पत्र
मनपसंद पढाई की प्ेरणा
आउटलुक के 18 जून के अंक में हर साल की तरह देश के टॉप कॉलेज और नए पाठ्यरिमों के बाऱे में विसतार से पढ़ने को मिला । एक साथ इतनी जानकारी हिंदी की किसी अनय पजत्का में उपलबध नहीं है । हिंदी भाषियों का वृहत क्ेत् होने के बावजूद आपके सिवा किसी ने इस ओर धयान नहीं दिया । हिंदी क्ेत् के छात् अकसर जानकारी के अभाव में सही पाठ्यरिम या कॉलेज का चुनाव नहीं कर पाते हैं और मेडिकल व इंजीनियरिंग के चककर में छोट़े-मोट़े कॉलेजों में दाखिला ले लेते हैं । इसका असर उनके कॅरिअर पर पडता है । ऐसे में नए-नए पाठ्यरिमों की जानकारी छात्ों को मनपसंद विषय पढ़ने की प्रेरणा देती है । यदि टॉप कॉलेजों में पढ़ने वाले छात्ों की प्रजतजरिया भी शामिल की जाए तो यह और उपयोगी हो जाएगा ।
सुधीर कुमार | पटना
वयवस्ा में सुधार की जरूरत
18 जून के अंक में ‘ संभांत वर्ग तक न सिमट जाए शिक्ा ’ बेहद सार्थक है । आज के दौर में शिक्ा मात् वयवसाय बनकर रह गया है । प्राइवेट कोचिंग संसथान इतने महंगे होते हैं कि गरीब बच्चे वहां नहीं पढ़ सकते । जरूरत शिक्ा वयवसथा में सुधार की है । इसी तरह ‘ नौकरी के साथ कला साधना ’ बताती है कि पेशे के साथ-साथ किसी भी प्रकार के कला में निपुणता प्राप्त करना तपसया से कम नहीं । ‘ बुलंद इरादों से बढ़ा ट़ेबल ट़ेजनस में दबदबा ’ बताता है कि अनय खेलों के प्रति रुझान भी जरिकेट की तरह बढ़ रहा है । ‘ संजू वह नहीं जिसे आपने देखा जाना है ’ पढ़ा । संजय दत् का जीवन अद्भुत और उतार-चढ़ाव भरा रहा है । उममीद है उनके जीवन पर आधारित बॉयोपिक मनोरंजन के
साथ-साथ दर्शकों को सीख भी देगी । सौरभ पाठक | ग्ेटर नोएडा
आशा की किरण
18 जून के अंक की आवरण कथा ‘ मंजिलें और भी ’ पढ़ने के बाद पढ़़ेगा इंडिया तभी बढ़़ेगा इंडिया वाली बात को और बल मिला है । पहले कहा जाता था कि जीवन के लिए रोटी , कपडा और मकान जरूरी है , लेकिन अब इस कडी में ज्ान यानी शिक्ा को भी जोडना बहुत आवशयक है , कयोंकि बगैर शिक्ा के न तो खुद का महतव है और न परिवार का । यह अंक छात्ों के लिए आशा की किरण जैसा है । सात मई के अंक में ‘ नए सियासी समीकरण की आहट ’ पढ़ा । सत्ा का नशा और सत्ाधारी दल के नेताओं की दादागिरी कया होती है यह पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्र्ेस सरकार और उसके नेताओं के जरियाकलाप से समझा जा सकता है । पंचायत चुनाव को तृणमूल की भारी जीत से जयादा इस दौरान हुई हिंसा और टकराव के लिए याद रखा जाएगा । येन-केन प्रकाऱेण पंचायतों पर कबजे में मुखयमंत्ी ममता बनजजी भले सफल हो गई हों , लेकिन दूसऱे पायदान पर रहकर भाजपा ने अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले उनकी चिंताएं जरूर बढ़ा दी हैं ।
शंकर जालान | कोलकाता
कर्नाटक से मिली नई ऊर्जा
18 जून जून के अंक में ‘ सियासी गरमी भी रिकॉर्डतोड ’ पढ़ी । अगले साल होने वाले लोकसभ्ाा चुनाव को लेकर पक्-विपक् किस तरीके से अभी से ही जोर-आजमाइश में जुट गए हैं , इसकी तफसील यह लेख बयां करता है । गोरखपुर और नूरपुर उपचुनाव में सपा-बसपा के साथ आने और भ्ााजपा की हार से सजरिय हुए विपक् को कर्नाटक से नई ऊर्जा मिली है । भाजपा को रोकने के लिए कांग्ेस ने जिस तरह से सजरियता दिखाई उससे पता चलता है कि गोवा की गलतियों से उसने सीखा है । हालांकि , सभी विपक्ी दल मिलकर अगला चुनाव लडेंगे यह अभी भी साफ नहीं है । 4 जून के अंक में ‘ नीतीश का नेतरहाट , गडबजडयों का गुरुकुल ’ बिहार में राजनीतिक दखलंदाजी के कारण शिक्ा के दिनोंदिन खराब होते हालात को बयां करता है ।
