पीएम मोदी के पयारे पसमांदा मुसलिमान
पसमांदा मुसलमानों पर नरेंद्र मोदी की नर्र प्रधानमंत्ी बननदे सदे पहलदे सदे है । 2013 में बीजदेपी की तरफ सदे उनहें प्रधानमंत्ी पद का उम्मीदवार बनाए जानदे के बाद उतिर प्रिदेश के पसमांदा मुसलमानों का एक प्रतिनिधिमडल उनसदे अहमदाबाद जाकर मिला था । इस प्रतिनिधिमंडल नदे िदेश में पसमांदा मुसलमानों की बुनियादी समसयाओं और राजनीति में उनके हाशिए पर होनदे को लदे्र एक प्रदेजेंटडेशन दिया था । इसमें बताया गया था कि उतिर प्रिदेश में समाज्वादी पाटजी और बीएसपी में पसमांदा मुसलमान हमदेशा हाशिए पर रहदे हैं । इन पार्टियों के अगडडे मुशसलम नदेताओं नदे पसमांदा मुसलमानों को कभी संग्ठन में प्रतिनिधित्व नहीं दिया और न ही टिकटों के बंट्वारदे में उनहें ्वाजिब हिस्सेदारी दी । कांग्रदेस समदेत तमाम क्षेत्ीय पार्टियों में अगडडे तबके के मुसलमानों का दबदबा है । जयािा आबादी होनदे के बा्वजूद पसमांदा मुसलमान हाशिए पर हैं । तब नरेंद्र मोदी नदे इस प्रतिनिधिमंडल को भरोसा दिलाया था कि पाटजी सतिा में आनदे के बाद पसमांदा मुसलमानों की समसयाओं के समाधान की दिशा में ्ठोस क़दम उ्ठाएगी । अब प्रधानमंत्ी नरेंद्र मोदी उसी दिशा में आगदे
बढ़तदे हुए दिख रहदे हैं । बताया जाता है कि पसमांदा मुसलमानों के प्रतिनिधिमंडल सदे अहमदाबाद में हुई मुलाकात के बाद मोदी नदे पाटजी की एक ्वररष््ठ नदेताओं की बै्ठ् में भी इस मुद्दे को उ्ठाया था । उल्लेखनीय है कि 2014 तक बीजदेपी में अशरफिया तबके के मुसलमानों का ही दबदबा था । इससदे पहलदे बीजदेपी में जितनदे सांसद, त्वधायक, पाटजी प्र्वकता और मंत्ी हुए सब अशरफिया तबके के मुसलमान थदे. इनमें सिकंदर बखत, सैयद एजार् ररर््वी, सैयद शाहन्वाज हुसैन, मुखतार अबबास न््वी, नजमा हदेपतु्ला, एमजदे अकबर और हाल तक राजयसभा सदसय रहदे सैयद र्फरुल इसलाम ख़ान के नाम शामिल है । लदेत्न 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्ी बननदे के बाद बीजदेपी नदे पहली बार राष्ट्रीय अ्पसंखय् मोर्चा का अधयक् पसमांदा समात के अबिुल रशीद अंसारी को बनाया । 2015 में पाटजी में शामिल हुए साबिर अली को राष्ट्रीय अ्पसंखय् मोर्चा में महासतच्व बनाया गया और बीजदेपी नदे पसमांदा मुसलमानों को सतिा में हिस्सेदारी िदेनदे की शुरुआत की । पसमांदा मुसलमानों सदे पीएम मोदी की मोहबबत के कारण ही उर्दू अकादमी का अधयक् के कैफुल ्वरा अंसारी को बनाया गया और उतिर प्रिदेश अ्पसंखय् आयोग के अधयक् पद की जिम्मेदारी अशफाक सैफ़ी को सौंपी गई ।
मुसलमानों के भीतर चल रहदे जातिगत अंतत्वमारोधों को एक नया उछाल दिया और बाबरी मशसजि का त्वध्वंस होनदे तक‘ दलित- पिछडडे मुशसलम’ नामक एक नयदे राजनीतिक त्वमर्श का उदय हुआ । यह त्वमर्श आंदोलन बना और काफ़ी तदेर्ी सदे लोकप्रिय हुआ । शीघ्र ही दलित-पिछडडे मुशसलम का स्वाल उ्ठानदे ्वालदे कई संग्ठन सामनदे आयदे । 1998 में अली अन्वर की पुसत्‘ मसा्वात की जंग’ नदे इस त्वमर्श को पसमांदा नामक नयी अ्वधारणा के
रूप में परिभाषित किया । अन्वर नदे बिहार की मुशसलम जाति व्यवसथा का ऐतिहासिक त्व्लदेरण करके नीची जाति के मुसलमानों को एक राजनीतिक श्रदेणी के तौर पर सथातपत किया । अन्वर मानतदे हैं कि पिछडडे मुसलमानों का अलग सदे आरक्ण पसमांदा-दलित मुसलमानों के संघरगों को सांप्रदायिक बना िदेगा । इसलिए अनय पिछडडे ्वगमा की पहचान अगली और पिछड़ी जातियों के आधार पर ही होनी चाहिए ताकि अति-पिछड़ी जातियां, चाहदे ्वदे हिंदू हों या
मुसलमान, आरक्ण का लाभ उ्ठा स्रें । अन्वर अनुच्छेद 341 में संशोधन के पक्धर हैं और उनका मत है कि मुशसलम दलितों को हिंदू दलितों की तरह ही आरक्ण मिलना चाहिए । अन्वर मुसलमानों में अंतर्जातीय त्व्वाह के भी हियायती हैं । दलित-पिछडडे मुशसलम त्वमर्श को तथाकथित मुशसलम रहनुमाओं का भी समर्थन हासिल है, हालाँकि परमपरागत मुशसलम राजनीति अब भी इस स्वाल को मुसलमानों का आंतरिक मुद्ा माननदे के ही पक् में है । �
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