Kku
1 / 130 / 8, ऋग्वदेि 10 / 49 / 3), इनद्र का त्वशदेरण( ऋग्वदेि 5 / 34 / 6, ऋग्वदेि 10 / 138 / 3), सोम का त्वशदेरण( ऋग्वदेि 0 / 63 / 5), जयोति का त्वशदेरण( ऋग्वदेि 10 / 43 / 4), व्रत का त्वशदेरण( ऋग्वदेि 10 / 65 / 11), प्रजा का त्वशदेरण( ऋग्वदेि 7 / 33 / 7), ्वणमा का त्वशदेरण( ऋग्वदेि 3 / 34 / 9) के रूप में हुआ है ।
दास शबि का अर्थ अनार्य, अज्ानी, अकर्मा, मान्वीय व्यवहार शूनय, भृतय, बल रहित शत्ु के लिए हुआ है नकि किसी त्वशदेर जाति के लोगों के लिए हुआ है । जैसदे दास शबि का अर्थ मदेघ( ऋग्वदेि 5 / 30 / 7, ऋग्वदेि 6 / 26 / 5, ऋग्वदेि 7 / 19 / 2), अनार्य( ऋग्वदेि 10 / 22 / 8), अज्ानी, अकर्मा, मान्वीय व्यवहार शूनय( ऋग्वदेि 10 / 22 / 8), भृतय( ऋग), बल रहित शत्ु( ऋग्वदेि 10 / 83 / 1) के लिए हुआ है ।
दसयु शबि का अर्थ उतिम कर्म हीन वयशकत( ऋग्वदेि 7 / 5 / 6) अज्ानी, अव्रती( ऋग्वदेि 10 / 22 / 8), मदेघ( ऋग्वदेि 1 / 59 / 6) आदि के लिए हुआ है नकि किसी त्वशदेर जाति अथ्वा सथान के लोगों के लिए हुआ है ।
इन प्रमाणों सदे सिद्ध होता है कि आर्य और दसयु शबि गुण ्वाचक है, जाति ्वाचक नहीं है । इन मंत्ों में आर्य और दसयु, दास शबिों के त्वशदेरणों सदे पता चलता है कि अपनदे गुण, कर्म और स्वभा्व के कारण ही मनुष्य आर्य और दसयु नाम सदे पुकारदे जातदे है । अतः उतिम स्वभा्व ्वालदे, शांतिप्रिय, परोपकारी गुणों को अपनानदे ्वालदे आर्य तथा अनाचारी और अपराधी प्र्वृतति ्वालदे दसयु है ।
शंका 4- वेदों में शुद्र के अधिकारों के विषय में कया कहा गया है?
समाधान- स्वामी दयानंद नदे ्वदेिों का अनुशीलन करतदे हुए पाया कि ्वदेि सभी मनुष्यों और सभी वर्णों के लोगों के लिए ्वदेि पढ़नदे के अधिकार का समर्थन करतदे है । स्वामी जी के काल में शूद्रों को ्वदेि अधययन का तनरदेध था । उसके त्वपरीत ्वदेिों में सपष्ट रूप सदे पाया गया कि शूद्रों को ्वदेि अधययन का अधिकार स्वयं ्वदेि ही िदेतदे है । ्वदेिों में‘ शूद्र’ शबि लगभग बीस
बार आया है । कही भी उसका अपमानजनक अथगों में प्रयोग नहीं हुआ है और ्वदेिों में किसी भी सथान पर शूद्र के जनम सदे अछूत होनदे, उनहें ्वदेिाधययन सदे ्वंचित रखनदे, अनय वर्णों सदे उनका दर्जा कम होनदे या उनहें यज्ाति सदे अलग रखनदे का उल्लेख नहीं है ।
हदे मनुष्यों! जैसदे मैं परमातमा सबका ््याण करनदे ्वाली ऋग्वदेि आदि रूप ्वाणी का सब जनों के लिए उपिदेश कर रहा हूँ, जैसदे मैं इस ्वाणी का ब्राह्ण और क्तत्यों के लिए उपिदेश कर रहा हूँ, शूद्रों और ्वै्यों के लिए जैसदे मैं इसका उपिदेश कर रहा हूँ और जिनहें तुम अपना आतमीय समझतदे हो, उन सबके लिए इसका उपिदेश कर रहा हूँ और जिसदे‘ अरण’ अर्थात पराया समझतदे हो, उसके लिए भी मैं इसका उपिदेश कर रहा हूँ, ्वैसदे ही तुम भी आगदे आगदे सब लोगों के लिए इस ्वाणी के उपिदेश का रिम चलतदे रहो ।( यजुर्वेद 26 / 2)।
