Oct 2025_DA | Page 15

कथित सेक्युलर वामपंथी कहते है श्ीराम और रामायण कालपतनक हैं परनिु रामायण के रचयिता बालमीतक इतिहास पुरुष थे और दतलिि थे, रामायण का एक पात् शमबर( शमबूक) नामक असुर वा्ितवक था और दतलिि था जिसका वध श्ीराम ने किया था । मिलिब चित भी मेरी पट भी मेरी?
और िदे्वताओं तक को अपनदे ्वश में रखतदे थदे । तीनों लोकों के स्वामी होतदे थदे, मान्व कया िदे्वता तक उससदे भयभीत रहतदे थदे । फिर ्वदे शुद्र अर्थात अछूत, शोषित, पीतडत, ्वंचित समूह कैसदे हो गए? ्वैसदे अब यदे साबित हो चुका है कि आर्य कोई जाति समूह नहीं था बल्् आर्य प्रततष््ठा सूचक शबि था और आयगों का आत्वष््ार अंग्रदेजों नदे अपनदे स्वार्थ सिद्धि के लिए सिर्फ ढाई सौ ्वर्ष पू्वमा किया था । और यह भी प्रमाणित तथय है की यदे दान्व, असुर किसी अलग प्रजाति समूह के नहीं बल्् यदे सब भी हमारी तरह महर्षि ््यप के सनतान थदे, जैसदे िदे्वता थदे । िदे्वता
और असुरों के बीच युद्ध सतिा संघर्ष था, जाति संघर्ष नहीं । और यह भी की महर्षि ््यप उसी ब्रह्ा के पौत् थदे जिसदे यदे नीच ्वामपंथी नहीं मानतदे हैं । और यह की असुर ्वतमामान भारतीय भूभाग पर शासन नहीं करतदे थदे और ना ही िदे्वताओं सदे उनका युद्ध 1500 ईस्वी पू्वमा हुआ था । यदे हजारों— लाखों ्वर्ष पू्वमा की एतिहासिक प्रा्कृतिक घटना का त्व्वरण है जो पुराणों में मिलता हैं ।
6. अब िदेतखयदे इन कथित सदेकयुलर ्वामपंथियों की धूर्तता का कुछ और नमूना: यदे महातमा बुद्ध और अशोक को मूल तन्वासी अर्थात
दलित, शूद्र अथ्वा असुर ्वंशीय, जो समझिए, मानतदे हैं । परनतु महातमा बुद्ध जिस क्तत्य कुल में जनम लिए उन क्तत्यों को त्विदेशी, आरिमणकारी, शोषक, उतपीड् आदि बतातदे हैं । उसी तरह महान अशोक को भी यदे मूलतन्वासी बतातदे हैं और शूद्रों को ग्वमा सदे अशोक के ्वंशज बतातदे हैं, परनतु भारत के सम्ाट, त्व््वत्वजदेता चनद्रगुपत मौर्य जो अशोक का दादा था और मौर्य सम्ाजय का कर्ताधर्ता था उसदे यदे सममान की नजर सदे नहीं िदेखतदे । मौर्य सम्ाजय के शशकत का स्ोत और चनद्रगुपत मौर्य तथा अशोक को सम्ाट बनानदे ्वालदे महान आचार्य चाणकय तो इनके लिए सिर्फ कुटिल ब्राह्ण मात् हैं जिसदे यदे घृणा के पात् के आला्वा और कुछ नहीं समझतदे हैं ।
7. यदे कथित सदेकयुलर ्वामपंथी तो इतनदे धूर्त हैं कि इस िदेश के लिए और इस िदेश की जनता की सुरक्ा के लिए सदै्व सदे मर मिटनदे का इतिहास रखनदे ्वालदे क्तत्यों और ब्राह्णों को घृणा की दृष्टि सदे िदेखतदे हैं, उनहें आरिमणकारी, त्विदेशी, शोषक, उतपीड् आदि घोषित करतदे हैं जबकि सिर्फ कुछ सौ बरसों पहलदे भारत पर आरिमण करनदे ्वालदे मुशसलमों और चंद ्वर्ष पहलदे अंग्रदेजों की गुलामी की उपज ईसाईयों को भी मूल तन्वासी घोषित करतदे हैं ।
8. लोहार, सुनार, जुलाहा, कुमहार, बनिक, तदेली, धोबी आदि प्राचीन व्यावसायिक ्वगमा थदे जिनमदे सदे कुछ आज व्यावसायिक पतन के कारण ्वै्य ्वगमा सदे तथाकथित दलित ्वगमा में आ गए हैं । जैसदे कुमहार को लदे लीजिए । सिर्फ कुछ सौ वर्षों पू्वमा तक कुमहार धनी व्यवसायी के रूप में जाना जाता था कयोंकि प्राचीन काल सदे मिट्ी का बर्तन ही खानदे पीनदे आदि सामानों के लिए उपयोग में आनदे्वाली आवश्यक सामग्री के यदे उतपाि् थदे । यदे ्वामपंथी इतिहासकार इतिहास के कालरिम का निर्धारण और सभयता का निर्धारण प्राचीन मृदभांडों के आधार पर ही करतदे हैं । इतनी पहुँच थी इस व्यवसाय की, परनतु धातु के बर्तनों के उपयोग में आनदे के साथ ही इस व्यवसाय और फिर इस जाति का पतन प्रारमभ हो गया । आज जबकि दी्वाली के दिए और कु्हड भी चीन सदे आयात होनदे लगदे हैं, यदे
vDVwcj 2025 15