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( ii) िजजी, जुलाहा, फकीर और रंगरदेज ।
( iii) बाढ़ी, भटियारा, चिक, चूड़ीहार, दाई, धा्वा, धुनिया, गड्‌डी, कलाल, कसाई, कुला, कुंजरा, लहदेरी, माहीफरोश, म्लाह, नालिया, निकारी ।
( iv) अबिाल, बाको, बदेत्या, भाट, चंबा, डफाली, धोबी, हज्ाम, मुचो, नगारची, नट, पन्वाड़िया, मदारिया, तुशनतया । 3. अरजल’ अथ्वा तन्कृष्ट ्वगमा भानार, हलालखोदर, हिजड़ा, कसंबी,
लालबदेगी, मोगता, मदेहतर ।
जनगणना अधीक्् नदे मुशसलम सामाजिक व्यवसथा के एक और पक् का भी उल्लेख किया है । ्वह है‘ पंचायत प्रणाली’ का प्रचलन । ्वह बतातदे हैं कि पंचायत का प्राधिकार सामाजिक तथा वयापार समबनधी मामलों तक वयापत है और अनय समुदायों के लोगों सदे त्व्वाह एक ऐसा अपराध है, जिस पर शासी निकायकायमा्वाही करता है । परिणामत: यदे ्वगमा भी हिनिू जातियों के समान ही प्रायः ््ठोर संगोत्ी हैं, अंतर-त्व्वाह पर रोक ऊंची जातियों सदे लदे्र नीची जातियों तक लागू है । उदाहरणतः कोई घूमा अपनी ही
जाति अर्थात्‌घूमा में ही त्व्वाह कर सकता है । यदि इस नियम की अ्वहदेलना की जाती है तो ऐसा करनदे ्वालदे को तत्ाल पंचायत के समक् पदेश किया जाता है । एक जाति का कोई भी वयशकत आसानी सदे किसी दूसरी जाति में प्र्वदेश नहीं लदे पाता और उसदे अपनी उसी जाति का नाम कायम रखना पड़ता है, जिसमें उसनदे जनम लिया है । यदि ्वह अपना लदेता है, तब भी उसदे उसी समुदाय का माना जाता है, जिसमें कि उसनदे जनम लिया था । हजारों जुलाहदे कसाई का धंधा अपना चुके हैं, किनतु ्वदे अब भी जुलाहदे ही कहदे जातदे हैं ।
इसी तरह के तथय अनय भारतीय प्रानतों के बारदे में भी ्वहां की जनगणना रिपोटगों सदे ्वदे लोग ए्तत्त कर सकतदे हैं, जो उनका उल्लेख करना चाहतदे हों । परनतु बंगाल यह दर्शानदे के लिए पर्यापत हैं कि मुसलमानों में जाति प्राणी ही नहीं, छुआछूत भी प्रचलित है ।( पृ. 221-223)
इस्लामी कानून समाज-सुधार के विरोधी- मुलमानों में इन बुराइयों का होना दुखद है ।
किनतु उससदे भी अधिक दुखद तथय यह है कि भारत के मुसलमानों में समाज सुधार का ऐसा कोई संगत्ठत आनिोलन नहीं उभरा जो इन बुराईयों का सफलतापू्वमा् उनमूलन कर सके । हिनिुओं में भी अनदे् सामाजिक बुराईयां हैं । परनतु सनतोरजनक बात यह है कि उनमें सदे अनदे् इनकी त्वद्यमानता के प्रति सजग हैं और उनमें सदे कुछ उन बुराईयों के उनमूलन हदेतु सतरिय तौर पर आनिोलन भी चला रहदे हैं । दूसरी ओर, मुसलमान यह महसूस ही नहीं करतदे कि यदे बुराईयां हैं । परिणामतः ्वदे उनके तन्वारण हदेतु सतरियता भी नहीं दर्शातदे । इसके त्वपरीत, ्वदे अपनी मौजूदा प्रथाओं में किसी भी परर्वतमान का त्वरोध करतदे हैं । यह उल्लेखनीय है कि मुसलमानों नदे केनद्रीय असेंबली में 1930 में पदेश किए गए बाल त्व्वाह त्वरोधी त्वधदेयक का भी त्वरोध किया था, जिसमें लड़की की त्व्वाह- योगय आयु 14 ्वर्ष् और लड़के की 18 ्वर्ष करनदे का प्रा्वधान था । मुसलमानों नदे इस त्वधदेयक का त्वरोध इस आधार पर किया कि ऐसा किया जाना मुशसलम धर्मग्रनथ द्ारा निर्धारित कानून के त्वरुद्ध होगा । उनहोंनदे इस त्वधदेयक का हर चरण पर त्वरोध ही नहीं किया, बल्् जब यह कानून बन गया तो उसके खिलाफ सत्वनय अ्वज्ाअभियान भी छडेडा । सौभागय सदे उकत अधिनियम के त्वरुद्ध मुसलमानों द्ारा छोड़ा गया ्वह अशभयान फेल नहीं हो पाया, और उनहीं दिनों कांग्रदेस द्ारा चलाए गए सत्वनय अ्वज्ा आनिोलन में समा गया । परनतु उस अभियान सदे यह तो सिद्ध हो ही जाता है कि मुसलमान समाज सुधार के कितनदे प्रबल त्वरोधी हैं ।( पृ. 226)
मुस्लिम राजनीतिज्ों द्ारा धर्मनिरपेषििा का विरोध-
मुशसलम राजनीततज् जी्वन के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं को अपनी राजनीति का आधार नहीं मानतदे, कयोंकि उनदे लिए इसका अर्थ हिनिुओं के त्वरुद्ध अपनदे संघर्ष में अपनदे समुदाय को कमजोर करना ही है । गरीब मुसलमान धनियों सदे इनसाफ पानदे के लिए गरीब हिनिुओं के साथ
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