Nov 2025_DA | Page 5

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बृजेश हविवेदी

दलित विरोधी है कांग्रेस डॉ. आंबेडकर ने बताया था अपने भाषण ्में

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भ़ीमराव आंबेडकर सम्य से आगे क़ी सोच रखने वाले जनना्यक थिे । उनहोंने तब संविधान में उन च़ीजों को शामिल लक्या थिा, जो आज तक कई देश नहीं कर पाए हैं । पहि़ी कैबिने्ट का लह्िा होने के बावजूद, कांग्रेस के अधिकांश नेताओं के साथि बाबा साहब भ़ीमराव आंबेडकर के संबंध अपेक्ाककृत मजबूत आधार पर ल्टके थिे, लेकिन इसके विपि़ीत, भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथि उनके संबंधों के बारे में बहुत कम जानकाि़ी ह़ी सामने आई है ।
जातिगत आिक्र, हिंदू कोड बिल और विदेश ऩीलत पर उनके विचारों के संबंध में, उनके निषपादन के बारे में दोनों के काि़ी विपि़ीत विचार थिे । लेकिन डॉ. भ़ीमराव आंबेडकर क़ी समाज सुधारक वाि़ी छवि कांग्रेस के लिए चिंता का कारण थि़ी । शा्यद ्यह़ी वजह थि़ी कि पार्टी ने उनहें संविधान सभा से दूर रखने क़ी ्योजना बनाई । नेहरू ने डॉ. आंबेडकर को किनारे करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, ताकि वह मुख्य धारा क़ी राजऩीलत में न आ सकें, इसके लिए कांग्रेस ने डॉ आंबेडकर के विरुद द़ीवारें खड़ी क़ी गईं । 27 सितंबर 1951 को कांग्रेस नेतृतव और विशेषकर जवाहर लाल नेहरू द्ािा कैबिने्ट से त्यागपरि देने के लिए डॉ. भ़ीमराव आंबेडकर को विवश लक्या ग्या । संसद में डॉ. आंबेडकर ने त्यागपरि के साथि जो भाषण लद्या, वह कांग्रेस के दलित एवं वनवाि़ी विरोध वाले अिि़ी चेहरे को उजागर करता है ।
डॉ. आंबेडकर ने सितंबर 1951 में कैबिने्ट से इस्तीफा देते हुए भाषण में लव्ताि से अपऩी उन-उन प़ीडा को ब्यान लक्या, जो-जो उनहोंने नेहरू के हाथिों झेि़ी । आंबेडकर राइल्टंग, वॉल्यूम- 14 भाग 2, पृष्ठ 1317-1327 में उनका भाषण संकलित लक्या ग्या है । अपने त्यागपरि भाषण
में डॉ. आंबेडकर ने कहा कि जब प्रधानमंत्री नेहरू ने मुझे प्र्ताव लद्या तो मैंने उनहें ्पष्ट बता लद्या थिा कि अपऩी शिक्ा और अनुभव के आधार पर एक वक़ीि होने के साथि मैं लकि़ी भ़ी प्रशासनिक विभाग को चलाने में िक्म हूं । प्रधानमंत्री सहमत हो गए और उनहोंने कहा कि वह मुझे अलग से ्योजना का भ़ी दाल्यतव देंगे । दुर्भाग्य से ्योजना विभाग बहुत देि़ी से मिला, जिस दिन मिला मैं तब तक बाहर आ चुका थिा । मेरे का्य्तकाल के दौरान कई बार एक मंत्री से दूसरे मंत्री को मंत्रालय दिए गए, मुझे लगता है कि उन मंत्रालयों में से भ़ी कोई मुझे लद्या जा सकता थिा । लेकिन मुझे हमेशा इस दौड से बाहर रखा ग्या । मुझे ्यह समझने में भ़ी कल्ठनाई होत़ी थि़ी कि मंलरि्यों के ब़ीच काम का बं्टवारा करने के लिए प्रधानमंत्री जिस ऩीलत का पालन करते हैं, उसके पैमाने क़ी क्मता क्या है? क्या ्यह लव्वाि है? क्या ्यह लमरिता है? ्या क्या ्यह लचरता है? मुझे कभ़ी भ़ी कैबिने्ट क़ी प्रमुख िलमलत्यों जैसे विदेश मामलों क़ी समिति ्या रक्ा समिति का सदस्य नहीं चुना ग्या । जब प्रधानमंत्री नेहरू इंगिैंड गए तो मुझे कैबिने्ट ने इसका सदस्य चुना, लेकिन जब वह वापस आए तो कैबिने्ट समिति के पुनग्त्ठन में भ़ी उनहोंने मुझे बाहर ह़ी
रखा । मेरे विरोध दर्ज करने के बाद मेरा नाम जोडा ग्या ।
एक और च़ीज जिसने डॉ. आंबेडकर को इस्तीफे के लिए बाध्य लक्या, वो थिा हिंदू कोड बिल के साथि सरकार का बर्ताव । ्यह विधे्यक 1947 में सदन में पेश लक्या ग्या थिा लेकिन बिना लकि़ी चर्चा के जमींदोज हो ग्या । उनका मानना थिा कि ्यह इस देश क़ी विधाल्यका का लक्या सबसे बडा सामाजिक सुधार होता । बाबा साहब ने कहा थिा कि प्रधानमंत्री के आ्वािन के बावजूद ्ये बिल संसद में गिरा लद्या ग्या । अपने भाषण के अंत में उनहोंने कहा,“ अगर मुझे ्यह नहीं लगता कि प्रधानमंत्री के वादे और काम के ब़ीच अंतर होना चाहिए, तो निश्चत ह़ी गलत़ी मेि़ी नहीं है ।”
डॉ. आंबेडकर का नेहरू सरकार के प्रति असंतुष्ट होने का एक और मुख्य कारण थिा, पिछड़े वगगों और अनुसूचित जालत्यों से जुडा भेदभावपूर्ण व्यवहार । डॉ. आंबेडकर अपने भाषण में आगे कहते हैं कि मुझे इस बात का बहुत दुःख है कि संविधान में इन जालत्यों क़ी सुरक्ा के लिए कुछ विशेष त्य नहीं लक्या ग्या । ्यह तो राषट्पति द्ािा लन्युकत एक आ्योग क़ी सं्तुलत के आधार पर सरकार को करना पड़ा । इसका संविधान पारित करते हुए हमें एक वर्ष हो ग्या थिा लेकिन सरकार ने आ्योग के ग्ठन तक के विष्य में नहीं सोचा । आज अनुसूचित जाति क़ी स्थिति क्या है? जहां तक मैंने देखा है, वैि़ी ह़ी है जैि़ी पहले थि़ी । वह़ी चला आ रहा उत्पीड़न, वह़ी पुराने अत्याचार, वह़ी पुराना भेदभाव जो पहले दिखाई पडता थिा । सब कुछ वह़ी, बसलक और बदतर हालात वाि़ी स्थिति । बसलक ्यलद तुलना करें तो इनसे ज्यादा सरकार मुसलमानों के प्रति संवेदना दिखा रह़ी है । प्रधानमंत्री का सारा सम्य और ध्यान मुसलमानों के संिक्र के लिए समर्पित है । �
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