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1924 में ही एक अतयनत रिापनतकारी घटना घटी जिसने दलित महिला आनदोलन की सवरियता एवं उसके विचारातमक पक् को उभारने का भरपूर मौका दिया । वह रिांवतकारी घटना थी एक दलित महिला द्ारा दलित बच्चियों के लिए विद्ालय सथावपत करना । उच्च वशवक्त दलित महिला जाईबाई चौधरी जो बाद में सश्त दलित महिला नेता के सथावपत हुई । उनहोने 1924 में चोखा मेला कनया पाठशाला आरमभ की । जाईबाई चौधरी सिंय बहुत ही मुसीबतों से पढ़-लिख पाई थीं । जाईबाई चौधरी घर व समाज का तीव्र विरोध सहकर वशवक्का बनी थी । जाई बाई चौधरी वशवक्का के साथ-साथ एक जागरूक लेखिका एंव अचछी ि्ता भी थी । जाईबाई चौधरी बाबा साहब के वशवक्ओं से प्रभावित उनकी प्की अनुयायी थी । जाईबाई चौधरी ने सत्री शिक्ा को अतयवधक महतिपूर्ण मानते हुए सर्वप्रथम नारी को वशवक्त करने पर बल दिया ।
जाईबाई चौधरी के अथक प्रयासों से दलित महिला आनदोलन की माला में संघर््ग का एक मोती और जुड़ गया ।
मोहपा में ‘ मधयाप्रानत , वराड महार पररर्द ’ 23-24 फरवरी , 1924 में ही आयोजित की गई । ‘ इस सभा में एक ब्राह्ण ि्ता ने कहा कि महारों को कटा हुआ मांस नही खाना चाहिए परनतु उनका मृत मांस खाने में कोई हर्ज नही है । ‘ ब्राह्ण ि्ता की इस बात पर वेणुबाई भटकर ओर रंगुबाई शुभरकर ने खूब धुनाई की ।‘ ( आमही इतिहास घड़वला- उर्मिला पवार , मिनाक्ी मून ) महिलाओं की इस सभा में दलितों ने यह प्रण लिया कि अब असपृशय लोग हिनदुओं पर निर्भर नही रहेंगें और अपनी मुक्त के रासते खुद खोजेगें । इस सभा के आखिर में दो प्रसताि पारित किए गए पहला यह कि असपृशयता के खिलाफ सरकारी कार्यवाही होनी चाहिए । दूसरा सरकार का धयान शिक्ा की और खींचना चाहिए ।
1920 लेकर 1924 तक दलित महिला आनदोलन अपनी मंथर गति से चलता हुआ सत्री शिक्ा और असपृशयता के मुद्े पर समाज का धयान खींचता रहा । 1927 का साल दलित आनदोलन के साथ-साथ दलित महिला आनदोलन के लिए भी अतयनत महतिपूर्ण है । 1927 के अनत में बाबा साहब द्ारा चलाये गए महाड़ सतयाग्ह की परिणति ‘ मनुसमृवत दहन ’ और ‘ चावदार तालाब का पानी पीने ’ से हुई । पहली घटना पानी , जिसके लिए दलित पसत्रयां रोज-रोज बेइज्जती सहती थी , दूसरे मनुसमृवत जिसके कारण सत्री का जीवन नरक हो गया था , पानी का दलित महिलाओं द्ारा उपयोग होना , व मनु के विधान को जलाया जाना , इन दोनों घटनाओं ने दलित महिलाओं के मानसिक , वैचारिक , बौद्धिक और सामाजिक रूप में उसके जीवन की कायापलट ही कर दी । मनुसमृवत दहन के कारण एक तो बाबा साहब पसत्रयों सबसे बड़े हितैर्ी कहलाए दूसरे वे हितैर्ी होने साथ दलित महिला आनदोलन के वैचारिक महानायक की पदवी पर हमेशा-हमेशा के लिए आसीन हो गए । दलित सत्री अब मंचों पर खुलकर बोलने लगी । वह सितनत्रता से सोचने लगी । सभाओं में दलित महिलाओं की बढ़ती भागीदारी से डा . आंबेडकर द्ारा चलाएं जा रहे दलित आनदोलन को ताकत मिली और उसमें तेजी आ गई । दलित महिलाएं और उनकी नेत्रियां गली-गली गांव-गांव घूमते हुए सभाएं लेने लगी और दलित महिलाओं को सामाजिक , राजनीतिक व आर्थिक रूप से संगठित करने लगी ।
25 दिसमबर , 1927 को चावदार तलाब के महाड़ सतयाग्ह के ऐतिहासिक सममेलन में ढाई हजार दलित औरतों ने ‘ मनुसमृवत दहन ’ में शामिल होकर हिनदू धर्म के सत्री विरोधी कानून को मानने से इंकार कर दिया । इसी सभा में दलित महिलाओं की भारी संखया में उपपसथवत देखकर डा . आंबेडकर ने उनके पक् में अपना ऐतिहासिक भार्ण दिया । बाबा साहब ने कहा ‘‘ पसत्रयों को गृहलक्मी ही ्यों होना चाहिए ? मन में उंची महतिकांक्ा रखो । ज्ान और विद्ा पर केवल पुरूर्ों का ही अधिकार नही है , वह
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