मीनाक्ी सिंह | रोसडा
पीड़ितों को दें हिमित
4 जून के अंक में प्रकाशित ‘ एडस से बचे , शर्म में डूबे ’ पढ़कर यह सुखद जानकारी मिली कि देश में एचआइवी / एडस के मामलों की वृजधि में सन् 2000 से 57 फीसदी की कमी आई है । लेकिन , वहीं यह जानकर दुख हुआ कि इसके पीजडतों को सामाजिक तौर पर बहिष्कृत किया जा रहा । उनहें दवा के लिए भी प्रदर्शन करना पड रहा है । जरूरत पीजडतों को
प्रोतसाहन और हिममत देने की है ताकि वे समाज की मुखयधारा में शामिल हो सकें । साथ ही एचआइवी / एडस पर शोध को बढ़ावा देने की भी जरूरत है ताकि निकट भविषय में इसका पकका इलाज ढूंढ़ा जा सके ।
शरद केवलिया | बीकानेर
सटीक और सारगर्भित
18 जून के अंक में उच्च शिक्ा पर विसतार से सामग्ी दी गई है । इससे छात्ों को भविषय तय करने में काफी मदद मिलेगी । आउटलुक का 4 जून का अंक हमेशा की तरह दसतावेजी और संग्हणीय है । कर्नाटक चुनाव पर योगेंद्र यादव का विश्ेषण सटीक और सारगर्भित है । एएमयू में जिन्ा की तसवीर पर उठ़े बवाल के बाऱे में पढ़ा जो हिंदू सांप्रदायिकता के उभार के बाऱे में बताता है । इतिहास को तोड-मरोडकर पेश करने पर सतय ओझल हो जाता है । बहुजन साहितय की प्रसतावना की समीक्ा समय की मांग है । दलित साहितय की तरह बहुजन साहितय भी अपनी पैठ बनाने में नाकाम रहा है ।
के . के . सिंह | बसतर
सामाजिक समरसता पर हमला
4 जून के अंक में छपी ‘ जिन्ा , एएमयू और हिंदू सांप्रदायिकता ’ पढ़ा । कुछ वोटों के लिए एक शैक्जणक संसथा की राष्ट्रभक्ति पर लांछन लगाना दुर्भागयपूर्ण है । पूऱे इतिहास को जाने बिना कुछ कट्टरपंथी इस मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश में हैं । इसमें कोई दो राय नहीं है कि ऐसा राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है । इस तरह की असामाजिक गतिविधियां एक सोची-समझी साजिश का हिससा हैं । सामाजिक समरसता पर हमले करके लोगों को बांटा जा रहा है जो हमारी भारतीय संस्कृति में सवीकार्य नहीं है । लोगों को समझना होगा कि उनका कलयाण दंगा- फसाद नहीं आपसी एकता से ही संभव है । इस संदर्भ में कुलदीप कुमार का लेख सराहनीय है ।
गौरव कुमार निशांत | वाराणसी
सफलता का श्ेय आउटलुक को
इस साल सिविल सेवा परीक्ा में हिंदी मीडियम से मैं चयनित हुआ हं । मेरा रैंक 817 है । आउटलुक हिंदी का मैं नियमित पाठक हं और इसके संपादकीय लेख हिंदी माधयम के छात्ों के लिए बहुत सटीक और सतरीय होते हैं । पजत्का में मेऱे कई पत् प्रकाशित हुए हैं । समसामयिक विषयों पर लिखे इन पत्ों से मेरा लेखन कौशल काफी सतरीय हुआ । अपनी सफलता के लिए आउटलुक हिंदी के तमाम लेखकों और संपादकीय टीम का सदैव आभारी रहंगा ।
आशीष कुमार | उन्ाव
झूठे वादों की पोल खुली
उपज के नयूनतम समर्थन मूलय के लिए पऱेरान
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