पत्र
हिंसा समाधान नहीं
दलित आरिोश ( आउटलुक 23 अप्ैल ) के तहत दो लेख , ‘ दूर और दुश्वार होतमी इंसाफ की देहरमी ’ और ‘ उग् आलंदोलन से नए सियासमी स्मीिरण ’ की वयथा का अलंदाजा बकौल डॉ . ओ्प्िाश इन शबदों से सहज हमी लगाया जा सकता है कि ‘ भाजपा तथा कालंग्ेस दोनों हमी पार्टियों ने हमें हमाररे हाल पर छोड दिया है ।’ ऐसमी स्थिति यहमी दर्शातमी है कि कोई खुद दलित हो या फिर दलित किसमी दल का नेतमृतव कररे स्थिति में कोई फर्क नहीं पडता । लिहाजा पीड़ितों की इस स्वीकारोक्ति से आश्चर्य नहीं होता कि ‘ उतपमीडिों में जब भमी कोई दबलंग जाति का आरोपमी हो राजनैतिक पार्टियों को जैसे सालंप सूलंघ जाता है ।’ फिर भमी किसमी भमी तरह की हिंसा से बचना चाहिए । जब केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने जा रहमी तो बलंद कर हिंसा नहीं होनमी चाहिए थमी । मामला जब तक कोर्ट में है सभमी को धैर्य से काम लेना चाहिए । किसमी भमी समसया का समाधान हिंसा से नहीं मिल सकता ।
ताराचंद ‘ दवेव ’ रैगर | नई दिल्ली
डरिकेट पर दाग
आउटलुक के 23 अप्ैल अलंि में ‘ चाहिए और सख्ती ’ में ऑसट्रेलियाई करिकेटरों द्ारा किए गए नियम- उल्लंघन पर असरदार लेख लिखा गया है । हाल हमी में उजागर ऑसट्रेलियाई करिकेटरों के कारनामे ने करिकेट जगत और उसके प्शलंसकों को सतबि और निराश किया है । ऑसट्रेलिया के खिलाड़ी कड़ी मेहनत , हुनर और अनुशासन के लिए जाने जाते हैं , इसलिए 50 ओवर का व्र्ड कप चार बार जमीत चुके हैं । उनहें हमेशा से दूसरमी टमी्ों पर हावमी होते देखा गया है । मगर जो हरकत टमी् के युवा करिकेटरों ने की उसकी
उम्मीद किसमी खेल प्रेमी को नहीं थमी । मैच जमीतने के मकसद से करिकेट के नियमों का उल्लंघन करने के लिए अब तक पाकिसतान की टमी् हमी बदनाम थमी मगर उस कतार में अब ऑसट्रेलिया की टमी् भमी शामिल हो गई है । उनहोंने अपने साथ-साथ देश को भमी बदनाम किया है । उनहें ऑसट्रेलिया करिकेट बोर्ड से भमी फटकार मिलमी है । वे अपने करिकेट कॅरिअर में चाहरे जितने सफल हो जाएलं लेकिन अब करिकेट प्शलंसकों के दिल में खास जगह कभमी नहीं बना सकेंगे । आइसमीसमी द्ारा बनाए गए नियमों का पालन करना हर खिलाड़ी के लिए सववोपरि होना चाहिए । इसमी अलंि में पानमी पर व्यंगय भमी है । इस व्यंगय में ‘ पानमी ररे पानमी ’ में भविषय में होने वालमी पानमी की किल्त को बखूबमी दर्शाया गया है । दुनिया के अधिकालंश देशों में पेयजल की ि्मी होतमी जा रहमी है । भारत में तो यह समसया अपने चरम पर है । भारत के कई इलाकों का आलम यह है कि लोग पानमी की एक-एक बूलंद के लिए पररेशान हैं । इसका मुखय कारण वर्षा का कम और असमय होना है । यह गलंभमीर समसया है , जिसके जिम्ेदार कहीं न कहीं हम भमी हैं । जनसलंखया तेजमी से बढ़ रहमी है , जिसके कारण जलंगलों को काटा जा रहा है ताकि बसाहट हो सके । इसके चलते प्िृति का सलंतुलन बिगड रहा है । पानमी की ि्मी निरंतर विकराल रूप ले रहमी है । यह एक वयक्ति की नहीं पूररे समाज की समसया है । इसलिए इससे निजात पाने के लिए सभमी लोगों को प्यास करना होगा । प्िृति का सलंतुलन बनाने में हम सबकी महतवपूर्ण भूमिका होनमी चाहिए । यह तभमी सलंभव हो सकेगा जब हम सब एकजुट हो कर प्िृति के नियम के अनुकूल कार्य करें ।
सौरभ पाठक | ग्ेटर नोएडा
डिजिटल दुनिया के खतरे
