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एससी-एसटी एक्ट मामले में होना चाहिए अपशब्दों का जिक्र: उच्चतम न्ायालय
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च्चतम नयायलय नदे कहा है कि अनुसूचित जाति ए्वं जनजाति अतयाचार तन्वारण अधिनियम-1989( एससी-एसटी एकट) के प्रत्वधानों के तहत किसी वयशकत के त्वरुद्ध मुकदमा चलानदे सदे पहलदे आरोपपत् में कम सदे कम उन शबिों का उल्लेखनीय ्वांछनीय है जो आरोपित नदे लोगों के समक् कहदे हों । इससदे अदालतें अपराध का संज्ान लदेनदे सदे पहलदे यह पता लगानदे में सक्म होंगी कि आरोपपत् में एससी / एसटी अधिनियम के तहत मामला बनता है अथ्वा नहीं । उच्चतम नयायालय नदे यह टिपपणी एक ऐसदे मामलदे की सुन्वाई में की, जिसमें एक वयशकत के त्वरुद्ध एससी-एसटी एकट की धारा-तीन( एक)( 10) के तहत आरोपपत् दाखिल किया गया था । यह धारा एससी या एसटी के किसी सदसय को शतमिंदा करनदे के उद्दे्य सदे सा्वमाजनिक रूप सदे िदेखदे जानदे ्वालदे सथान पर जानबूझकर अपमान करनदे या धमकी िदेनदे सदे संबंधित है ।
गत 18 मई को नयायाधीश एसआर भट और नयायाधीश दीपांकर ितिा की पी्ठ नदे कहा कि त्वधायिका का उद्दे्य सपष्ट प्रतीत होता है कि शतमिंदा करनदे के लिए हर अपमान या धमकी एससी-एसटी एकट की धारा-तीन( एक)( 10) के तहत अपराध नहीं होगा, जब तक कि ऐसा सिर्फ पीतडत के एससी या एसटी होनदे की ्वजह न किया जाए । पी्ठ नदे कहा कि अगर कोई किसी दूसरदे वयशकत को सा्वमाजनिक सथान पर बदे्व्ूफ, मूर्ख या चोर कहता है तो यह निश्चत रूप सदे अपशबिों या अभद्र भाषा के इस्तेमाल सदे जानबूझकर अपमान या शतमिंदा करनदे का ्कृतय होगा । अगर इन शबिों का उपयोग एससी या एसटी के त्वरुद्ध किया जाता है तो भी जातिसूचक टिपपतणयों के अभा्व में यदे धारा-तीन( एक)( 10) लागू करनदे के लिए पर्यापत नहीं होंगदे ।
उच्चतम नयायालय नदे कहा कि एससी-एसटी एकट की धारा-18, सीआरपीसी की धारा-438 के तहत अदालत के अधिकार क्देत् को लागू करनदे पर रोक लगाती है । यह धारा गिरफतारी की आशंका ्वालदे वयशकत को जमानत िदेनदे सदे संबंधित है । आरोपित के त्वरुद्ध आपराधिक प्रतरिया रद करनदे ्वालदे उच्चतम नयायालय नदे कहा कि उसके त्वरुद्ध दर्ज एफआइआर या दाखिल आरोपपत् में इस बात तजरि नहीं है कि घटना के ्वकत उस सथान पर शिकायतकर्ता और उसके परर्वार के दो सदसयों के अला्वा कोई और मौजूद था । इसलिए अगर अपीलकर्ता नदे कुछ कहा भी था जो लोगों के िदेख सकनदे ्वालदे सथान पर नहीं था तो एससी-एसटी एकट की धारा-तीन( 1)( 10) का मूल तत्व अनुपशसथत है । पी्ठ नदे यह भी कहा कि एफआइआर और आरोपपत् में मौखिक त्व्वाद के दौरान अपीलकर्ता के बयानों या शिकायतकर्ता की जाति का कोई तजरि नहीं था, तस्वाय इस आरोप के कि जाति सदे संबंधित गालियां दी गईं ।
जानकारी हो कि उच्चतम नयायालय पिछलदे ्वर्ष मई के इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसलदे के
त्वरुद्ध अपील पर सुन्वाई कर रही थी, जिसनदे सीआरपीसी की धारा-482 के तहत आ्वदेिन खारिज कर दिया था । अपील में आरोपपत् और अपीलकर्ता के त्वरुद्ध लंबित आपराधिक कायमा्वाही रद करनदे की मांग की गई थी । पी्ठ नदे कहा कि अपीलकर्ता के त्वरुद्ध जन्वरी, 2016 में एक एफआइआर दर्ज की गई थी और जांच के बाद, जो एक दिन के भीतर पूरी हो गई थी, जांच अधिकारी नदे आइपीसी की त्वतभन्न धाराओं और एससी-एसटी एकट की धारा 3( 1)( 10) के तहत कथित अपराधों के लिए आरोपपत् दायर किया था । अपीलकर्ता नदे इस आधार पर आपराधिक कायमा्वाही रद करनदे की मांग करतदे हुए हाई कोर्ट का दर्वाजा खटखटाया था कि आरोपपत् में कोई अपराध नहीं बताया गया था और उतपीडन के इरािदे सदे मुकदमा चलाया गया था । उच्चतम नयायालय नदे हाई कोर्ट का आिदेश दरकिनार करतदे हुए कहा कि किसी मामलदे में एक दिन के भीतर जांच पूरी करनदे की सराहना की जा सकती है, लदेत्न ्वतमामान मामलदे में यह नयाय की सदे्वा करनदे की तुलना में असंगति अधिक है । �
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