प्रार्थना है कि हदे परमातमा! आप मुझदे ब्राह्ण का, क्तत्यों का, शूद्रों का और ्वै्यों का पयारा बना दें ।( अथ्वमा्वदेि 19 / 62 / 1)
इस मंत् का भा्वार्थ यदे है कि हदे परमातमा आप मदेरा स्वाभा्व और आचरण ऐसा बन जायदे जिसके कारण ब्राह्ण, क्तत्य, शुद्र और ्वै्य सभी मुझदे पयार करें ।
हदे परमातमा आप हमारी रुचि ब्राह्णों के प्रति उतपन्न कीजियदे, क्तत्यों के प्रति उतपन्न कीजियदे, त्वरयों के प्रति उतपन्न कीजियदे और शूद्रों के प्रति उतपन्न कीजियदे ।( यजुर्वेद 18 / 46)
मंत् का भा्व यह है कि हदे परमातमा! आपकी ्कृपा सदे हमारा स्वभा्व और मन ऐसा हो जायदे की ब्राह्ण, क्तत्य, ्वै्य और शुद्र सभी वर्णों के लोगों के प्रति हमारी रुचि हो । सभी वर्णों के लोग हमें अच्छे लगें, सभी वर्णों के लोगों के प्रति हमारा बतामा्व सदा प्रदेम और प्रीति का रहदे ।
हदे शत्ु त्विारक परमदे््वर मुझको ब्राह्ण और क्तत्य के लिए, ्वै्य के लिए, शुद्र के लिए और जिसके लिए हम चाह सकतदे हैं और प्रत्येक त्वत्वध प्रकार िदेखनदे ्वालदे पुरुष के लिए प्रिय करदे ।( अथ्वमा्वदेि 19 / 32 / 8)
इस प्रकार ्वदेि की शिक्ा में शूद्रों के प्रति भी
सदा ही प्रदेम-प्रीति का व्यवहार करनदे और उनहें अपना ही अंग समझनदे की बात कही गयी है ।
शंका 5-वेदों के शत्ु विशेष रूप से पुरुष सूकि को जातिवाद की उतपतत्त का समर्थक मानते है ।
समाधान- पुरुष सूकत 16 मनत्ों का सूकत है जो चारों ्वदेिों में मामूली अंतर में मिलता है । पुरुष सूकत जातत्वाद का नहीं अपितु ्वणमा व्यवसथा के आधारभूत मंत् हैं जिसमदे“ ब्राह्णोसय मुखमासीत” ऋग्वदेि 10 / 90 में ब्राह्ण, क्तत्य, ्वै्य और शुद्र को शरीर के मुख, भुजा, मधय भाग और पैरों सदे उपमा दी गयी है । इस उपमा सदे यह सिद्ध होता हैं की जिस प्रकार शरीर के यह चारों अंग मिलकर एक शरीर बनातदे है, उसी प्रकार ब्राह्ण आदि चारों ्वणमा मिलकर एक समाज बनातदे है । जिस प्रकार शरीर के यदे चारों अंग एक दूसरदे के सुख-दुःख में अपना सुख- दुःख अनुभ्व करतदे है । उसी प्रकार समाज के ब्राह्ण आदि चारों वर्णों के लोगों को एक दूसरदे के सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख समझना चाहिए । यदि पैर में कांटा लग जायदे तो मुख सदे दर्द की ध्वनि निकलती है और हाथ सहायता के लिए पहुँचतदे है । उसी प्रकार समाज में जब
46 vDVwcj 2025