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हैं जिसके परिणामसवरूप उनके अंदर नेतृतव की क्मता का विकास हो रहा है । जिसके बल पर वह राज्य एवं केन्द्र की राजनीति में महतवपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं । ्यह सब पंचिा्यत में आिक्ण मिलने के कारण संभव हुआ है ।
आिक्ण व्यवस्ा की हकीकत : अनुसूलचित जालत्यों को आिक्ण मिले लगभग 70 साल बीत गए लेकिन अभी भी बहुत से ऐसे सरकारी प्लतष्ठान हैं , जहां इनकी भागीदारी उस अनुपात में नहीं है जिस अनुपात में होनी चिाहिए । अनुसूलचित जाति को केन्द्र सरकार की नलौकरी में 15 प्लतशत तथा राज्य सरकार की नलौकरी में उनके जनसंख्या के अनुपात में आिक्ण प्दान लक्या ग्या है , फिर भी केन्द्र सरकार , सार्वजनिक उपकम , राष्टीं्यकृत बैंक और सार्वजनिक बीमा कम्पनियों में दलितों के लिए आिलक्त सीटों में से कमशः 11 , 10.35 , 12.51 और 13.67 प्लतशत सीटें ही भरी गई है । लशक्ण संस्ाओं में आिक्ण 1954 में प्ािमभ हुआ इसके बावजूद दस केत्द्री्य लव्वलवद्ाल्यों में दलित लशक्कों की संख्या नगण्य है । आिलक्त सीटें इस दलील पर खाली रखी जाती हैं कि दलित उममीदवार उपलबि नहीं ्या दलित उममीदवार उप्युकत नहीं है । आिक्ण व्यवस्ा से दलित वर्ग दो धड़ों में बट गए हैं , एक समपन्न वर्ग जो आिक्ण का लाभ लेकर आगे बढ़ गए
हैं , दूसरा विपन्न वर्ग जिसे आिक्ण का लाभ अभी तक नहीं मिला है , उनकी स्थिति आज भी द्यनी्य है । बहुत से ऐसे लोग हैं जो फजटी प्माणपरि बनवाकर आिक्ण का लाभ ले रहे हैं ।
अंत में अगर ध्यान लद्या जा्ये तो जिस उद्े््य को ध्यान में रखकर दलितों को आिक्ण प्दान लक्या ग्या है , वह अभी तक पूरा नहीं हुआ है । अतः जब तक उद्े््य पूरा न हो इसे समा्त नहीं लक्या जा सकता । ्यह कहना कि आिक्ण केवल दस वषथों के लिए था , ्यह गलत है । आिक्ण के लिए संविधान में कोई सम्य सीमा निर्धारित नहीं की गई है । अनुचछेद 330 एवं 332 के तहत आने वाला राजनीतिक आिक्ण संविधान लागू होने से दस वर्ष के लिए था , जो संविधान संशोधन द्ािा सम्य- सम्य पर बढ़ा्या जाता रहा है ।
बहुत से संगठन ्यह मांग करते रहे हैं कि जाति पर आधारित आिक्ण को समा्त कर देना चिाहिए तथा उसके स्ान पर आर्थिक आधार पर आिक्ण देना चिाहिए क्योंकि सामात््य वर्ग में भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो गरीब हैं । जो लोग ऐसी मांग करते हैं वे आिक्ण के आधार को नहीं जानते हैं । भारत में आिक्ण का दो आधार है- राज्य के अधीन सेवाओं में उकत वर्ग का पर्याप्त प्लतलनलितव न हो तथा वह वर्ग सामाजिक तथा शैलक्क दृन्ष्ट से पिछड़ा हुआ हो । सामात््य वर्ग का प्लतलनलितव तो पहले से ही ज्यादा है । हलॉलाकि हमारी सहानुभूति सामात््य वर्ग के उस गरीब जनता के साथ है लेकिन उन्हें आिक्ण की नहीं अपितु आर्थिक सह्योग की जरूरत है , जिसके लिए सरकार बहुत सी कल्याणकारी ्योजनाएं चिला रही है । आिक्ण का लाभ सभी को नहीं मिला है । इसका लाभ केवल कुछ लोगों को ही मिला है । अतः आिक्ण का लाभ सभी को मिले ्यह सबसे बड़ी चिुनलौती है । आिक्ण व्यवस्ा की समीक्ा होनी चिाहिए और इसे ज्यादा प्भावशाली बनाने के लिए कारगर उपा्य अपना्ये जाने चिाहिए जिससे सभी को सामात््य रूप से आिक्ण का लाभ मिल सके । �
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