महार्षि मनु इसका उल्लेख अवश्य करतदे कि कौनvसी जाति ब्राह्णों सदे संबंधित है, कौन सी क्तत्यों सदे, कौन सी ्वै्यों और शूद्रों सदे समबंतधत हैं । इसका मतलब हुआ कि स्वयं को जनम सदे ब्राह्ण या उच्च जाति का माननदे ्वालों के पास इसका कोई प्रमाण नहीं है । जयािा सदे जयािा ्वदे इतना बता सकतदे हैं कि कुछ पीतढ़यों पहलदे सदे उनके पू्वमाज स्वयं को ऊंची जाति का कहलातदे आए हैं । ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि सभयता के आरंभ सदे ही यह लोग ऊंची जाति के थदे । जब ्वह यह साबित नहीं कर सकतदे तो उनको यह कहनदे का कया अधिकार है कि आज जिनहें जनमना शूद्र माना जाता है, ्वह कुछ पीतढ़यों पहलदे ब्राह्ण नहीं थदे? और स्वयं जो अपनदे को ऊंची जाति का कहतदे हैं ्वदे कुछ पीतढ़यों पहलदे शूद्र नहीं थदे?
मनुसमृति 3 / 109 में साफ कहा है कि अपनदे गोत् या कुल की दुहाई िदे्र भोजन करनदे ्वालदे को स्वयं का उगलकर खानदे ्वाला माना जाए
| अतः मनुसमृति के अनुसार जो जनमना ब्राह्ण या ऊंची जाति ्वालदे अपनदे गोत् या ्वंश का ह्वाला िदे्र स्वयं को बडा कहतदे हैं और मान- सममान की अपदेक्ा रखतदे हैं उनहें तिरस्कृत किया जाना चाहिए |
मनुसमृति 2 / 136: धनी होना, बांध्व होना, आयु में बड़े होना, श्रदेष््ठ कर्म का होना और त्वद्तिा यह पांच सममान के उतिरोतिर मानदंड हैं | इन में कहीं भी कुल, जाति, गोत् या ्वंश को सममान का मानदंड नहीं माना गया है | वर्णों में परर्वतमान: मनुसमृति 10 / 65: ब्राह्ण शूद्र बन सकता और शूद्र ब्राह्ण हो सकता है । इसी प्रकार क्तत्य और ्वै्य भी अपनदे ्वणमा बदल सकतदे हैं ।
मनुसमृति 9 / 335: शरीर और मन सदे शुद्ध- पवित्र रहनदे ्वाला, उत्कृष्ट लोगों के सानिधय में रहनदे ्वाला, मधुरभाषी, अहंकार सदे रहित, अपनदे सदे उत्कृष्ट ्वणमा ्वालों की सदे्वा करनदे ्वाला शूद्र
भी उतिम ब्रह् जनम और तद्ज ्वणमा को प्रापत कर लदेता है ।
मनुसमृति के अनदे् ्लो् कहतदे हैं कि उच्च ्वणमा का वयशकत भी यदि श्रदेष्ट कर्म नहीं करता, तो शूद्र( अतशतक्त) बन जाता है । उदाहरण- 2 / 103: जो मनुष्य नितय प्रात: और सांय ईश्वर आराधना नहीं करता उसको शूद्र समझना चाहिए ।
2 / 172: जब तक वयशकत ्वदेिों की शिक्ाओं में दीतक्त नहीं होता ्वह शूद्र के ही समान है ।
4 / 245: ब्राह्ण ्वणमासथ वयशकत श्रदेष््ठ-अति श्रदेष््ठ वयशकतयों का संग करतदे हुए और नीच- नीचतर वयशकतओं का संग छोड्र अधिक श्रदेष््ठ बनता जाता है | इसके त्वपरीत आचरण सदे पतित होकर ्वह शूद्र बन जाता है । अतः सपष्ट है कि ब्राह्ण उतिम कर्म करनदे ्वालदे त्वद्ान वयशकत को कहतदे हैं और शूद्र का अर्थ अतशतक्त वयशकत है । इसका, किसी भी तरह
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