आउटलुक का 23 अप्ैल का अलंि डिजिटल दुनिया के सयाह पहलुओं पर बारमीिी से प्िाश डालता है । फेसबुक और कैंकरिज एनालिटिका प्िरण के बाद आम आद्मी की निजता खतररे में है । ये लोग आम आद्मी की सोच और निर्णय लेने की क्षमता को गहररे प्भावित करते हैं । प्सलंगवश मुझे रामधारमी कसलंह दिनकर की कुरुक्षेत्र में लिखमी दो पलंक्तियालं याद आतमी हैं , “ सावधान ! मनुषय यदि विज्ान है तलवार , तो फेंक दे , तज मोह , स्मृति के पार ।” फेसबुक जो पहले महज मेलजोल वालमी सोशल नेटवकििंग की साइट थमी आज ररेटा के सबसे बड़े भलंरार के तौर पर परमाणु बम जैसमी लगने लगमी है । हरवमीर जमी ने सलंपादकीय में बिलकुल सहमी कहा है , “ अगलमी पमीढ़मी की तकनमीि के सामने हम निहतथे खड़े हैं । विश्व में अभमी भमी बड़ी तादाद में आबादमी शिक्षा से वलंकचत है । डिजिटल शिक्षा उनके लिए दूर की कौड़ी है । ऐसे में डिजिटल शिक्षा से वलंकचत लोग आने वाले समय में सबसे कमजोर और सुभेद्य होंगे ।” इसलिए जब समावेशमी विकास की बात की जाए तब इसे केवल आवास , शौचालय ,
बैंक खाते तक समीक्त न रखा जाए । बक््ि इसमें डिजिटल दुनिया के सभमी पहलुओं पर ज्ान को भमी शामिल किया जाना चाहिए ।
आशीष कुमार | उन्ाव
किसानों की स्थिति
आउटलुक के 9 अप्ैल के अलंि में ‘ न नमीकत न नमीयत , दोगुनमी आय कैसे बनेगमी हकीकत ’ कृषि सलंिट पर सोमपाल शासतमी का लेख पढ़ा । लेख पढ़कर एक बार फिर किसानों और कृषि के हाल से रूबरू होने का मौका मिला । इस लेख को पढ़ कर हमी जाना कि किसानों के लिए जो भमी समर्थन मू्य घोषित किए जाते हैं वह किसानों को नहीं मिलते । केवल गेहं और धान की खरमीद में ऐसमी वयवसथा है वह भमी केवल चार-पालंच राजयों में । वर्तमान सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुनमी होने की बात बार- बार कहतमी है । लेकिन यह कैसे होगा इसकी कोई योजना नहीं है । कया बिना योजना सरकार किसानों की आय दोगुनमी कररेगमी ? जबकि सरकार किसानों को समर्थन मू्य भमी सहमी तरमीिे से नहीं दे पा रहमी है । सरकार को समझना होगा कि हमाररे देश की आर्थिक स्थिति कृषि पर टिकी हुई है । फिर भमी की जाने वालमी अनदेखमी से साफ पता चलता है कि या तो वह कृषि की अर्थवयवसथा को समझते नहीं या समझ कर भमी अनदेखमी कर रहरे हैं । अगर सरकार को किसानों की आय बढ़ाना है तो किसानों के लिए गालंव में हमी कृषि के अतिररति कुछ अनय रोजगारों को बढ़ावा देना चाहिए जैसे , पशुपालन , बागवानमी , मछलमी पालन आदि । इन सब घररेलू उद्योगों से उनके आय में जरूर बढ़ोतरमी होगमी ।
श्वेता गुप्ा | गोरखपुर
बवेबस किसान
कृषि सलंिट पर ्मीकरया में कम बात होतमी है । आउटलुक के 9 अप्ैल के अलंि में कृषि सलंिट पर लेख देख कर अचछा लगा । सभमी लेखों में सटमीि विश्ेरण किया गया है । किसान का पहला जोखिम मौसम है । दूसरा जोखिम कीट और तमीसरा जोखिम कीमत है । किसान तमीन सतरों पर जूझता है । उपज की लागत किसानों को मिलने वाले मू्य की लागत से कम होतमी है । किसानों के विकास में आड़े आतमी अनय समसयाओं में खेतमी की ज्मीन का कम होना , खेतमी के लिए ज्मीन खरमीदने या लमीज पर लेने के लिए पैसों की ि्मी , कर्ज न चुका पाना शामिल है । सरकार समय- समय पर उपज की खरमीद के लिए नयूनतम समर्थन मू्य घोषित करतमी है । लेकिन यह निर्धारित मू्य किसानों को नहीं मिल पाता । जब सरकार नयूनतम समर्थन दे नहीं पातमी तो फिर घोषित कयों करतमी है । 2014 के चुनावमी भाषणों में किसानों की आय दोगुनमी करने का राजनमीकति संकल्प जोर-शोर से लिया गया था । यहमी वादा केंद्र सरकार के चौथे बजट में भमी
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