवाया, विधवा पुनर्विवाह के लिए संघर्ष किया और अछूतों के लिए अपना पानी का हौज खोला. इस सबके बावजूद वह यह बात अचछी तरह समझ गए थिरे कि ब्ाह्मणवाद का समूल नाश किए बिना अन्याय, असमानता और गुलामी का अंत होनरे वाला नहीं है । इसके लिए उन्होंनरे 24 सितंबर 1873 को‘ सतयशोधक समाज’ की स्थापना की । सतयशोधक समाज का उद्देशय पौराणिक मान्यताओं का विरोध करना, शूद्रों- अतिशूद्रों को जातिवादियों की म्कारी के जाल सरे मु्त कराना, पुराणों द्ारा पोषित जन्मजात गुलामी सरे छुटकारा दिलाना । इसके माधयम सरे फुलरे नरे ब्ाह्मणवाद के विरुद्ध एक सांसकृधतक रिांधत की शुरुआत की थिी । 1890 में जोतीराव फुलरे के दरेहांत के बाद सतयशोधक समाज की अगुवाई की जिम्मेदारी सावित्ीिाई फुलरे नरे उठायी ।
शूद्रों-अतिशूद्रों और महिलाओं के अलावा जिस समुदाय के लिए जोतीराव फुलरे नरे सबसरे ज़़यादा संघर्ष किया । वह समुदाय किसानों का थिा.‘ किसान का कोड़ा’( 1883) ग्रंथ में उन्होंनरे किसानों की दयनीय अवस्था को दुनिया के
सामनरे उजागर किया । उनका कहना थिा कि किसानों को धर्म के नाम पर भट्ट-ब्ाह्मणों का वर्ग, शासन-वय्स्था के नाम पर ध्धभन् पदों पर बैठे अधिकारियों का वर्ग और सरेठ-साहूकारों का वर्ग लूटता-खसोटता है । असहाय-सा किसान सबकुछ बर्दाशत करता है ।
इस ग्रंथ को लिखनरे का उद्देशय बतातरे हुए वह लिखतरे हैं कि‘ फिलहाल शूद्र-किसान धर्म और राजय समित्धी कई कारणों सरे अतयत्त विपन् हालात में पहुंच गया है । उसकी इस हालात के कुछ कारणों की ध््रेचना करनरे के लिए इस ग्रंथ की रचना की गई है ।’ जोतीराव फुलरे चिंतक, लरेखक और अन्याय के खिलाफ निरंतर संघर्षरत योद्धा थिरे । ्रे दलित-बहुजनों, महिलाओं और गरीब लोगों के पुनर्जागरण के अगुवा थिरे. उन्होंनरे शोषण-उतपीड़न और अन्याय पर आधारित ब्ाह्मणवादी वय्स्था की सच्चाई को सामनरे लानरे और उसरे चुनौती दरेनरे के लिए अनरेक ग्रंथों की रचना की । जिसमें प्रमुख रचनाएं निम्न हैं-
तृतीय रत्( नाटक, 1855), छत्पति राजा शिवाजी का पंवड़ा( 1869), ब्ाह्मणों की चालाकी( 1869), गुलामगिरी( 1873), किसान का कोड़ा( 1883), सतसार अंक-1 और 2( 1885), इशारा( 1885), अछूतों की कैफियत( 1885), सार्वजनिक सतयधर्म पुसतक( 1889), सतयशोधक समाज के लिए उपयु्त मंगलगाथिाएं तथिा पूजा विधि( 1887), अंखड़ादि कावय रचनाएं( रचनाकाल ज्ात नहीं)।
भलरे ही 1890 में जयोधतिा फुलरे हमें छोड़कर चलरे गए, लरेधकन जयोधतिा फुलरे नरे सावित्ीिाई फुलरे के साथि मिलकर शूद्रों-अतिशूद्रों और महिलाओं के शोषण के खिलाफ जागरण की जो मशाल जलाई, आगरे चलकर उनके बाद उस मशाल को सावित्ीिाई फुलरे नरे जलाए रखा । सावित्ीिाई फुलरे के बाद इस मशाल को शाहूजी महाराज नरे अपनरे हाथिों में लरे लिया । बाद में उन्होंनरे यह मशाल डा. भीमराव आंिरेडकर के हाथिों में थिमा दिया । डा. आंिरेडकर नरे मशाल को सामाजिक परिवर्तन की ज्ाला में बदल दिया । �
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