ही नहीं, अपितु भोगा भी था । तत्ालीन जटिल सामाजिक समसयाओं पर उनकी पैनी निग़ाह थी । उनके समाधान हदेतु ्वदे आजी्वन प्रयासरत रहदे, परंतु उल्लेखनीय है कि उनका समाधान ्वदे परकीय दृष्टि सदे नहीं, बल्् भारतीय दृष्टिकोण सदे करना चाहतदे थदे । स्वतंत्ता, समानता, भ्रातृत्व पर आधारित समरस समाज की रचना का स्वप्न लदे्र ्वदे आजी्वन चलदे । उनकी अग्रणी भूमिका में तैयार किए गए संत्वधान में उन स्वप्नों की सुंदर छत्व िदेखी जा सकती है । ्वंचितों-शोषितों-शसत्यों को नयाय ए्वं सममान दिलानदे के लिए किए गए कार्य उनहें महानायकत्व िदेनदे के लिए पर्यापत हैं । ्वदे भारत की मिट्ी सदे गहरदे जुडडे थदे, इसीलिए ्वदे कमयुतनसटों की ्वगमात्वहीन समाज की सथापना ए्वं द्ंद्ातम् भौतत््वाद को कोरा आदर्श मानतदे थदे ।
धूर्त हैं कमयुतन्ट, कांग्ेसी भी सही नहीं
िदेश की पररशसथति-परर्वदेश सदे कटी-छंटी उनकी मानसिकता को ्वदे उस प्रारंभिक दौर में भी पहचान पानदे की दूरदृष्टि रखतदे थदे । उनहोंनदे 1933 में महाराष्ट्र की एक सभा को संबोधित करतदे हुए कहा कि ' कुछ लोग मदेरदे बारदे में दुष्प्रचार कर रहदे हैं कि मैं कमयुतनसटों सदे मिल गया हूं । यह मनगढ़ंत और बदेबुनियाद है । मैं कमयुतनसटों सदे कभी नहीं मिल सकता कयोंकि कमयुतनसट स्वभा्वतः धूर्त होतदे हैं । ्वदे मजदूरों के नाम पर राजनीति तो करतदे हैं, पर मर्िूरों को भयानक शोषण के चरि में फंसाए रखतदे हैं । अभी तक कमयुतनसटों के शासन को िदेखकर तो यही सपष्ट होता है ।' इतना ही नहीं उनहोंनदे नदेहरू सरकार की त्विदेश नीति की भी आलोचना की थी । ्वदे पहलदे वयशकत थदे, जिनहोंनदे 1952 में नदेहरू सरकार की यह कहतदे हुए आलोचना की थी कि उसनदे सुरक्ा परिषद की सथायी सदसयता के लिए कोई प्रयत् नहीं किया । उनहोंनदे सपष्ट कहा ' भारत अपनी महान संसदीय ए्वं लोकतांतत्् परंपरा के आधार पर संयुकत राष्ट्र की सुरक्ा-परिषद का स्वाभात्व् दा्वदेिार है । और भारत सरकार को इसके लिए प्रयत् करना चाहिए ।' 1953
में तत्ालीन नदेहरू सरकार को आगाह करतदे हुए उनहोंनदे चदेताया ' चीन तिबबत पर आधिपतय सथातपत कर रहा है और भारत उसकी सुरक्ा के लिए कोई पहल नहीं कर रहा है, भत्वष्य में भारत को उसके गंभीर परिणाम भुगतनदे होंगें ।' तिबबत पर चीन के कबर्दे का उनहोंनदे बहुत मुखर त्वरोध किया था और इस मुद्दे को त्व््व-मंच पर उ्ठानदे के लिए तत्ालीन नदेहरू सरकार पर दबा्व भी बनाया था ।
कशमीर और मुसलिमानों के मामलिे में ्पषट सोच
बाबा साहब नदेहरू द्ारा ््मीर के मुद्दे को संयुकत राष्ट्र संघ में लदे जानदे की मुखर आलोचना करतदे रहदे । शदेख अबिु्ला के साथ धारा 370 पर बातचीत करतदे हुए उनहोंनदे कहा कि आप चाहतदे हैं कि ््मीर का भारत में त्वलय हो, ््मीर के नागरिकों को भारत में कहीं भी आनदे-जानदे-बसनदे का अधिकार हो, पर शदेर भारत्वासी को ््मीर में आनदे-जानदे-बसनदे का अधिकार न मिलदे । िदेश के क़ानून-मंत्ी के रूप में मैं िदेश के साथ त्व््वासघात नहीं कर सकता । नदेहरू की सममति के बा्वजूद अबिु्ला को उनका यह दो टूक उतिर उनके साहस ए्वं
िदेशभशकत का आदर्श उदाहरण था । मर्हब के आधार पर हुए त्वभाजन के प्चात तत्ालीन कांग्रदेस नदेतृत्व द्ारा मुसलमानों को उनके हिस्से का भूभाग( कुल भूभाग का 35 प्रतिशत) दिए जानदे के बा्वजूद उनहें भारत में रोके जानदे सदे ्वदे सहमत नहीं थदे । उनहोंनदे इस संदर्भ में गांधी जी को पत् लिखकर अपना त्वरोध वयकत किया था । आ्चयमा है कि उस समय मुशसलमों की आबादी भारत की कुल आबादी की लगभग 22 प्रतिशत थी और उस बाइस प्रतिशत में सदे के्वल 14 प्रतिशत मुसलमान ही पाकिसतान गए । उनमें सदे आ्ठ प्रतिशत यहीं रह गए । इतनी कम आबादी के लिए अखंड भारत का इतना बड़ा भूभाग िदेनदे को अंबदे््र नदे मूढ़ता का पर्याय बतानदे में संकोच नहीं की थी । इतना ही नहीं उनहोंनदे इसलाम में महिलाओं की ्वास्तविक शसथति पर भी त्वसतृत प्रकाश डालतदे हुए बुर्का और तहर्ाब जैसी प्रथाओं का मुखर त्वरोध किया । उनका मानना था कि जहां हिंदू-समाज काल-त्वशदेर में प्रचलित रूतढ़यों के प्रति सुधारातम् दृष्टिकोण रखता है, ्वहीं मुशसलम समाज के भीतर सुधारातम् आंदोलनों के प्रति के्वल उदासीनता ही नहीं, अपितु नकारातम्ता िदेखी जाती है ।
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